एटा,SIT द्वारा जाँच के माध्यम से जिलाधिकारी प्रेम रंजन सिंह की अब तक की सबसे बड़ी कार्यवाही
इस डकैती की कहानी कई दशक पूर्व लिखी गई थी लेकिन इस डकैती का कोई बिभिषण निकल आया और एक खौफनाक दास्ताँ निकल कर सामने आई है। सोचिये कैसे सिस्टम पर भरोसा किया जा सकता है। ज़ब पूरा का पूरा 1993 का कलेक्ट्रेट पर कार्यरत कर्मचारियों का गिरोह ही डकैत भर्ती हुआ हो ।
बर्ष 1993 व 1995 के दौरान शासन से एक आदेश हाथो हाथ आता है. उस आदेश में उस समय 30 सीजनल कर्मचारियों(वासिल बाकी नवीस) को भर्ती करने का आदेश रहा होगा। उस आदेश की खिलाफत कौन करता क्योंकि दौर ही साईकिल सरकार का था तो आदेश भी डाक या हाथ से आया होगा । इसलिए उस समय के निवर्तमान अधिकारी द्वारा बिना जांचे ही आदेश में लिखें 30 सीजनल कर्मचारियों को कार्य पर रख लिया गया।
इस डकैती का खेल यही खत्म नहीं हुआ. इन सभी 30 डकैतो ने फिर एक खेल बनाया और सभी के सभी कलेक्ट्रेट पर सीजनल न होकर परमानेंट भी हो गए और कुछ समय बाद सीजनल भर्ती की फ़ाइल को ही 30 डकैतो ने गायब कर दिया.
इस फ़ाइल के गायब होने के साथ ही इन सभी की नौकरी पर भी सवाल उठने लगा. क्योंकि जिस रास्ते से इन सभी को नौकरी मिली थी, वो कागज ही नहीं था। जाँच प्रशासन के रास्ते शासन के पाले में चला गई।शिकायतों का दौरा तत्कालीन जिलाधिकारी विजय किरण आनंद के समय पर तेजी पकड़ी.लेकिन उम्मीद कुछ आगे बढ़ती कि IAS VK आनंद का स्थानांतरण एक तथाकथित युवराज द्वारा करा दिया गया।शिकायतो का दायरा अपनी रफ़्तार से चलता रहा. शिकायत को जाँच में बदलने वाले पूरी ताकत के साथ तत्कालीन जिलाधिकारी सुखलाल भारती द्वारा आगे बढ़ाया गया क्योंकि जिला प्रशासन में बैठे 30 डकैतो ने तत्कालीन जिलाधिकारी को इस प्रकरण में लम्बी डकैती का ऑफर भी दिया।जो सफलतापूर्वक पूरा नहीं हो सका। इस जाँच में यह भी बताया जाता है कि IAS सुखलाल भारती पर राजनैतिक दवाब भी कराया गया लेकिन कुछ सख्त IAS होते है जो शासन के कार्यों में झुकते नहीं है।
तत्कालीन जिलाधिकारी सुखलाल भारती के स्थानांतरण होने के बाद यह जाँच धीमी गति से चलती रही. लेकिन जाँच मृत्यु शैया पर नहीं लेटी । इसी दौरान तत्कालीन जिलाधिकारी अंकित कुमार अग्रवाल का जिले में आना हुआ और प्रशासन ने इस जाँच को शासन को भेज दी. शासन द्वारा इस पुरे प्रकरण पर गंभीरता पूर्वक विचार करने के बाद SIT गठित करने के आदेश दें दिए गए।लेकिन इस जाँच पर आम जनमानस की नजर ही नहीं पड़ी और जाँच SIT के रास्ते चलती ही रही. SIT को वो फ़ाइल चाहिए थी जिसमे इन सभी 30 सीजनल कर्मचारियों की पोस्टिंग थी.वह फ़ाइल कैसे और कहा गई यह आज भी इन 30 के बीच राज बनी हुई है।
इस जाँच में IAS VK आंनद,IAS सुखलाल भारती,IAS अंकित कुमार अग्रवाल के कार्य सराहनीय रहें है। इस जाँच के लिए इन सभी अधिकारियो ने राजनैतिक दवाब भी बर्दास्त किया. लेकिन आज यह साबित हुआ है कि सत्य सत्ता से नहीं डरता है.
SIT द्वारा जाँच में पाया गया है कि कुल 30 कर्मचारियों द्वारा शासन के साथ धोखाधड़ी की गई है। जिला प्रशासन में कार्यरत कई कर्मचारियों के बयान दर्ज किये गए। जाँच स्पष्ट हुई कि सभी फर्जी तरीके से नौकरी कर रहें है।जिसमे लिपिक संवर्ग में नियम विरुद्ध तरीके से विनियमित हुए है। SIT ने जाँच में यह भी खुलासा किया है कि इन सभी कर्मचारियों पर कार्यवाही की गई है।….
वर्तमान में कार्यरत 4 बरिष्ठ सहायक कर्मचारी मौजूद भी है👇.
1- नरेंद्र कुमार यादव
2- महेश कुमार यादव
3- विनीत कुमार
4- हरिनंदन सिंह पिता के स्थान पर नौकरी
इन सभी ☝️के खिलाफ जिलाधिकारी द्वारा आदेश दिया गया है कि सभी को पद से हटा दिया जाये व सभी से सेवाकाल के दौरान लिए गए सभी प्रकार के भुगतानो की रिकवरी के आदेश दिए गए है।
इनमे से करीब 14 कर्मचारी, बच्चन लाल, सरदार सिंह, सर्वेश कुमार, अशरफ अजीज, अशोक कुमार, आराम सिंह, होती लाल, कैलाश नारायण, राजीव कुमार सक्सेना, वासुदेव, इंतजार हुसैन, परशुराम, दाऊद खा, महेद्र पाल सिंह, की पेंशन रोकने व सेवाकाल के दौरान सभी लिए गए भुगतानो को रिकवर करने के आदेश दिए गए है।
SIT की जाँच में सामने आया है कि 30 डकैतो की पोस्टिंग की फ़ाइल को 3 कर्मचारियों ने गायब की थी. जिसमे SIT को रतन पाल सिंह, सतेंद्र पाल सिंह, राकेश कुमार शर्मा को दोषी माना है. जिसमे से दो कर्मचारियों की मृत्यु भी हो गई है. एक रतन पाल सिंह की पेंशन को रोकने के आदेश दिए गए है व मृतक कर्मचारियों के परिजनों की पेंशन रोकने के आदेश दिए गए है.
इनमे से करीब 11 कर्मचारी कासगंज जनपद में कार्यरत है या फिर सेवानिवृत हो चुके है, अभी तीन कर्मचारी कार्यरत है
इस कहानी का असली सार 👇
ऐसा नहीं है कि कर्मचारियों के पास इतना पैसा नहीं है कि कोई खरीदा नहीं जा सकता था या राजनीती नहीं हो सकती थी. लेकिन इस फ़ाइल का अंतिम पड़ाव आ चूका था क्योंकि कई अधिकारियो ने इन डकैतो को बचाया था लेकिन हुआ यह कि अभी कुछ महीनों से इन्ही डकैतो ने जिला प्रशासन को आंखे दिखाना शुरू कर दिया था.
कुछ ऐसे भी डकैत थे जिन्हे यह महसूस होता था कि जिलाधिकारी प्रेम रंजन सिंह को इस फ़ाइल की भनक नहीं लगेगी और अपनी मर्जी से पोस्टिंग भी लेंगे और जिला प्रशासन का आदेश मानेगे भी नहीं..
खैर SIT ने यह जाँच एक बर्ष पूर्व ही कर ली थी।कि इस डकैती के असली डकैत कौन-कौन है और किस सीट पर बैठे है. यही कारण रहा कि इन डकैतो से महत्वपूर्ण सीटे छिनी गई और अब SIT ने सीट ही छीन ली है.
इस बड़ी कार्यवाही में जिलाधिकारी प्रेम रंजन सिंह के निर्देशन में अपर जिलाधिकारी सत्य प्रकाश द्वारा इन सभी को अपने पदों से हटाने के साथ ही रिकवरी के आदेश भी दिए गए है। अमूमन देखा जाता है कि जिला प्रशासन अपने यहां के मामलो को मिडिया में नहीं आने देता है लेकिन इस पुरे प्रकरण को जिलाधिकारी द्वारा प्रेस नोट जारी कर मिडिया को सूचित किया है। कि यह 1993 के वही फर्जी कर्मचारी है!!
पी एस राजपूत