टेसू का खिल-बताशे से पूजन कर किया विसर्जन



एटा, । नवरात्र के अंतिम दिन रात्रि से बच्चे घर में टेसू-झेँजी लेकर आते हैं। घर-घर जाकर टेसू मांगते हैं। यह प्रथा प्राचीन काल से चली आ रहे हैं। जिससे बच्चों के वैदिक, आध्यात्मिक, सामाजिक उत्थान की भावना जागृत होती है।
लोक कथाओं में टेसू को लोग एक प्राचीन वीर के रूप में याद करते हैं। शारदीय नवरात्र के बाद शरद पूर्णिमा के दिन टेसू तथा सांझी (झोंझिया) का विवाह भी संपन्न कराया जाता है। इस त्योहार का शरद पूर्णिमा की रात को समापन हो जाता है। आमतौर पर टेसू का ढांचा बांस की तीन लकड़ियों को जोड़ कर बनाया गया स्टैंड होता है। प्रातकाल पूर्णमासी पर घर-घर जाकर अंतिम दिन बच्चों और बच्चियों द्वारा टेसूह्वअटेर करें, टेसू मटर करें ’ टेसू लेकर ही टरे।
गाना सुनाया। घरों से लोगों ने बच्चों को पैसे, टॉफी, बिस्कुट, किताबें पेंसिल सामान दिए जाते हैं। उसके बाद 11 बजे करीब बच्चों ने टेसू-झेंझी को खिल-बतासों से पूजन कर जल में प्रभावित किया गया ’ टेसू और झेंजी कार्यक्रम में पावनी, छवि गुप्ता, काव्या सिंह, खुशी काकुस्थ, अनुराग, अनिरुद्ध, अनंत, बांसू, अंशी, अवनी शामिल रहे।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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