क्यों कि इनकी स्वतंत्रता के हाथ बांधकर इन्हें लक्ष्य विहीन जो कर रखा है–

पर हम हैं क्या इनके बिना गौरे तलब मुद्दा तो यह है–
पुलिस, सैनिक,और कलम, की हैसियत का आंकलन हर किसी से नहीं हो सकता है–
क्यों कि इनकी स्वतंत्रता के हाथ बांधकर इन्हें लक्ष्य विहीन जो कर रखा है–
कलम की हैसियत से बड़ी शायद दूसरी हो पर सही मायनों में निष्पक्ष ये जिधर भी घूम जाए बुराई का पतझड़ होना निश्चित है, पुलिस और सैनिक सुरक्षा कर्मियों से बड़ी हैसियत किसकी है, जो देश पब्लिक राजनीति,की मुसीबत में मुंह में निवाला लगा हो बिना पानी के मुंह में चबाते हुए भागते हैं,और कभी-कभी वहीं निवाला हमारी सुरक्षा हेतु में अंतिम भी हो जाता है,और यह बे हैसियत वीर अपनी जान की कुर्बानी देकर हमारे और देश की सुरक्षा करते करते एक ताबूत में खामोश होकर लौटते हैं और एक नेता की हैसियत जब तक कुर्सी है तब तक है कुर्सी के नीचे बाली हैसियत किसको नहीं पता एक सिपाही की वर्दी और एक विधायक की हैसियत का कम्पेयर कोई शिक्षित ही कर सकता है पावर कभी नहीं आज कल राजनीति का चीरहरण भाषा से खुलेआम हो रहा सुरक्षा बलों का स्तेमाल अपनी अपनी मनमानी से-पर सच तो यही है कि इनके कर्म के हाथ बांध रखे हैं आज पत्रकार को खुलेआम दलाल,और पुलिस की पावर हैसियत,जैसे शब्दों से बे आबरू और मजाक जैसी भाषा से किया जा रहा है पर इन दलालों और बे हैसियत पुलिस के बिना आज के माहौल में हम घर से भी निकलने की हैसियत नहीं रखते हैं, मीडिया बो आईना है अगर देश और समाज का चेहरा न दिखाएं तो आप क्या जान सकते हैं घरों में बैठकर कि कहां और किस जगह क्या हो रहा है, पर कटु सत्य स्वीकार करता कौन है कि पेट और परिवार सभी के आगे और सर्वोपरि है पत्रकारिता सारे दिन भूंखे पेट और साम को बच्चों का निवाला भूंखे पेट में समाज सेवा हर किसी के बस की बात नहीं है, सरकारों ने क्या किया इनके लिए जिला वाइज एक प्रेस कालोनी तक उपलब्ध नहीं हो पा रही है इनके लिए, चंद सिक्कों की पगार के बारे में भी नहीं सोचा जा रहा है कुछ एक सरकारें बधाई के पात्र हैं जिन्होंने अपने स्तर से कुछ तो किया है और आश्वासन भी पर उत्तर प्रदेश में मुठ्ठी भर सत्य की सुरक्षा तक उपलब्ध नहीं हुई,जानते हुए कि सत्य आजकल सबसे बड़ा दुश्मन है इंसान का कितने कलम कार इसमें मौत के निवाला बन गये पर उन्हें एक भीड़ से हटकर मुकाम भी नशीव नहीं हुआ आज तक फिर कितने एसे कर्तव्य प्रिय है जो भूंखे पेट अपना कर्तव्य निभा रहे हैं और निभा सकते हैं, तब सवाल उठता है कि आखिर इनको इस बदलाव के लिए क्यों और बिवस करने में कौन जिम्मेदार है।
लेखिका-पत्रकार-दीप्ति चौहान।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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