खरी – अखरी
खुद्दारी – इज्जतदारी – – – मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है
कहावतें हैं कि – अगर बेटे का पेट मां का दूध पीने से नहीं भरा तो फिर बाप का अंगूठा चूसने से कैसे भरेगा (कभी नहीं भरेगा) । जो अपने माता-पिता का नहीं हुआ वो दूसरे का क्या होगा। ये कहावतें आज राजनीतिक दलों के दलबदलुओं पर पूरी तरह से फिट बैठ रही हैं । जिस दल की राजनीतिक जमीन पर खड़े होकर वह कार्यकर्ता से नेता बना फिर उसका कद बढा़, उसका वजूद बना मगर समय गुजरने के साथ ही निजी स्वार्थपूर्ति के लिए उनमें उसी पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी के दामन थामने की होड़ सी लग जाती है वह भी खासतौर पर चुनाव के दरमियान। ऐसा ही नजारा इन दिनों देश भर में दिखाई दे रहा है। वैसे तो हर दल के बेगैरत नेता दल बदलने में लगे हुए हैं मगर सबसे ज्यादा भगदड़ मची हुई है कांग्रेस पार्टी में। जहां से जहाज को डूबता समझकर चूहे भागकर भाजपा के गटर में कूद रहे हैं ! कल तक जिन कपड़ों को पहनकर वे महक रहे थे तथा जिस विचारधारा का उनके द्वारा गुणगान किया जा रहा था स्वार्थपूर्ति में रुकावट आते ही उनको उन्हीं कपड़ों से बदबू आने लगती है उसी विचारधारा को वे कोसने लगते हैं। मजे की बात तो यह है कि ये स्वार्थी, पदलोलुप लोग उन कपड़ों को पहनते हैं जिनसे कल तक उन्हें घिन आ रही थी उस विचारधारा का पाठ करने लगते थे जिसे कल तक वे पानी पी – पी कर कोस रहे थे।
फिलहाल सत्तारूढ़ पार्टी का हाईकमान उसमें भी खासतौर पर दो लोग एकसूत्रीय काम पर लगे हुए हैं – कोई कितना भी करप्ट हो चलेगा (चाल, चलन, चेहरा) बस चुनाव जिताऊ होना चाहिए। मगर इन दलबदलुओं की नई पार्टी में कितनी पूंछ परख होती है इसे भाजपा के दो कद्दावर कहे जाने वाले नेताओं के बोल से भली भांति समझा जा सकता है। भाजपा में शामिल हो रहे कांग्रेसियों को लेकर मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए मध्यप्रदेश की भाजपाई सरकार के पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव ने कहा कि “पके बेर की तरह टपक – टपक के आ रहे हैं कांग्रेसी”। मगर पूर्व केन्द्रीय मंत्री व वर्तमान में एमपी की भाजपाई सरकार के मंत्री प्रहलाद पटेल का एक वीडियो वायरल होकर चर्चित हो रहा है जिसमें वे भाजपा ज्वाइन कर रहे कांग्रेसियों के बारे में यहां तक कह रहे हैं कि दलबदलुओं के लिए भाजपा ने तीन कंटेनर रखे हुए हैं। जिनमें से एक पर सूखा कचरा तो दूसरे पर गीला कचरा और तीसरे पर मेडिकल वेस्ट डाला जा रहा है।
मतलब साफ है कि भाजपा की नजर में दूसरी पार्टी से आकर भाजपा ज्वाइन करने वाले कांग्रेस और दूसरी पार्टी के दलबदलू नेताओं की औकात कचरे के बराबर ही है। उसमें भी सूखा, गीला, मेडिकल कचरा कौन है यह भी भाजपा के पैमाने से ही तय होगा । सबसे ज्यादा छीछालेदर तो नेता के साथ आने वाले पिछलग्गूओं की होती है जो न घर के रह जाते हैं न घाट के। इसके पहले भी जब कांग्रेस छोड़कर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा ज्वाइन की थी तब भी तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सिंधिया को विभीषण की उपमा से नवाजा था। मगर यह भी वर्तमान का अकाट्य सत्य है कि राजनीति के अंगने में खुद्दार और इज्जतदार के लिए कोई जगह नहीं है (मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है) ।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार