
प्रयागराज में “अक्षयवट” के विषय में मान्यता है कि यह अजर, अमर व चिरंतन है। यह अनादि सनातन वृक्ष है। अक्षयवट का पूजन श्रद्धालुजन एन मनवांछित फल प्राप्त करने के लिए तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए करते रहे हैं।
सनकादि कुमारों के पूछने पर अक्षयवट के संबंध में विष्णु भगवान जी कहते हैं –
प्रयागं वैष्णवं क्षेत्रं, वैकुंठादधिकं मम।
वृक्षोऽक्षयश्चतत्रैव, मदाचारी विराजते।।
अर्थ : प्रयाग मेरा क्षेत्र है, वह वैकुंठ से भी अधिक है। वहां अक्षयवट है, जो मेरा आश्रय है।
ऐसे महिमामंडित प्रयागराज के बारे में तुलसीदास जी अयोध्या कांड में लिख ही डालते हैं :
को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ।
अर्थात् प्रयागराज के माहात्म्य को कौन कह सकता है ?
ऐसे पावन प्रयागराज में पुण्यमय पूर्ण महाकुंभ लगा है। उसमें डुबकी लगाकर अपने तन-मन दोनों को पवित्र कर परमात्मा से मिलन की अभीप्सा अपने अंतःकरण में जागृत करें।