
एटा,आज के समय में शिक्षा सबसे ज़रूरी जरूरत बन गई है। हर माँ-बाप का सपना होता है कि उनका बच्चा पढ़-लिख कर कुछ बने, लेकिन जब शिक्षा का खर्च आसमान छूने लगे, तब यह सपना सिर्फ अमीरों तक ही सीमित रह जाता है।
ग़रीब परिवारों के लिए अपने बच्चों को स्कूल भेजना एक संघर्ष बन चुका है। एक तरफ स्कूल की फीस दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी ओर कापी-किताबें, यूनिफ़ॉर्म, बस का किराया, प्रोजेक्ट और दूसरी गतिविधियाँ भी जेब पर भारी पड़ने लगी हैं।
सरकारी स्कूलों में सुविधाओं की कमी और निजी स्कूलों में बढ़ती महंगाई के कारण ग़रीब माँ-बाप एक दोराहे पर खड़े हो जाते हैं – या तो बच्चा पढ़े, या परिवार दो वक्त की रोटी खाए।
इस स्थिति का असर सीधे बच्चों पर पड़ता है। कई बच्चे अपनी पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं, कुछ आधे-अधूरे मन से स्कूल जाते हैं, और कई बच्चे बाल मजदूरी की ओर धकेले जाते हैं।
सरकार को चाहिए कि वह शिक्षा को वास्तव में सबके लिए सुलभ बनाए। सरकारी स्कूलों की हालत सुधारी जाए, मुफ्त किताबें, ड्रेस और मिड-डे मील जैसी योजनाओं को ईमानदारी से लागू किया जाए। निजी स्कूलों की फीस पर भी एक सीमा तय की जाए ताकि शिक्षा व्यापार न बने।
अगर देश को आगे बढ़ाना है तो हर बच्चे को शिक्षा देनी होगी — चाहे वह अमीर का हो या ग़रीब का। शिक्षा सिर्फ अधिकार नहीं, ज़रूरत है, और इस ज़रूरत को पूरा करना समाज की ज़िम्मेदारी है। तभी सच्चे अर्थों में हमारा देश ‘शिक्षित भारत’ बन पाएगा।