जौनपुर में खेतों में दौड़ते-दौड़ते किसान बना मैराथन धावक, 65 की उम्र में 66 से अधिक जीते मेडल…

जौनपुर में खेतों में दौड़ते-दौड़ते किसान बना मैराथन धावक, 65 की उम्र में 66 से अधिक जीते मेडल
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साठ की उम्र पूरी होने पर जब लोग जीवन की भागदौड़ से थककर आराम करना चाहते हैं, तब उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के सभाजीत यादव(65) मेडल बटोरने में जुटे हुए हैं। देश-प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में होने वाली मैराथन में वह अब तक 65 से अधिक मेडल अपने नाम कर चुके हैं।

अभी भी उनका जोश कम नहीं हुआ है। हौसलों के बल पर मुश्किलों को मात देते हुए वह अंतर्राष्ट्रीय फलक पर भारत का परचम लहराने के लिए निरंतर प्रयास में जुटे हैं।

मछलीशहर तहसील क्षेत्र के अदारी डभिया गांव निवासी सभाजीत यादव पेशे से किसान हैं। उनके पास डेढ़ बीघा भूमि है। शुरू से ही खेलों में रुचि रखने वाले सभाजीत जिला स्तर पर होने वाली विभिन्न खेल स्पर्धाओं में हिस्सा लेकर मेडल जीतते रहे। कभी भाला फेंका (जेवलिन थ्रो) तो कभी सौ, दौ सौ और आठ सौ मीटर की दौड़ जीती।

आर्थिक स्थिति ठीक न होने से वह ज्यादा पढ़ाई नहीं कर सके। घर-परिवार की जिम्मेदारियां बढ़ीं तो खेल को ही अपना प्रोफेशन बनाने का निर्णय लिया।

मैराथन कम खर्चीला और अधिक आयोजनों वाला खेल था, लिहाजा उन्होंने इसमें ही आगे बढ़ने का सोचा। खेत में ही दो सौ मीटर का ट्रैक बनाया और उसी पर अभ्यास शुरू किया।

45 की उम्र से मैराथन दौड़ते हुए वह 65 की आयु तक पहुंच चुके हैं, लेकिन अब भी जोश वैसे ही बरकरार है। दिल्ली, मुंबई, बैंगलुरु, चेन्नई सहित देश के किसी भी शहर में मैराथन का आयोजन होता है तो जौनपुर के सभाजीत यादव की हिस्सेदारी जरुर होती है।

अब तक वह 16 बार फुल मैराथन (42 किमी) और 25 बार हाफ मैराथन (21 किमी) जीत चुके हैं। 25 से अधिक क्रॉस कंट्री रेस का इनाम भी उनके नाम है। डेढ़ बीघा की खेती और मैराथन की प्राइज मनी ही उनकी आजीविका का साधन है।

सभाजीत के मुताबिक साल में करीब डेढ़ से दो लाख रुपये तक वह मैराथन जीतकर कमा लेते हैं। इसी माह 29 को दिल्ली में एयरटेल हाफ मैराथन होने जा रहा है। इसकी तैयारी में वह जुट हुए हैं। इसके बाद मुंबई में होने वाली स्पर्धा पर भी ध्यान रहेगा।

65 की उम्र में भी सभाजीत यादव थके नहीं है। उनका कहना है कि कम से कम अगले दस वर्ष तक वह मैराथन दौड़ना चाहते हैं। इसके लिए वह रोजाना करीब 10 से 15 किमी की दौड़ लगाते हैं। खेत में ही दो सौ मीटर का ट्रैक तैयार किया है।

इसी पर उनका अभ्यास चलता रहता है। अभ्यास के बाद वह खेती करते हैं और फिर जरुरी काम निपटाकर अभ्यास में जुट जाते हैं। उनका कहना है कि ऐसा करने से उन्हें फिट रहने में भी मदद मिलती है।

सभाजीत का कहना है कि वह देश के लिए दौड़ना चाहते हैं। भारतीय तिरंगा लेकर विदेशी धरती पर दौड़ना उनका सपना है, मगर आर्थिक स्थिति के कारण यह साकार नहीं हो पाया है। अब जल्द ही पैसे इकट्ठे कर वह पासपोर्ट बनवाएंगे।

सभाजीत के तीन पुत्र है राहुल(22), रोहित(20) और रोहन(15)। तीनों बेटे भी पिता की राह पर चलकर खेलों में ही हुनर दिखा रहे हैं। कम संसाधन के बाद भी सभाजीत यादव ने उन्हें भाला फेंकना सिखाया है।

बड़ा बेटा राहुल नेशनल स्तर जेवलिन थ्रो का खिलाड़ी रहा है। दूसरा बेटा रोहित वर्ल्ड स्कूल गेम-2016 में गोल्ड, एशियन यूथ चैंपियनशिप-2017 में सिल्वर, यूरासिन एथलेटिक्स मीट-2019 में गोल्ड सहित कई मेडल जीत चुका है।

ओलंपिक की तैयारी में जुटा रोहित एनआईएस पटियाला में अभ्यास कर रहा है। सबसे छोटा रोहन हाईस्कूल में पढ़ाई के साथ भाला फेंक में ही अभ्यास कर रहा है।
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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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