हिंदू साधु-संत भी गुरु निकले। सिर्फ गुुरु ही नहीं विश्व गुरु के भी गुुरु

राजेंद्र शर्मा के तीन व्यंग्य

1. बच्चे तीन या ज्यादा ही अच्छे

हिंदू साधु-संत भी गुरु निकले। सिर्फ गुुरु ही नहीं विश्व गुरु के भी गुुरु। कुंभ का मौका देखकर भाई लोगों ने हिंदू राष्ट्र बनाने का एलान ही कर दिया है। और हिंदू राष्ट्र कोई यूं ही किसी लप्पे में नहीं बन जाएगा। बकायदा, हिंदू राष्ट्र का संविधान बनाया जाएगा। बनाया क्या जाएगा, संविधान तो बनकर भी तैयार है। पूरे बारह महीने और बारह दिन लगाकर संविधान बनाया गया है। उत्तर भारत के 14 और दक्षिण भारत के 11 यानी कुल 25 विद्वानों ने मिलकर यह संविधान तैयार किया है। बसंत पंचमी पर, 3 फरवरी को कुंभ में 501 पन्नों का यह संविधान जनता के लिए जारी किया गया। चार पीठों के शंकराचार्यों की सहमति के बाद, इसे केंद्र सरकार को भी भेज दिया जाएगा। यानी सब कुछ के बाद, हिंदू राष्ट्र की गेंद मोदी जी के ही पाले में। पर इसमें विश्व गुरु के भी गुरु वाली क्या बात हुई? गुरु के भी गुरु वाली बात यह हुई कि संविधान बन भी गया, पर उसे लागू करने की कोई जल्दी भी नहीं है। मोदी जी आराम से अपना टैम ले सकते हैं। साधु-संतों ने अपनी तरफ से तो 2035 तक का टैम दे दिया है। यानी हिंदू राष्ट्र के संविधान के साथ ही साथ, साधु-संतों ने हिंदू राष्ट्र लाने के लिए मोदी जी को दस साल की मोहलत भी दे दी है। अम्बेडकर वाला संविधान नहीं बदलने के वादे करते रहने के लिए दस और साल! वैसे इसमें भी गुरुओं वाला एक पेच है। हिंदू राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष के पद के लिए भाइयों ने वर्णाश्रम व्यवस्था की पुनर्स्थापना समेत ऐसी शर्तें लगा दी हैं कि मोदी जी का पत्ता खुद-ब-खुद कट जाएगा। यानी एक तरफ से देखा जाए, तो मोदी जी को दस साल की मोहलत और दूसरी तरफ से देखा जाए तो, गद्दी खाली करने के लिए दस साल का नोटिस!

पर एक बात हमारी समझ में नहीं आयी। क्या राम मंदिर बनने के बाद बेचारे विश्व हिंदू परिषद वाले, हिंदू साधु-संतों के लिए इतने पराए हो गए हैं कि, उनकी एक छोटी सी डिमांड को हिंदू राष्ट्र के संविधान में शामिल नहीं किया जा सकता था? बेचारे विहिप वाले अलग से हिंदुओं से कम से कम तीन बच्चे पैदा करने की मांग करते फिर रहे हैं। उनकी इत्ती-सी मांग को क्या हिंदू राष्ट्र के संविधान में शामिल नहीं किया जा सकता था? जो कम से कम तीन बच्चे पैदा कर के दिखाए, वही सच्चा हिंदू कहलाए। जो चार या ज्यादा बच्चे पैदा कर के दिखाए, अच्छा हिंदू कहलाए। वोट देने से लेकर चुने जाने तक, सारे अधिकार वही पाए, जो सच्चा हिंदू बनकर दिखाए! क्या सिर्फ इसलिए कि मोदी जी कहीं डिसक्वालीफाई नहीं हो जाएं, हिंदू राष्ट्र में भी बेचारे विहिप वाले ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए हिंदुओं से मिन्नतें ही करते रहेेंगे? हिंदू राष्ट्र में तो मोदी जी को वैसे भी जाना होगा, फिर चाहे तीन बच्चों की शर्त के लिए डिस्वालीफाई हों या वर्णाश्रम धर्म की पुनर्स्थापना के लिए। कहीं विहिप की तीन बच्चों की मांग और हिंदू राष्ट्र के संविधान में असली झगड़ा इसका तो नहीं है कि हिंदू राष्ट्र का संविधान मनुस्मृति और चाणक्य के अर्थशास्त्र के अलावा राम राज्य और कृष्ण के राज्य पर आधारित है। तीन या ज्यादा बच्चों के मानदंड पर तो खुद सिया-राम ही पूरे नहीं उतरते हैं, फिर उसे हिंदू राष्ट्र के संविधान में कैसे जोड़ सकते हैं।

तो क्या हिंदू राष्ट्र में भी हिंदू खतरे में ही रहेंगे और बेचारे विहिप वाले ऐसे ही गली-गली, शहर-शहर बच्चे तीन या ज्यादा ही अच्छे की गुहार लगाते रहेंगे।


2. गोडसे के सम्मान में गांधी जी का सत्याग्रह

गांधी जी ने तो अब की बार हद्द ही कर दी। मरण दिवस पर शाह साहब की दिल्ली पुलिस ने जरा-सी नरमी क्या दिखाई, बुढ़ऊ ने अंगरेजों के टैम वाले अपने पुराने लटके-झटके दिखाने शुरू कर दिए। न प्रेस के जुटने की चर्चा की और न मीडिया को इकट्ठा करने का जतन किया। नेताओं, समर्थकों, किसी को कोई संदेश भी नहीं दिया। बस सुबह-सुबह राजघाट पर अपनी समाधि के चबूतरे पर पालथी मार कर बैठ गए। पास में गत्ते की एक तख्ती पर लिख कर लगा दिया — गोडसे अन्याय प्रतिकार उपवास — 30 जनवरी 2025, मो.क. गांधी।

शासन-प्रशासन ने पहले तो नोटिस ही नहीं लिया। इतने लंबे-चौड़े राजघाट पर, इतनी छोटी, दुबली काया और वह भी चारों और की शांति के बीच पालथी मारकर बैठी हुई। एक नारा तक नहीं। पर तभी किसी अधिकारी को ध्यान आ गया कि गांधी तो अब भी राष्ट्रपिता हैं। राष्ट्र माने न माने, मैं राष्ट्रपिता। और राष्ट्रपिता का मरण दिवस। पुरानी चाल के चक्कर में अगर पीएम जी का समाधि पर जाकर फूल चढ़ाने का मन कर गया तो? फिर क्या था, अघट की आशंका से नीचे से ऊपर तक और ऊपर से नीचे तक, सारा सरकारी अमला कांपने लगा। क्या होगा, अगर पीएम जी पहुंच जाएं और राष्ट्रपिता को सत्याग्रही मुद्रा में पाएं। गांधी जी के लिए तो खेल हो जाएगा, पर बेचारे पीएम क्या ऐसा सदमा झेल पाएंगे। राष्ट्रपिता का सत्याग्रह और वह भी ऐन पीएम के सामने।

नीचे से ऊपर की तरफ हरकारे दौड़े ; क्या करें? राजघाट के लिए छोटे से बड़े तक, सारे अफसर दौड़े ; इस आफत से कैसे बाहर आएं। छुट-पुट तौर पर मीडिया वाले भी दौड़े ; कहीं किसी बड़ी खबर को कवर करने में पूरी तरह से चूक ही नहीं जाएं। पहुंचते-पहुंचते पुलिस के बिचले अफसरों की सूझ आयी, बुढ़ऊ को उठाकर राजघाट के ही किसी कोने में पधरा दिया जाए। वहां बहुत झाड़ हैं, बुढ़ऊ छिप जाएंगे और पीएम जी को दूर से बिल्कुल नजर नहीं जाएंगे। फिर भी जरूरत हुई, तो कनात के पीछे ढांप देंगे। पीएम जी फिरकर निकल जाएं, फिर बुढ़ऊ कहीं भी बैठें और चाहे कुछ भी करते रहें। जंगल में मोर नाचा, कौन देखने वाला है! पर बिचले से जरा से ऊपर वाले बाबू ने हड़का दिया। दिमाग तो ठीक है। जैसे भी हैं, जब तक भी हैं, राष्ट्रपिता हैं। उन्हें छू भी नहीं सकते, उठाकर कहीं और रखने की बात तो मन में लाना भी मत। जरा सी ऊंच-नीच हुई, तो हम सब नप जाएंगे। तुम तो इंतजाम देखो कि किसी तरह से भीड़ जमा नहीं होने पाए। और ज्यादा मीडिया-वीडिया भी नहीं जमा होने पाए। न हो तो, सब को गेट से काफी पहले ही रोक दो। बिचले पुलिस अफसर ने अपनी खीझ दबाकर सुझाया, राजघाट पर पुरानी धारा-144 लगा देते हैं। चार के बाद, पांचवें बंदे को घुसने ही नहीं देंगे।

सत्याग्रही गांधी के सामने अफसरों की भीड़ जमा हो गयी। मीडिया वाले पीछे धकिया दिए गए और ओहदे के हिसाब से बाकी अफसर आगे-पीछे हो गए। सीनियर सेक्रेटरी के दर्जे के एक अधिकारी ने गला खंखार कर, बात शुरू की। आप राष्ट्रपिता हैं। आज तो आपका ही दिन है। राष्ट्र आपका कितना सम्मान करता है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि एक आप ही हैं, जिसके लिए राष्ट्र ने दो-दो दिन एलॉट कर रखे हैं। जन्म का दिन भी और मरण का दिन भी। खुद पीएम चलकर श्रद्धांजलि अर्पित करने आप की समाधि पर आते हैं। आपको सत्याग्रह का सहारा लेना पड़े, यह तो हमारे लिए शर्म से डूब मरने की बात है। जरूर कहीं कुछ मिस-कम्युनिकेशन हुआ है, वर्ना आपको सत्याग्रह में उपवास करने की तो क्या, अपनी मांग बताने की भी जरूरत नहीं होनी चाहिए थी। आपकी इच्छा तो बिना कहे खुद-ब-खुद पूरी हो जानी चाहिए थी। इसमें चूक हुई, उसके लिए हमें खेद है। खैर! आप तो बस इतना बताएं कि करना क्या है?

गांधी जी ओठों की कोर से मुस्कुराए। सत्याग्रही की मांग एकदम सरल है। गोडसे जी के साथ अन्याय अब बंद होना चाहिए। बहुत हुआ, अब और नहीं। बस यही प्रार्थना है कि गोडसे जी को उनका समुचित सम्मान मिले। जीते जी न सही, मरणोपरांत ही सही, कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से गोडसे जी को पूरा मान मिले। भारत रत्न न सही, कम से कम पद्म विभूषण का मान मिले। बस इतनी ही मांग है।

वरिष्ठ सचिव जी चकरा गए। ये गोडसे के सम्मान का क्या चक्कर है? बेशक, गांधी जी के लिए कुछ भी असंभव नहीं था। और यह दिखाने के लिए तो कि उन्हें गोडसे जैसे अपने विरोधी की भी कितनी चिंता है, वह कुछ भी करेंगे, किसी भी हद तक चले जाएंगे। पर ये गोडसे का मामला इस समय आया तो आया कहां से?

वरिष्ठ सचिव जी कहने लगे कि बड़े लोगों की बड़ी बातें। आप इतने महान हैं कि आप की बात हम साधारण लोगों को तो उलटबांसी जैसी लगती है। गोडसे ने आपको तीन गोलियां मारीं — धायं, धायं, धायं! आपके प्राण लेने के लिए, आपके प्रति कृतज्ञ राष्ट्र ने गोडसे को फांसी भी दे दी। पर अपको गोडसे के सम्मान की चिंता है। आप उसके साथ हो रहे अन्याय का निराकरण चाहते हैं। आप हैं ही इतने महान। पर सरकार इसमें क्या कर सकती है, सिवाय पब्लिक के बीच गोडसे का जो सम्मान इस राज में तेजी से बढ़ रहा है, उसकी तरफ से आंखें मूंदे रखने के?

गांधी जी रुक-रुक कर बोले — मांग तो मैंने बता दी, गोडसे को कम-से-कम पद्म विभूषण। रही बात अन्याय की तो, एक आंख भी खोलकर देखेंगे, तो साफ दिखाई दे जाएगा। साध्वी ऋतंभरा को पद्म भूषण और गोडसे का सवा सौ, डेढ़ सौ नामों में जिक्र तक नहीं ; यह सरासर अन्याय नहीं तो और क्या है? मस्जिद को शहीद करने के लिए पद्म भूषण, तो राष्ट्रपिता को शहीद करने के लिए पद्म विभूषण तो बनता ही है। बस, वही दिला दीजिए। बस सत्याग्रह खत्म।

सचिव जी घबरा कर बोले, पर सर इस बार के पद्म पुरस्कारों की सूची तो निकल गयी। वैसे भी सारे हिंदुत्ववादी तो एक साथ नहीं भर सकते। आपका आग्रह है, तो अगली बार जरूर गोडसे जी को एकोमोडेट करने का प्रयास किया जाएगा। गांधी जी बोले, फिर ठीक है, मेरा सत्याग्रह भी तब तक जारी रहेगा। अब आप लोग जाएं, मेरा प्रार्थना का समय हो रहा है।

इसी बीच सचिव जी के पास संदेश आ गया, पीएम जी नहीं आ रहे हैं। पूरी सरकार ने राहत की सांस ली। पर बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी। गांधी जी भी जिद्दी हैं, गोडसे को साध्वी ऋतंभरा से बड़ा पुरस्कार दिला कर रहेंगे।


3. थैंक यू योगी जी, कुंभ में मोक्ष का भी इंतज़ाम करा दिया!

गलत नहीं कहते हैं कि भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं है। बेशक, मौनी अमावस्या से बसंत पंचमी तक, कुंभ की भगदड़ के पीछे साजिश की बू आने में चार-पांच दिन की देर हो गयी। पर योगी जी ने अंधेर नहीं होने दिया। अपनी पुलिस को एसटीएफ यानी विशेष जांच दल बनाकर, किसी न किसी तरह का षडयंत्र सूंघकर निकालने के काम पर लगा दिया।

ऊपर से विशेष आदेश और दे दिया कि अब तक जो देर हुई सो हुई, अब देर नहीं, तड़ातड़ी होगी। दिनों नहीं, घंटों में ही षडयंत्र की स्टोरी सामने होगी। और होनी भी चाहिए। भक्त बेचारे कब तक कभी सोनिया गांधी द्वारा राष्ट्रपति के अपमान, तो कभी आयकर छूट से मिडिल क्लास के टोटल कल्याण की हैडलाइनों से, पब्लिक का ही नहीं अपना भी ध्यान बंटाते रहेंगे!

और षडयंत्र तो भैया जब भक्तों को पहले दिन, बल्कि पहले घंटे से ही दिखाई दे रहा था, तब हैरानी की बात है कि योगी जी को षडयंत्र की सूंघ लगने में कई दिन लग गए। क्या करें, योगी जी हैं ही इतने भोले। इतनी सी बात तक नहीं समझे कि जब इश्क और मुश्क तक छुपाए नहीं छुपते हैं, तो मौतें और वह भी भगदड़ की मौतें कैसे छुप जाएंगी?

अगली सुबह तक इंतजार किया, शायद किसी को पता ही नहीं चले। भीड़-भाड़, चुटियल-घायल में ही मामला निपट जाने की उम्मीद लगाए रहे। पर कुछ फायदा हुआ? षडयंत्रकारी सोशल मीडिया वालों और दूसरे छुटपुट मीडिया वालों ने, देश तो देश, दुनिया भर में भगदड़ और मौतों की खबर फैला दी। कर दिया सनातन को बदनाम।

काश योगी जी कुंभ और सनातन की बदनामी के वर्ल्ड लेवल के षडयंत्रों को भांपकर, पहले से ही प्रयागराज में भगदड़ के षडयंत्र का हल्ला मचा देते, तो कम से कम महाकुंभ और सनातन को बदनाम करने के अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्र कामयाब नहीं होते। मोदी जी को देश में न सही, विदेश यात्राओं में काफी परेशान करते हैं ये षडयंत्र।

माना कि यह भी सिर्फ कह देने जितना आसान नहीं था। मुश्किल यह थी कि कुंभ में मुसलमानों के प्रवेश पर करीब-करीब घोषित प्रतिबंध था। मुसलमान दुकान वाले, मुसलमान सेवाएं देने वाले, मुसलमान धर्मगुरु, सब को पहले ही बता दिया गया था कि कुंभ में उनका स्वागत नहीं है। नगरपालिका से लेकर योगी जी तक, सब बता चुके थे कि दुनिया का सबसे बड़ा मेला जरूर है, पर कुंभ सिर्फ सनातनियों का, सनातनियों द्वारा और सनातनियों के लिए है। और मुसलमानों के लिए तो हर्गिज नहीं है। ऐसे में षडयंत्र का इल्जाम लगाते भी तो किस पर? दुनिया तो यही मानती कि मेला सनातनियों का, भीड़ सनातनियों की, भीड़ का रेला सनातनियों का, सनातनियों की भीड़ के पांवों तले कुचल के मरने वाले सनातनी, और सरकार भी सनातनी। इसमें कहां का षडयंत्र, यह तो सनातनियों का शुद्ध रूप से घरेलू मामला है!

बेचारे योगी जी की दशा तो, इधर कुआं, उधर खाई वाली हो गयी होगी। इधर भगदड़ और मौतों का षडयंत्र और उधर, सनातन और कुंभ की बदनामी का षडयंत्र, बल्कि सनातन की बदनामी दोनों में। बेचारे शोर मचाते, तो किस षडयंत्र का शोर मचाते! सो उन्होंने तो जब्त कर के भगदड़ के षडयंत्र का शोर नहीं मचाया, पर सनातन विरोधियों ने सनातन की बदनामी का डंका बजा दिया। खैर! अब तक जो हुआ सो हुआ, अब योगी जी भी षडयंत्र का डंका बजाएंगे और कम से कम भक्तों को इसकी तसल्ली बंधाएंगे कि सनातनियों की जानें बेकार नहीं जाएंगी। कुचल के मरने वालों ने भी कुर्बानी दी है, सनातनी राष्ट्र की खातिर, जैसे पुलवामा के आतंकी हमले में मरने वालों ने राष्ट्र की खातिर कुर्बानी दी थी।

अब बाल की खाल निकालने वाले देते रहें इसकी दलीलें कि कोई इस टाइप का षडयंत्र रचकर, उसे अंजाम देने में कामयाब भी हो गया, तो यह तो डबल इंजन वाले राज की ही नाकामी हुई। पर ऐसी बारीक दलीलों से कोई फर्क नहीं पड़ता है। ऐसी डबल इंजन की नाकामी तो पुलवामा में भी थी और अभी तक है, क्योंकि अब तक पता नहीं चला है कि 300 किलो आरडीएक्स कहां से आया? पर नाकामी से क्या हुआ, चुनाव में तो पब्लिक ने मोदी जी को सजा की जगह इनाम ही दिया, पिछली बार से ज्यादा बहुमत के साथ पीएम की गद्दी का। कौन जाने इस षडयंत्र के शोर का, योगी जी को भी 2027 में ऐसा ही इनाम मिल जाए।

रही बात मौतों-वौतों की तो, अब जब षडयंत्र का शोर मचाने का मन बना ही लिया है, तो मौतों की संख्या की योगी जी को ज्यादा परवाह करने की जरूरत नहीं है। पहली बात तो यह है कि 30 की जो गिनती एक बार बोल दी, योगी जी उसी पर कायम रहेंगे, तो मजबूत नेता ही माने जाएंगे। मजबूत नेता, गिनती करने में नहीं, बताने में विश्वास करते हैं। एक गिनती बता दी तो बता दी, बार-बार क्या बदलना। बाकी सब कुछ मैनेज करने के लिए पुलिस-प्रशासन तो है ही। मरने वालों की गिनती फालतू हो रही हो, तो लिस्ट दो ही मत। मिट्टी भी मत दो। या मरने वालों के घरवालों से चिट्ठी लिखा लो, मरने वाला खुद मरा था, अपनी मर्जी से। या रेत में दबा दो। और यह तो उनके लिए है जो सनातनी होकर भी, ऐसे शुभ मुहूर्त में गंगा के किनारे हुई मौतों को भी सिर्फ मौत ही मानने पर अड़ जाएं। वर्ना बाकी सब के लिए तो बागेश्वर धाम का फलसफा है ही। जाना तो सभी को है, किसी को दस साल बाद, किसी को बीस साल बाद, किसी को तीस साल बाद। पर जो गंगा के तट तक पहुंचकर चला जाए, उसे मृत्यु नहीं, मोक्ष कहते हैं। थैंक यू योगी जी, मोदी जी, कुंभ में मोक्ष का भी इंतजाम करा दिया!

बस एक ही बात मन में खटक रही है। जब कोई मौत ही नहीं हुई, तो एसटीएफ काहे के षडयंत्र की जांच करेगी? क्या प्रयागराज के षडयंत्रकारियों को भी सनातनियों को मोक्ष दिलाने में मदद करने के लिए, थैंक यू लैटर दिए जाएंगे!

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोक लहर’ के संपादक हैं।)

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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