भाईचारा को दरकिनार करने वालों के दिलों में रोशनी की एक किरण पहुंचे, यह दीप पर्व पर हमें संकल्प लेना चाहिए। देश में आज जिस तरह आदिवासियों, दलित, पिछड़ों और तमाम अल्पसंख्यकों के बीच कटुता पनपाई गई है उनसे भारतीय सनातन धर्म और संस्कृति को गहरा धक्का लगा है। यह कभी ज़रूरी नहीं था कि सिर्फ हिन्दू ही दीपोत्सव मनाएं यह तो सम्पूर्ण भारतवासियों के लिए खुशी का पर्व होता रहा है।
क्या मुसलमान, ईसाई, जैन, बोद्ध, आदिवासी और समाज का कामगार वर्ग इसमें बड़ी तादाद में शरीक होते रहे हैं। यह राम की अयोध्या वापसी का सबब तो था ही किंतु, संपूर्ण देश में इसकी पहुंच की वजह ख़रीफ़ फसलों के आगमन से जुड़ा था। किसान उससे जुड़े कामगार तथा ख़रीद बढ़ने के आरज़ूमंद व्यापारी इसका महत्वपूर्ण हिस्सा थे। शादी ब्याह की बाट जोहते पंडित जी तथा सस्ते अनाज की चाहत वाला कर्मचारी वर्ग भी इस खुशी में शामिल होता था। घर घर लक्ष्मी पूजा का विधान भी इसलिए विकसित हुआ क्योंकि, इस खुशी के पीछे कहीं ना कहीं धन की आमद जुड़ी थी।
किंतु इसे बदरंग कर दिया कारपोरेट जगत ने उसने हर व्यक्ति की स्वतंत्र आय पर डाका डालना शुरू कर दिया। उसकी हर क्षेत्र में घुसपैठ ने लोगों की खुशी छीन ली। अब हर माल का रेट कारपोरेट तय करने लगा जिससे तमाम लक्ष्मी इन पूंजीपतियों के घर बंधक बन गई। सारी खुशियां इस वर्ग ने हड़प लीं और सार्वजनिक क्षेत्र लगभग मृत प्राय हो गया। किसान, कामगार और तमाम लोगों का जुड़ाव खत्म किया गया। जिससे ना केवल मंहगाई बढ़ी बल्कि, रोजगार भी जाते रहे। जिससे देश में चारों ओर गहन अंधेरा फैल गया है। देश की सारी अमानत चंद अमीरों के पास सिमट गई है, 80 करोड़ लोग आज भी पांच किलो राशन में लगे हुए हैं। मेहनत कश भारत के लोगों का ये हाल देखकर किसको खुशी मिल सकती है।
इस ग़म के साथ तमाम देशवासियों के बीच भाईचारा बिगाड़ कर सनातन संस्कृति की वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा को लुप्त प्राय कर दिया गया है। सोचिए, जिस देश में तमाम वसुधा को कुटुम्ब माना गया हो वहां इंसान ही इंसान के खून का प्यासा हो जाए। उसे उसकी जन्मभूमि से हटाने की कोशिश हो। बच्चों स्त्रियों पर रहम की जगह बलात्कारियों और अपराधियों का स्वागत सत्कार हो। उस देश से इस पावन पर्व पर भाईचारा कायम रखने की ज़िद यदि हमारे भीतर नहीं जन्मती है तो हमें अपने आपको भारतीय कहना अनुचित है।
इस बिगड़े माहौल में एक सिरफिरा राहुल गांधी, महात्मा गांधी के शांति और अहिंसा के पथ पर चलकर पूरे भारतवर्ष में भारत जोड़ो यात्रा पर दो चरणों में निकलता है। उसे आम जनता का अपार स्नेह मिलता है। यह तो इस बात को सिद्ध करता है कि देशवासियों में अपनी गंगा-जमुना संस्कृति का रंग कितना गहरा है। इसी को अल्लामा इक़बाल ने बहुत पहले भांप लिया था और कहा था कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। यकीनन कितने भी कठिन दौर आए और निकल गए। हमारी संस्कृति अमिट रही यकीन रखिए ये अंधेरा भी छटेगा। हम सब के एका प्रयासों से।
इसके लिए, बार बार हमें यह भी सोचना होगा कि देश को हिंदु राष्ट्र नहीं बनाना है। हम सब सनातन संस्कृति और धर्म के पोषक हैं। रंग-बिरंगी संस्कृति और विविध उत्सव हमारी शान और पहचान हैं। हमें अपने देश में रहने वाले हर व्यक्ति का सम्मान करना होगा। आदिकाल से हमने ना जाने कितने धर्मावलंबियों को शरण दी है, जिससे हमारे रंगों और उत्सवों में वृद्धि हुई है। इस बड़प्पन को बनाए रखने हम पुरातन की तरह हर पर्व को खुशहाली से मनाएं। हमारे समाज में आई विकृतियों को दूर करें। धन का सही वितरण हो। हर कौम को अपनी मेहनत का हिस्सा मिले। वह राशन की लाईन में ना लगे। ऐसे प्रयासों में लगना होगा। बंधक लक्ष्मी को आज़ाद कराना होगा।
हज़ारों दीप जलाने से बेहतर हैं हम सर्वे भवन्तु सुखिना की भावना का परिचय देते हुए इस नफ़रत के माहौल को बदलने हेतु घर-घर में मोहब्बत का एक दीप जलाएं। यकीन मानिए यह देश की समृद्धि और विकास के लिए हमारा सबसे बड़ा अवदान होगा। इतिमंगलम।
स्मरण हेतु