धन प्रयाग धरा धाम, परम पावन पूरन काम” बहत जहां गंगा जमुना सरस्वती को प्रणाम

“धन प्रयाग धरा धाम, परम पावन पूरन काम” बहत जहां गंगा जमुना सरस्वती को प्रणाम।”

चार ताल की प्रस्तुति से ध्रुपद को पं० विनोद कुमार द्विवेदी ने श्रोताओं के अंतरमन तक पहुचाया। भरतनाट्यम की वरिष्ठ कलाकार पद्मश्री गीता चंद्रन ने आई गिरी नंदिनीं से मातृ शक्ति को भरतनाट्यम नृत्य के माध्यम से प्रदर्शित किया।

प्रयागराज। महाकुम्भ 2025 में आने वाले श्रद्धालु पुण्य की प्राप्ति के लिए त्रिवेणी में स्नान, दान कर रहें है। साथ ही उन्हें महात्मा और साधुओं की संगत करने का अवसर मिल रहा है। संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश एवं संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा महाकुम्भ में पण्डाल लगाए गए है जिसमे गंगा पण्डाल में विशिष्ट एवं अति विशिष्ट कलाकारों की प्रस्तुति की जा रही है।
सोमवार, दिनांक 27 जनवरी 2025 को गंगा पण्डाल में ध्रुपद गायन से गुंजायमान हुआ मंच। कार्यक्रम की प्रथम प्रस्तुति के रूप में संगीत नाटक अकादमी द्वारा सम्मानित एवं पड़ोसी देश श्रीलंका द्वारा कला विभूषण सम्मान से सम्मानित तथा पूज्य शोभन सरकार, पंडित काशीनाथ बोडस, पण्डित विदुर एवं अभय नारायण मालिक के शिष्य प्रसिद्ध ध्रुपद गायक पण्डित विनोद कुमार द्विवेदी एवं उनके पुत्र एवं शिष्य आयुष द्विवेदी की जुगलबंदी से हुई। पण्डित विनोद कुमार द्विवेदी ने 700 से अधिक ध्रुपद की रचना की है। इनके 15 देशों के 1500 से भी अधिक शिष्य हैं। ध्रुपद की ऐसी मनमोहक प्रस्तुति को श्रोताओं ने अपनी घनघोर तालियों के माध्यम से अभिवादन किया। अपनी प्रथम प्रस्तुति महाकुम्भ को समर्पित अपनी स्वरचित रचना चार ताल में धन प्रयाग धरा धाम, परम् पावन पूरन काम, बहत जहाँ गंगा यमुना सरस्वती को प्रणाम किया। उसके बाद शूल ताल में “पावन मन भावन, छायो महाकुम्भ को श्रोताओं के बीच रखा। ध्रुपद भारतीय शास्त्रीय संगीत की सबसे प्राचीनतम विधा है जिसे पंडित विनोद कुमार द्विवेदी ने बड़े ही रोचक और अनोखे तरीके से पेश किया। माता और उसके नन्हे पुत्र के संवाद को राग के माध्यम से सुनाया जिसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया। उसके बाद उन्होंने शिव स्तुति “शंकर हर हर महादेव अवघड़ दानी” को दर्शकों के सम्मुख रखा। अपनी अगली प्रस्तुति में मां गंगा को समर्पित भजन प्रस्तुत किया। अपनी अंतिम प्रस्तुति में राघेश्वर सरकार को समर्पित “राजा राम चन्द्र राघव सीतापति” प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में सह गायन किंग श्री आयुष द्विवेदी ने तथा तानपुरा पर संगत दिया श्रीमती रंजना द्विवेदी एवं कदर्प त्रिवेदी। पखावज पर अयोध्या के पंडित राज कुमार झा रहे।
कार्यक्रम की अगली कड़ी में पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी से पुरस्कृत भरतनाट्यम की वरिष्ठ कलाकार एवं नृत्य निर्देशिका तथा श्रीमती स्वर्णा सरस्वती की शिष्या सुश्री गीता चंद्रन ने अपने नृत्य नाटिका के प्रदर्शन से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
अपनी प्रथम प्रस्तुति में सनातन संस्कृति को अभिलक्षित करती तथा भूतं, भव्यम, भविष्यम को प्रदर्शित करती पारंपरिक भरतनाट्यम नृत्य “त्रिधारा अलरिप्पू” प्रस्तुत किया। अगली प्रस्तुति में सुश्री गीता चंद्रन ने भगवान शिव के नृत्य को समर्पित नट राजा प्रस्तुत किया। जिसमें सृष्टि की रचना के लिए उपस्थित पंच भूतों पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और अग्नि को प्रदर्शित किया गया है।
कार्यक्रम की अगली प्रस्तुति के रूप में सनातन संस्कृति की शक्ति तथा बहुभागी सत्य को दर्शाती माता भगवती को समर्पित देवी स्तुति “आई गिरी नंदिनीं ” को भरतनाट्यम नृत्य से प्रदर्शित किया। कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति के रूप में नाबा जुंगरा दिखाया। इस नृत्य में महाभारत काल मे पांडवों के अज्ञातवास का प्रसंग लिया गया है। जिसमे भगवान विष्णु वेदांत के रूप में तथा भगवान शिव तंत्र तथा शक्ति को पंथ के रूप में दिखाया गया। इसमें दिखाया गया है कि अर्जुन एक ऐसे अलबेले पशु को देखर अचरज में पड़ जाते है जिसका अग्र भाग में एक मनुष्य का एक पैर हाथी का, गर्दन और मुख मोर का, शरीर पर बैल जैसा कूबड़, पेट सिंह का, पिछला भाग में एक पैर चीता तो दूसरा हिरण का तथा पूंछ साँप जैसी। ऐसे अलबेले पशु को देखकर अर्जुन जैसे ही उनपर आक्रमण की तैयारी करते है वैसे ही सत्य सबके सामने आ जाता है कि यह मायापति की समामेलित एक रचना है। इस अदभुत रचना को भरतनाट्यम नृत्य में प्रस्तुत किया जिसने दर्शकों को रोमांचित कर दिया। कार्यक्रम में दिव्या सलूजा, अंजना शेषाद्रि, गायत्री सुरेश, राधिका कठल, मधुरा भृशनदि सौम्या लक्ष्मी नारायण, अनंदिता नारायण, यादवी शंकदर मेनन तथा मिलिंद श्रीवास्तव ने साथ दिया।
आज के दिन की अंतिम प्रस्तुति के रूप में प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त, अयोध्या से पधारे सुप्रसिद्ध गायक दीपक चौबे ने राम भजनों से पण्डाल को राममय कर दिया। अपनी पहली प्रस्तुति में निषादराज केवट के भावों को प्रदर्शित करते “मेरे राघव जी उतरेंगे पार, गंगा मैया धीरे बहो” एक सुमधुर भजन की प्रस्तुति की। राम जैसा नगीना नही, सारे जग की बजरिया में तथा पांव में घुंघरू बांध के नाचे, जपे राम की माला जैसे कई मधुर भजनों से से श्रोताओं को विभोर कर दिया।
कार्यक्रम में संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश के कार्यक्रम अधिषासी कमलेश कुमार पाठक ने सभी कलाकारों को अंगवस्त्रम, प्रतीक चिन्ह व प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया। मंच संचालन डॉ मानशी द्विवेदी ने किया।
राम आसरे

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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