सुक्खी नाइट मे फैली जबरदस्त अव्यवस्था आयोजको की मूर्खता से हो सकता था कोई बड़ा हादसा

एटा, प्रदर्शनी पंडाल में आयोजित हुई पंजाबी सिंगर सुक्खी नाइट मे जबरदस्त भीड़ देखी गई और गौर तलब बात यह है प्रशासन ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन तो करा लेता है पर उसके पास ऐसे कार्यक्रमों में नियंत्रण करने के लिए पर्याप्त व्यवस्थाए नहीं होती कल रात्रि में सुक्खी नाइट में भी तमाम अवस्थाएं देखी गई जैसे की भारी तादात में वीआईपी पास वितरित किए गए जबकि पास वालों को न बैठने की व्यवस्था थी और ना ही उन्हें एंट्री मिली ऐसे में तमाम नवयुवक आक्रोशित देखे गए कम उम्र के यह नवयुवक यदि बलवा कर देते तो प्रशासन इसे कैसे संभालता, भगदड़ की स्थिति में कितने जान माल की हानि होती,पत्रकार दीर्घा में तमाम ऐसे लोग थे जिनकी कोई भी पहचान नहीं थीं आखिर कैसे पत्रकार दीर्घा में ऐसे लोग पहुंचे क्यों पुलिस और प्रशासन ने इन्हें नहीं रोका ओर यह तब हुआ जब तमाम थानों की पुलिस कार्यक्रम स्थल पर मौजूद थी ,पत्रकार दीर्घा और सिंगर के बीच कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी, ऐसे में यदि कोई सिंगर पर हमला कर देता तो प्रशासन की कितनी फ़जीहत होती,इस सब का दोषी कोई और नहीं बल्कि मानसिक रूप से दिवालिया वह आयोजक हैं जो सिर्फ अपने कार्यक्रमों में लोगों की भीड़ और प्रशासनिक अधिकारियों का जमावड़ा कर दिखावा करते हैं,पर प्रशासनिक अधिकारियों को इतना ज्ञान होना चाहिए यदि ऐसे स्थान पर कोई हादसा या दुर्घटना होती है तो उसकी जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ प्रशासन की होंगी ना कि इन दिशा भ्रमित आयोजक की ,शासन को जवाबदेहि भी प्रशासन की होती हैं, क्या एटा का पुलिस और प्रशासन तब जागेगा जब कोई गंभीर हादसा होगा , उदाहरण के लिए माफिया अतीक हत्याकांड जग जाहिर है कि कैसे हत्यारे मीडिया कर्मियों के भेष में आए, इन सिंगर की भी दुश्मनी होती है, सिद्धू मूसे वाला प्रकरण जग जाहिर हैं,आयोजको ने भीड़ एकत्रित करने के लिए मीडिया का भरपूर सहारा लिया,प्रशासन की ऐसी क्या मजबूरी है जो ऐसे आयोजनों पर आयोजकों की जिम्मेदारी तय नहीं करता कार्यक्रम को देखने आए अधिकांश युवाओं ने आक्रोशित होकर कार्यक्रम स्थल पर न केवल कुर्सियों की तोड़फोड़ की बल्कि आयोजन समिति को जम कर कोशकर अभद्र शब्दावली का प्रयोग भी किया,यहां गौरतलब बात यह भी है प्रदर्शनी पंडाल में होने वाली सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रशासनिक अधिकारियों की उपस्थिति शून्य रहती है जबकि ऐसे म्यूजिक कॉन्फ्रेंस को देखने के लिए प्रशासनिक अधिकारी अपने इष्ट, मित्र, सहयोगी और कुछ कमाऊँ पूतों के साथ समय से पहले पहुंच जाते हैं

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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