कह ना सके तू, अपनी कहानी

‘कह ना सके तू, अपनी कहानी। तेरी भी पंछी क्या ज़िंदगानी। विधि ने तेरी कथा लिखी, आंसू में कलम डुबोय। तेरा दर्द ना जाने कोय। पिंजरे के पंछी रे।’ क्या शानदार पंक्तियां है। लिखी भी तो कवि प्रदीप ने हैं। महान कवि प्रदीप, जिन्होंने अपनी कालजयी रचनाओं से भारतीय सिनेमा के गौरवकाल का वैभव और कई गुना बढ़ा दिया था। जी हां, वही था सिनेमा का गौरवकाल। अब तो पतन है। और ये पतन समाप्त नहीं होगा। ये हर दिन बढ़ेगा। और बढ़ता जाएगा। खैर, आज कवि प्रदीप की पुण्यतिथि है। 6 फरवरी 1915 को जन्मे थे कवि प्रदीप। असल नाम था रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी। उज्जैन के पास स्थित बडनगर में पैदा हुए थे। कविवर गाते भी खूब थे। पहली दफा बॉम्बे टॉकीज़ की कंगन के लिए इन्होंने चार गीत लिखे थे। उस फिल्म के हीरो थे दादामुनि अशोक कुमार व हीरोइन थी खूबसूरत लीला चिटनिस जी। मैं क्या ही लिखूं इस महान विभूति के बारे में। मुझे तो अभी इन्हें पढ़ना है। बहुत ज़्यादा पढ़ना है। मैं नमन करता हूं कवि प्रदीप जी को।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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