सत्य की खोज बेकार

आज की बात

आलेख,शंकर देव
आजकल की राजनीति कुछ समझ में नहीं आ रही। कौन कब क्या कहने लगे ठीक नहीं है। नेता तो अब लगता ही नहीं कि वो समाज सेवी हो। जन प्रतिनिधि शपथ लेने के बाद शपथ के विपरीत ही काम करना शुरू कर देता हे। मीडिया ट्रायल का दर्द भी नाशूर बनता आ रहा है। आक्कल् अरविंद केजरी वाल का मामला ही ले लें। कैसे कैसे आरोप लगाए जा राहै हैं। जेल राज्य सरकार के अंदर में मगर वहाँ की खामियां भी केंद्र पर थोप रहे हैं। और टीवी चैनल देख लो तो ऐसे लग रहा है जैसे कोई विज्ञापन चल रहा हो। वे दर्शकों का भ्रम दूर होने ही नहीं देते। बिना किसी शिकवे शिकायत के पी एम तक को आरोपित कर अपने आप को इमानदार जताने के लिए कोहराम मचा रखा है
दोषी सिद्ध नेता हाई कोर्ट से झूठ बोल जमानत नए मीलों मे करा के चुनाव में बढ़ चढ़कर भाग लेकर न्याय पालिका का मजाक उदवाते हुए नई पीढ़ी को अंधेरे में रहने को मजबूर किये दे रहे हैं। आरोप प्रत्यारोप को वेदखल कर भी चुनावी संहिता नहीं लग रही है। ये चुनाव ऐसे लगता है जैसे सरकार के लिए नहीं वरन व्यक्ति विशेष के लिए हो रहा हो । विपक्ष बिना संयुक्त एजेण्डा के एक दिख के भी एक नहीं लग रहा है। जो लोग भृष्ट पृमाणित होकर भी आम जन को बदनाम किये दे रहे हैं। दोष सिद्ध अपने मामलों को फिर से दूसरी और मोड़ें दे _ रहे हैं। जो इस शर्त पर जमानत पर हैं कि वो अपने ऊपर लगे मामले पर टिप्पणी नहीं करेगा। वे सिर पैर के आरोप।

बीजेपी को चाहिए वो इलक्ट्रॉल बॉण्ड पर श्वेत पत्र जारी करे जिसमें सभी कुछ उजागर करें। जिससे मजाक बनती जा रही न्याय प्रक्रिया का मान समान बच सके। सजा याफ्ता तक जो कह रहे हैं कि वे फसाए गए। जो आरोपित जिस लिए हैं पर हो रही कार्रवाई को कैसे प्रभावित करके न्याय प्रक्रिया को प्रभावित कर रहे हैं।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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