युवाओं की आंखें निकाल कर देश और भविष्य को हम रौशनी नहीं अंधेरा दे रहे हैं

युवाओं की आंखें निकाल कर देश और भविष्य को हम रौशनी नहीं अंधेरा दे रहे हैं जब युवा हालातों की शिक्षा से हथियार बन जाए तो सुरक्षा कैसे कर सकता हैं–
विपक्ष सत्ता से ज्यादा पावरफुल राजनीति होती है पर कैसे जैसे कि आज हैं–
आज कल नेताओं के कृत्य बच्चों से भी कम वुद्ध का परिचय दे रहे हैं संसद हो या राज्यसभा सभी मंदिरों से आज राजनीति तार तार हो रही है जब नेताओं में धक्का मुक्की खून खराबे की तस्वीरें राजनीति के मंदिरों से समाज के सामने आने लगे तो पब्लिक या भविष्य को आगे ले जाने वाले युवा हमसे क्या सीख लेकर देश और पब्लिक की सुरक्षा करेंगे-असुरक्षा का आज भी मौजूद है और कल भी हम तैयार कर रहे हैं जहां कुर्सी की टांगें खेची जा रही हो–तब स्वार्थ नीति देखने में अंधों की आंखों में भी रौशनी आ रही है पक्ष हो या विपक्ष, राजनीति और नेता सही मायनों में कहा जाए तो विपक्ष की भूमिका और ताकतवर हो जाती है क्योंकि उसे पब्लिक की सबसे बड़ी ताकत का साथ जो मिल जाता है एक स्वतंत्र स्थान जहां से सत्ताधारियों के सलाहकार इमान और शिक्षक तक का स्थान मौजूद है राजनीति कुर्सी ही नहीं सार्थक विचार कुर्सी पर बैठते हैं स्वार्थी नहीं क्योंकि कि ये एसी कुर्सी नहीं है कि हम खड़े खड़े थक गये खिसका कर बैठ जाएं इसके नियम कायदे और पब्लिक के माई बाप बनने के लायक बनकर तैयार होना पड़ता है यह धरती पर साक्षात खुदाई का एक बो स्थान है जहां से पब्लिक के अधिकार और सार्थक सोच से व्यबस्थाए उपलब्ध कराई जाती है समानता के साथ यहां स्वार्थ नीति करना एक अपराध जैसा कृत्य है और कुछ भी नहीं किस काम की एसी राजनीति जहां भाईचारा, समाज,घर परिवार रिस्ते धर्म सिस्टम सुरक्षित नहीं बचे हो कुछ भी हो हमेशा कमजोर और गरीब का ही खून यहां हर मर्ज की कमजोरी के लिए उपलब्ध रहा है सिक्के से सिक्कों और गड्डी से गड्डियां कमाने का चलन बारहमासी की फैशन में बस गया विपक्ष की बो भूमिका है कि सत्ताधारियों की दम नाक में लाकर खड़ी कर सकता है पर कैसे हम क्या कहें हालात गवाह है–
विपक्ष पहले भी था जहां पब्लिक टीबी चैनलों पर चिपक कर एसे सुनती थी जैसे कि सारे अधिकारों के दाता कुर्सी के सामने बैठे हों कुर्सी और पब्लिक के रखवाले बैठे हो,धिक्कार है ऐसी राजनीति और पुरूषार्थ को जिसने अपनी आबरू अपनी बहू बेटियों बुजुर्गों पूर्वजों के बलिदान और कुर्बानियों तक की सुरक्षा नहीं कर पाई हो युवाओं की आंखें निकाल कर देश को अंधा और पब्लिक के अधिकारों को खाकर खुद को खुदाई का नाम दिया जाता है जैसे स्त्री मात्र एक नमूना बची है मां में औपचाकताऔ में इंटरनेट प्लेटफार्म पर उसी तरह राजनीति की ओढ़नी का भी सार्वजनिक चीरहरण करके धर्मों की नई ओढनी उढाने से आबरू नहीं ढक सकती है, आज सच सबसे बड़ा दुश्मन बनकर उभरा है इसे गिराने की भरपूर कोशिशों में इंसान इसकी नजरों से तो जरूर गिर रहा है पर यह खत्म नहीं होगा और हो भी गया तो ये धरती और आसमान भी सुरक्षित नहीं रहेंगे मुट्ठी भर सत्य ही बड़ी मर्ज की दवा–समाज में बची है इसको खत्म करके भी इसे मौत नहीं आ सकती है यह बक्त का बो खंजर है जिसकी धार उल्टी मुड़ जाती है हमारी तो औकात क्या है,आज हमारे अंदर मरती मानवता की लासों पर स्वार्थ डेरा डाले बैठा है जिसे न श्रद्धा न मानवता किसी का एहसास–आज पूर्व के बुद्धजीवियों की भविष्यवाणी जमीन पर उतर आई है हंस चुनेंगे दाना पानी कौआ मोती खाएंगे–आज शिक्षा से लेकर योग्य मानवों का उपहास हो रहा है खुलेआम और इसके जिम्मेदार कहीं न कहीं हमारे देश में बने कानूनी एजेंडे भी सामिल है राजनीति कोई प्रोपर्टी नहीं है जिसे परिवारों मे पीढ़ियों डर पीढ़ियों मिलती रहे व्यक्ति की सोच और नजरिया में हल्ला फुल्का असर जरूर आ सकता है बदलने को इतिहास कहते हैं और हम तो मानव भी नहीं–तब इसका सत्ता परिवर्तन समय-समय पर कार्य के आधारों पर होना जरूरी बनता है, परिवार और धर्मों तक सिमट कर रह गई-राजनीति तो देश की माई बाप है यह तो घर में भी सौतेले माता पिता से घर घर नहीं रहता पीढ़ी तबाह कर देते हैं कुर्सी खुद की प्रोपर्टी, नहीं है यह पब्लिक के लिए बनी है और वही बुनती भी है और जहां पब्लिक बहू बेटियां अधिकार मानवता भाईचारे का खून हो रहा हो और कुर्सी खून की प्यासी होने लगे लगे तो समय से बक्त की आवाज सुनने की जरूरत है बहरे बनने की नहीं।
लेखका-पत्रकार-दीप्ति चौहान।✍️

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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