मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से 28 सीट पर कांग्रेस और 1 सीट पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार मुख्यतः भाजपाई प्रत्याशियों से दो – दो हाथ करते नजर आयेंगे

खरी – अखरी *विष्णु - मनोज आमने-सामने*

मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से एक है खजुराहो लोकसभा सीट जिसे इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी को दी है बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि यह सीट समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने मांगी है। मतलब मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से 28 सीट पर कांग्रेस और 1 सीट पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार मुख्यतः भाजपाई प्रत्याशियों से दो – दो हाथ करते नजर आयेंगे।

एंटी इनकमबेंसी को किया दरकिनार

खजुराहो लोकसभा के लिए मतदान 26 अप्रैल को होगा। अधिसूचना जारी होते ही नामांकन प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। भाजपा ने इस सीट से पहले ही अपने सिटिंग सांसद विष्णुदत्त शर्मा को तमाम नकारात्मकताओं के बावजूद उम्मीदवार घोषित कर दिया है। संसदीय क्षेत्र के भाजपाई खेमे से छनकर आ रही जानकारी के मुताबिक देवतुल्य कार्यकर्ताओं से लेकर संसदीय क्षेत्र की जनता की बेरुखी को नजरअंदाज करते हुए विष्णुदत्त शर्मा को फिर से प्रत्याशी इसलिए बनाया गया है कि वे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान हैं (सैंया भये कोतवाल) ।

जूनियर बच्चन का नाम चलाना रहा प्रोपेगेंडा

खजुराहो संसदीय क्षेत्र की जनता को इंतजार था कि गठबंधन के तहत मिली सीट पर समाजवादी पार्टी किसे चुनाव मैदान में उतारती है। समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने डाॅ मनोज यादव नामक व्यक्ति को मैदान में उतार कर सस्पेंस खत्म कर दिया है। जबकि इसके पहले कतिपय मीडिया कर्मियों ने सपा सांसद जया भादुड़ी बच्चन और मेगा स्टार अमिताभ बच्चन के पुत्र सिने कलाकार अभिषेक बच्चन को कटनी से बतौर सपा उम्मीदवार बनाये जाने की खबरें चलाई थी। कुछेक नामचीन तो वरुण गांधी को सपा से टिकिट मिलने का प्रोपेगेंडा चला रहे थे जबकि वरुण गांधी भाजपा के सदस्य हैं। अब जबकि तस्वीर साफ हो चुकी है कि मुख्य भिडंत शर्मा बनाम यादव है।

सपा सुप्रीमो ने खजुराहो सीट ही क्यों मांगी

खजुराहो संसदीय क्षेत्र की जनता को यह सवाल बार – बार मथ रहा है कि सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने आखिरकर खजुराहो लोकसभा सीट ही क्यों मांगी जबकि इस लोकसभा क्षेत्र में सपा का कोई विशेष जनाधार दिखाई नहीं दे रहा है। अगर मांगना ही था तो टीकमगढ़, रीवा, सीधी में से कोई एक मांग लेते जहां सपा का जनाधिकार खजुराहो क्षेत्र की अपेक्षा बेहतर दिखता है। राजनीति में अक्सर जैसा दिखता है वैसा होता नहीं है और जो होता है वैसा दिखाई नहीं देता। सारी राजनीतिक पार्टियों का एक ही ऐजेंडा होता है जनता की भावनाओं को इनकैस कर अपना उल्लू सीधा करना। हर दल का नेता अपने-अपने मंच पर खड़ा होकर जनता की भावनाओं को भड़काने के लिए एक दूसरे को गरियाता है और बाद में वे सब एकसाथ गलबहियां डाले गिलास टकराते नजर आते हैं। जनता के हिस्से आता है खंडित होता भाईचारा, पसरती नफरत। मानसिक रूप से दिवालिया हो चुकी जनता को यह बात समझ में क्यों नहीं आती कि दूसरे दल को कोसने वाला नेता कोसने वाले दल में शामिल होकर भाटगिरी करने लगता है आखिर क्यों ?

निजी हित साधने की कवायद तो नहीं !

सपा सुप्रीमो ने खजुराहो लोकसभा सीट ही क्यों मांगी? कहीं यह सपा और भाजपा के बीच निजी हितों को साधने और उन्हें सुरक्षित रखने का आत्मिक समझौता तो नहीं है। वैसे खरी – अखरी इस बात से इत्तफाक नहीं रखता है । सपा प्रत्याशी घोषित होते ही कहा जाने लगा है कि भाजपा जीत गई है चुनाव और चुनाव परिणाम तो मात्र औपचारिक हैं।

मतदाता चुनता ही आया है बाहरीयों को

अगर विष्णु की जीत की चर्चा आम हो रही है तो इसके पीछे का कारण है संसदीय क्षेत्र में आने वाली कटनी मुख्यालय की विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं की वर्षों से चली आ रही दल विशेष के प्रति मानसिक गुलामी। जब कटनी दमोह संसदीय क्षेत्र का हिस्सा रहा है तब भी, जब कटनी जबलपुर संसदीय क्षेत्र का हिस्सा बना तब भी और आज जब खजुराहो संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है तब भी – कभी भी किसी भी दल ने कटनी मुख्यालय की किसी भी विधानसभा को महत्व नहीं दिया । कांग्रेस रही हो या भाजपा दोनों पार्टियों ने बाहर से किसी भी माटी के माधव को लाकर खड़ा कर दिया और इस क्षेत्र के मतदाताओं ने भी हमेशा अपने क्षेत्र की अस्मिता को उन बाहरी लोगों के पैरों तले रखने में संकोच नहीं किया । इस क्षेत्र की जनता तो ऐसे – ऐसे माननीय नमूनों को चुन कर दिल्ली भेज चुकी है जिनने भूतो न भविष्यति को चरितार्थ किया है।

जनता तो यहां तक कह रही है कि पिछले तीन विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने ऐसे – ऐसे प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा था जिससे भाजपा की जीत आसान हो सके। चौपालों में आरोप तो यहां तक लगाये जाते रहे हैं कि कांग्रेस प्रत्याशियों का चयन भाजपाई उम्मीदवारों की सहमति से किया गया। मगर जनता की इन बातों को मानता कौन है ?

जुगनू माफिक भी नहीं स्थानीय नेता

कटनी इस बात के लिए भी अभिशप्त नजर आती है कि यहां का एक भी नेता (कांग्रेसी हो या भाजपाई या फिर किसी दूसरे दल का) खुद का वजूद नहीं बना सका। सारे के सारे बाहरी फादरों से उर्जीकृत होते रहे हैं और आज भी हो रहे हैं। खजुराहो संसदीय क्षेत्र का मतदाता एकबार फिर किसी बाहरी व्यक्ति को चुनने के लिए विवश है। एकबार फिर वह आदमी सामने है जिसकी कवायद क्षेत्र में उपलब्धि के नाम पर सिफर है। तो दूसरे व्यक्ति को संसदीय क्षेत्र की जनता तो छोड़ दीजिए संसदीय क्षेत्र के सपाई कार्यकर्ता तक अच्छे से नहीं पहचानते हैं । हां इस मामले में विष्णु मनोज से थोड़ा बेहतर रहे कि जब उन्हें 2019 में खजुराहो संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ाया गया था तब संसदीय क्षेत्र की जनता विष्णु को भले ही न जानती – पहचानती रही हो (तकरीबन 75 फीसदी से ज्यादा जनता तो आज भी नहीं जानती – पहचानती) भाजपा से जुड़े संगठन विशेष के लोग जरूर जानते – पहचानते थे। *कौन होगा जीरो का हीरो ?*

यह तो 4 जून को ही पता चलेगा कि 26 अप्रैल को खजुराहो संसदीय क्षेत्र की जनता ने पिछले पांच सालों में संसदीय क्षेत्र को शून्य देने वाले व्यक्ति को एक बार फिर से आगामी पांच साल के लिए 0 का ठेका दे दिया है या फिर नये व्यक्ति को कांटेक्ट दिया है।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार

About The Author

निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

Learn More →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

× अब ई पेपर यहाँ भी उपलब्ध है
अपडेट खबर के लिए इनेबल करें OK No thanks