
जो मूर्तियों और समाधियों की धूल तक साफ नहीं कर सकते बो इतिहास को अपनी वसीयत कहते हैं–हमारे पूर्वजों के कर्मठ कार्य के इतिहासों को जातियों में बांटकर उनकी आत्माओं को कष्ट दे रहे हैं हम जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गये बो किसी एक व्यक्ति विशेष के नहीं रह गये इन्हें धर्मों में बांट कर हम अपने अपने स्वार्थ की पूर्ति कर सकते हैं इतिहास नहीं बना सकते हैं जिस जमीन और धर्मों के आज हम टुकड़े-टुकडे़ करने में लगे हुए हैं काश कुछ हमारा भी उसमें सामिल होता उन कर्मवीरों के जैसा हमारे लिए लड़े और स्वतंत्रता देकर अंत में खुश रहने का वचन ले गये और अपने परिवारों को रोता तढपता छोड़ गये हमारे बीच में हम उनके कर्म को स्वयं के लिए कर्मठ इतिहास बनाते तो कोई बात थी बैठे बिठाए की वसीयतों पर घुर्रा कर जो आज घिनौना जश्न हो रहा है न तो राजनीति है न देश नीति सिर्फ कायरों की तरह पूर्वजों की वसीयतों पर खोखला वर्चस्व झंडे की जगह हथियार और दंवगी का शोर–जब बाजुओं की ताकत बेदम हो जाती है तब जुवांन पर जवानी आजाती है वहीं कृत्य आज हर गली घर शहर गांव और सोशल मीडिया तक को खोखली ताकतों ने पूर्वजों की कुर्बानी को लज्जा जनक बना रखा है अगर पूछा जाए खुद ने क्या किया तो शायद जुवांन को लकवा मार सकता है एक बात कभी मत भूलना स्वर्ग और नरक सब अपनी मौत से ही मिलता हमने आंखों से बो नजारे भी देखें है अपनों के कर्मवीर पूर्वजों की समाधियां मूर्तियों को धूल फांकती रहती है एक साल तक और जो अपने तराजू लिए घूमते हैं हाथ में पास से हवा देकर निकल जाते हैं इतिहास क्या खाक बनाएंगे, उनकी साफ सफाई जिनसे नहीं हो रही हो तब अपने नजर नहीं आते
ये बंटवारे बाले, कला और इतिहास किसी की बपौती नहीं है हां गर्व करना हमारी खुश नसीबी जरूर है प्रेरणा लेना हमारा कर्तव्य है अगर हम उनके जैसा कुछ कर नहीं सकते तो उनके कर्मों पर धर्मों की दीवारें भी मत लगाओ प्रतिभा और इतिहास हमारा गौरव है इसे अपने अपने स्वार्थ की तराजू में मत रखो यह देश की धरोहर है किसी की तिजोरी का सोना नहीं आज किसी की इतनी इमेज और व्यबहार काम नहीं जो अकेले दम पर सत्ता में आ सके तब खिचड़ियां अगर देश आवाम हित में कार्य कर रही है उन्हें वोट को सुरक्षित रखना चाहिए तबाही पांच मिनट की नहीं सही जाती यह तो पांच साल की है
लेखिका पत्रकार दीप्ति चौहान