एटा जेल राजनैतिक आग में तो नहीं झूलस रही है!

एटा कारागार में बंदी रक्षक राजीव कुमार द्वारा जेलर प्रदीप कुमार कश्यप व दो अन्य कर्मचारी जहान सिंह व अरविन्द सिंह पर भी उत्पीड़न के आरोप लगाए है.

आपको बता दे कि कई महीनों से एटा कारागार में राजनीती की आग सुलग रही थी लेकिन मिडिया सहित तमाम संस्थान चुप्पी साधे हुए थे। शासन द्वारा प्रदत्त सभी सामिग्री बंदियों को तो मिल रही है लेकिन कारागार में बंदी रक्षकों को छुट्टी ओर छूट नहीं मिलने से एक गर्म माहौल बना हुआ था. आज वो राजीव कुमार के मुँह से फूट गया.

बंदी रक्षक राजीव कुमार ने जितना भी वीडियो में कहा है काफ़ी हद तक सही भी है क्योंकि जेलर प्रदीप कुमार कश्यप द्वारा छुट्टी का मसला पूर्व में भी कार्यरत सिपाहियों द्वारा लिया गया था लेकिन जेल की व्यवस्था में ताकत नहीं जुटा पाया था.

राजीव कुमार द्वारा यह भी आरोप लगाए गए है कि जेलर द्वारा महिलाओ की मांग की जाती है यह अभी तक न सामने आया है ओर न किसी मिडिया संस्था द्वारा प्रत्यक्ष में आया है।न ही कोई ऐसी महिला सामने आई है जिसने इन आरोपों पर अपनी सहमति दी है.

हमारे द्वारा यह निश्चित रूप से खबर को निकाल कर लाया गया है कि जेलर प्रदीप कुमार कश्यप की सख़्ती की वजह से जेल में बाहर से लाई जाने वाली बंदी रक्षको द्वारा अवैध बस्तुओ पर रोक जरूर लगाई गई है।जिससे बड़े स्तर की कमाई पर ब्रेक लगा है. इससे दो बड़े फर्क देखने को मिले है कि जेल में बंद बड़े माफियाओ को सुविधा के सामान नहीं मिल पा रहें है। दूसरा बंदी रक्षकों को धन उगाही का रास्ता बंद हुआ है. हम यह भी कतई नहीं मानते है कि अंदर कुछ अवैध नहीं जाता है। बिना अवैध के जेल की स्थिति बिगड भी जाएगी ओर हाहाकार भी हो जाएगा. वर्तमान की परिस्थिति को देखने से यह लगभग तय है कि अधीक्षक अमित चौधरी व जेलर प्रदीप कुमार कश्यप की देख रेख में जेल में सख़्ती बड़ी है जिससे बंदियों तक नशे से जुडी चीज़े आसानी से नहीं पहुंच रही है।

जेल के सूत्र की माने तो सिपाही राजीव कुमार की वाणी के पीछे किसी बड़े राजनैतिक व्यक्ति का दबाव ओर दावा काम कर रहा है. यह सभी भली-भांति जानते है कि जेल की व्यवस्था में बड़े-बड़े राजनैतिक व्यक्ति व माफिया बंद रहते है लेकिन वो ठहरे मनुष्य… जिनकी जेल में जरूरते पूरी न होने पर ऐसी ही हलचल देखने को मिलती है।ऐसे आरोप लगभग जेलों में तब ही लगाए जाते रहें है ज़ब सिपाही को आजादी ओर माफिया की मन मर्जी न मिल रही हो. तो बेहद कमजोर भावनाओं के सिपाहियों को टारगेट करके अधिकारियो पर आरोप लगवाएं जाते है।जिससे अधिकारी दवाब में आये ओर जेल में घर जैसी व्यवस्था बहाल हो सके। इन जैसे प्रकरण में आरोपित अधिकारी का जाँच के नाम पर स्थानांतरण किया जाता है व अपनी अच्छी व्यवस्था के लिए नय अधिकारी को लाया जाता है। इन जैसे प्रकरण में जाँच में विभागीय सुलह होती है फिर सारा खत्म….!!छुट्टी मिलेगी… पैसे कमाओ…

.फिलहाल यह भी तय है कि इस पुरे प्रकरण में जो भी दोषी होगा उसके लिए जेल मेंन्युल व आचरण नियमावली के अनुसार दंड भारी भरकम मिलेगा।

जिलाधिकारी प्रेम रंजन सिंह के निर्देश पर जाँच टीम गठित कर दी गई है।लेकिन जाँच यही खत्म नहीं होंगी. अभी DG जेल के निर्देश पर भी जाँच होनी बाकी है।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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