
प्रकृति की अनमोल धरोहर और हर किसी के बचपन की यादों में मिठास घोलती गौरैया आज संकट में है!तेजी से बदलते पर्यावरणीय परिदृश्य और आधुनिक जीवनशैली ने इस नन्ही सी चिड़िया को हमारे घर-आंगन और खेत-खलिहानों से लगभग विलुप्ति की कगार पर पहुंचा दिया है। गौरैया केवल एक पक्षी नहीं, बल्कि हमारे पारिस्थितिकी संतुलन का अहम हिस्सा है, जो कीट-पतंगों की संख्या को नियंत्रित करने और प्राकृतिक जैव विविधता बनाए रखने में सहायक होती है। इसके संरक्षण की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए हर वर्ष ‘विश्व गौरैया दिवस’ मनाया जाता है, ताकि लोगों को इसके अस्तित्व को बचाने के लिए जागरूक किया जा सके और इसे संरक्षित करने के लिए प्रयास किए जाएं। गौरैया संरक्षण के लिए हमें अपने घरों के आसपास के वातावरण को उनके अनुकूल बनाना होगा। खुले स्थानों में दाना- पानी की व्यवस्था करनी होगी। पुराने पेड़ों को बचाना होगा। कृत्रिम घोंसले उपलब्ध कराने होंगे। अगर हम छोटी-छोटी पहल करें, तो यह नन्ही चिड़िया फिर से हमारे आंगन में चहक सकती है। गौरेया हमारी लोक संस्कृति में भी रची-बसी है। इसे बचाना हमारा नैतिक कर्तव्य है।