मऊगंज, मध्य प्रदेश। मुख्यमंत्री के हालिया मऊगंज दौरे के दौरान जिला प्रशासन की लापरवाही और दिव्यांगों के साथ हुए दुर्व्यवहार के मामले ने प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
दिव्यांग नागरिकों का आरोप है कि मुख्यमंत्री से मिलने और अपनी समस्याएँ रखने के लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं की गई थी। इसके चलते कई दिव्यांग व्यक्तियों को इधर-उधर भटकना पड़ा। दिव्यांग दीपक गुप्ता ने बताया कि यदि दिव्यांगों के पास किसी प्रकार का मजबूत सहारा न हो, तो प्रशासन उन्हें अनदेखा कर दूर कर देता है।
पुलिस प्रशासन पर गंभीर आरोप
घटनास्थल पर मौजूद दिव्यांगों ने पुलिस प्रशासन पर भी दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है। उन्होंने बताया कि पुलिस ने उन्हें बार-बार रोककर अलग-अलग जगहों पर भेजा और उनकी समस्याओं को अनदेखा किया। कई दिव्यांग नागरिकों ने यह भी आरोप लगाया कि बिना किसी सिफारिश या प्रभाव के, उन्हें मुख्यमंत्री तक पहुँचने की अनुमति नहीं दी गई।
प्रशासन की लापरवाही या संवेदनहीनता?
स्थानीय नागरिकों और दिव्यांगों का कहना है कि यह घटना प्रशासन की लापरवाही को दर्शाती है। जब दिव्यांग नागरिकों के लिए कोई आवागमन सुविधा या सहायता केंद्र ही नहीं बनाया गया, तो यह सवाल उठता है कि क्या प्रशासन दिव्यांगों के अधिकारों को लेकर संवेदनशील है?
मामले की जांच और सुधार की माँग
इस मामले ने स्थानीय स्तर पर चर्चा को तेज कर दिया है। नागरिक और सामाजिक कार्यकर्ता जिला प्रशासन से तत्काल इस घटना की जांच और सुधारात्मक कदम उठाने की माँग कर रहे हैं। दीपक गुप्ता, जो इस घटना के चश्मदीद और स्वयं दिव्यांग हैं, ने कहा, “अगर पत्रकार या किसी प्रभावशाली व्यक्ति का सहारा न हो, तो प्रशासन दिव्यांगों को भीतर भी नहीं जाने देता। यह अन्याय है, और इसे रोकने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है।”
भ्रष्टाचार और संवेदनहीनता के आरोप
दिव्यांगों ने राज्य सरकार और प्रशासन पर भ्रष्टाचार और संवेदनहीनता का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि यह स्थिति भाजपा सरकार की नीतियों और प्रशासनिक कार्यशैली की खामियों को उजागर करती है।
निष्कर्ष
दिव्यांगों के प्रति ऐसा रवैया न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि समाज के सबसे कमजोर वर्ग की अनदेखी भी है। यह आवश्यक है कि सरकार और जिला प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लें और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएँ।