एटा-यूपी-
अपनी प्रसिद्धियों की पहचान से गुम जिला एटा–
अपराध से मशहूर हो गया–
आखिर जिम्मेदार कौन है–
एक एसा क्रीमी जिला है जहां प्रशासन आने से पहले तो इसके बदनाम नाम से घबराता है लेकिन जब यहां के हालातों से धीरे धीरे बो बाकिव हो जाता है तो उसकी कामना में सामिल होने लगता है कि ईश्वर अब हमारी पूरी नौकरी यहीं पर खत्म हो जाए और सुविधाओं की दृष्टि से सोचता है चलो यहां तो बच्चों का कोई कैरियर ही नहीं है और ना ही परिवारों के लायक शहर,और आवाम के अधिकारों की लूट के बाद-यहां से प्रशासन बिस्तर बांध लेता है अगर झूठ है तो बताए कोई जितना अच्छा शहर इन अधिकारियों को नौकरी करते समय लगता है क्या रिटायरमेंट के बाद लगता है चलो यही घर बनाते हैं आज तक इस जिला को कोई एसा सपूत प्रशासन नहीं मिला जो इसकी विकलांग और बीमारी की वैशाखी और दवा बनता बेजारी पढी लिखी आवाम के लायक बना जाता एसा लगता है जैसे सारा पैसा इनके घर से इसे संवारने के लिए खर्च होता है, लेकिन घोषणाएं सुनहरी सुर्खियों में बटोर ले जाते हैं अपने जैसे सहयोग कर्ताओं के–जो ऊंट के मुंह में जीरा जैसा लगता है धीरे-धीरे शहर के हालात गांव से बद्तर हो गये जिन प्रसिद्धियों से इसकी पहचान थी बो अपराधों में तो बढ़ती रही पर मुख्य चीजें गुम होती गई सब्र मूंकता और व्यबहारिकता ने शहर को पूरी तरह से खाली कर दिया जिस जिला की आवाम अपने अधिकारों की आवाज ही नहीं उठाती है तो हालात ऐसे ही बनते चले जाते हैं, धूल फांकता शहर और सड़कों के गड्ढे जिंदा इंसानों का खून पी रही है आवाम की नाक के नीचे कूड़ा दान बन गये संचारी रोगों में दिन-प्रतिदिन प्रोग्रेस हो रही है इन सब हालातों का जिम्मेदार कौन है अपने अपने से सवाल करें क्या इनकी प्रतिष्ठा का सवाल नहीं है जिन्हें अपनी नाक के नीचे पड़ी बदहाली नहीं दिखाई देती है किस विस्वास से आवाम के वोट का आप स्तेमाल कर रहे हैं लेकिन काठ की हंडिया एक बार ही चढ़ती है पर भूंख एक बार में शांति नहीं हो सकती है।
दीप्ति,✍️