“पुत्र मोह में धृतराष्ट्र बनेंगे या जनता के लिए ‘जनसेवक’ बने रहेंगे।”

देवतालाब क्षेत्र की जनता क्यों हो रही है उपेक्षित?

देवतालाब विधानसभा क्षेत्र के विधायक गिरीश गौतम का नाम अब तक संघर्षशील और कद्दावर नेताओं में शुमार रहा है। लेकिन हालिया घटनाओं और उनके बयानों ने उनके राजनीतिक दृष्टिकोण और प्राथमिकताओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
देवतालाब क्षेत्र में आदिवासी और अन्य वंचित समुदायों की समस्याएं दिन-ब-दिन विकराल होती जा रही हैं। ढेरा पथरहा ग्राम पंचायत में आदिवासी परिवारों की जमीनों पर जबरन कब्जे और प्रशासनिक उदासीनता ने जनता को निराश किया है। न्याय के लिए मऊगंज विधायक के पास फरियाद लेकर पहुंची जनता यह सवाल उठा रही है कि आखिर गिरीश गौतम जैसे अनुभवी नेता क्यों मौन हैं? एक मुस्लिम परिवार द्वारा आदिवासी भूमि पर कब्जा करना और प्रशासन का निष्क्रिय रहना क्षेत्र में कानून व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न खड़ा करता है। थानों में रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए पैसे की मांग और पीड़ितों को ही प्रताड़ित करने की घटनाओं ने इस इलाके को ‘जंगल राज’ की स्थिति में पहुंचा दिया है। विधायक गिरीश गौतम पर आरोप है कि वह पुत्रमोह में इतने व्यस्त हो गए हैं कि क्षेत्र की जनता की उपेक्षा कर रहे हैं। उनके बेटे को राजनीति में स्थापित करने की कोशिशें साफ नजर आ रही हैं। जिला पंचायत चुनाव में भी प्रशासन का पूरा दबाव लगाने के बावजूद जनता ने उनके पुत्र को नकार दिया। सवाल यह है कि क्या गिरीश गौतम पार्टी के एजेंडे और क्षेत्र के हितों को छोड़कर व्यक्तिगत स्वार्थों की राजनीति कर रहे हैं?

हिंदुत्व से भटकती राजनीति
गिरीश गौतम की राजनीति का उदय भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व और सनातन धर्म आधारित एजेंडे पर हुआ। जनता ने उन्हें बार-बार इसलिए चुना क्योंकि उन्होंने इन मूल सिद्धांतों का पालन किया। लेकिन आज उनका झुकाव क्षेत्रीय दलालों और माफियाओं की ओर दिखाई दे रहा है। क्या गिरीश गौतम औरंगज़ेब और बाबर के अनुयायियो के संरक्षण में उतर गए हैं? क्षेत्रीय जनता यह सवाल बार-बार उठा रही है कि क्यों देवतालाब के मूल निवासी न्याय के लिए मऊगंज विधायक के पास जा रहे हैं?

जनता को जवाब चाहिए
देवतालाब की जनता ने गिरीश गौतम को चौथी बार इसलिए चुना है ताकि वे क्षेत्र की समस्याओं का हल निकाल सकें। लेकिन आज उनकी प्राथमिकता क्षेत्र की जनता नहीं बल्कि व्यक्तिगत स्वार्थ और परिवारवादी राजनीति बन चुकी है।

गिरीश गौतम को याद रखना होगा:
“अवाम के दिलों में जगह बनाना आसान नहीं, आलीशान मकान बनाना जरूर है।”

क्या विधायक अपने कर्तव्यों की ओर लौटेंगे?
क्षेत्रीय जनता ने संकेत दे दिए हैं। यदि गिरीश गौतम ने समय रहते कदम नहीं उठाए तो “उर्रहट लाओ, सजा दो” की गूंज आने वाले चुनावों में सुनाई दे सकती है।
गिरीश गौतम का राजनीतिक जीवन संघर्ष और सफलता का परिचायक रहा है, लेकिन वर्तमान में उनके द्वारा अपनाए गए रास्ते ने जनता के विश्वास को डगमगा दिया है। उन्हें यह समझना होगा कि राजनीति सिर्फ परिवार के लिए नहीं होती, बल्कि जनता के प्रति उनकी जवाबदेही सबसे ऊपर है।

अब समय आ गया है कि विधायक गिरीश गौतम यह तय करें:

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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