नाड़ी परीक्षण: आयुर्वेद का अद्भुत विज्ञान — अंत तक अवश्य पढ़ें।

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नाड़ी परीक्षण: आयुर्वेद का अद्भुत विज्ञान — अंत तक अवश्य पढ़ें।

आयुर्वेद में नाड़ी परीक्षण का उल्लेख चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, शारंगधर संहिता, भावप्रकाश, और योगरत्नाकर जैसे प्राचीन ग्रंथों में किया गया है। महर्षि सुश्रुत अपनी योगिक दृष्टि से शरीर की समस्त नाड़ियाँ देख सकते थे।

जहां एलोपैथी में नाड़ी (पल्स) केवल हृदय की धड़कन को दर्शाती है, वहीं आयुर्वेद में यह पूरे शरीर की दशा को प्रकट करती है। अनुभवी वैद्य केवल नाड़ी परीक्षण से यह जान लेते हैं कि शरीर में कौन-सा दोष (वात, पित्त, कफ) असंतुलित है, और उससे कौन-से रोग उत्पन्न हो रहे हैं — वो भी बिना किसी महंगी या कष्टदायक जाँच प्रक्रिया के।

यहाँ तक कि शरीर में ट्यूमर, किडनी रोग, भविष्य में संभावित रोग और व्यक्ति ने हाल ही में क्या खाया है — यह सब भी पता चल सकता है।

नाड़ी परीक्षण की प्रमुख बातें,,,,,,,

पुरुषों की दाईं और महिलाओं की बाईं कलाई की नाड़ी देखी जाती है।
कलाई के अंदर अंगूठे के नीचे तीन उंगलियाँ रखी जाती हैं — अंगूठे के पास: वात मध्य ऊँगली: पित्त तीसरी ऊँगली: कफ
वात की नाड़ी अस्थिर और मध्यम गति की होती है।
पित्त की नाड़ी तेज और तीव्र होती है।
कफ की नाड़ी धीमी और भारी चलती है।

तीनों उंगलियों से एक साथ देखकर पता चलता है कि कौन-सा दोष प्रमुख है।
प्रारंभिक अवस्था में ही दोष संतुलित कर देने से रोग उत्पन्न नहीं होता।
हर दोष की भी 8 प्रकार की नाड़ियाँ होती हैं, जो रोग की पहचान में मदद करती हैं — इसके लिए निरंतर अभ्यास आवश्यक है।
कई बार दो या तीन दोष एक साथ भी प्रकट हो सकते हैं।
नाड़ी परीक्षण प्रातःकाल (जागने के 30 मिनट बाद) सबसे सटीक होता है।

यह भूख-प्यास, मानसिक स्थिति, मौसम, दिन के समय, नींद और गतिविधि के अनुसार बदल सकता है।
चिकित्सक का योग और ध्यान में निपुण होना, उसे सटीक नाड़ी पहचान में सहायता करता है। अनुभवी वैद्य केवल 3 सेकंड में दोष का पता लगा लेते हैं, हालांकि सामान्यतः 30 सेकंड तक परीक्षण किया जाता है।

मृत्यु नाड़ी द्वारा भावी मृत्यु के संकेत भी समझे जा सकते हैं।
नाड़ी विज्ञान से यह भी जाना जा सकता है कि व्यक्ति वात, पित्त या कफ प्रधान है या फिर मिश्रित प्रकृति का है।
आज के समय में एलोपैथी के प्रचलन के कारण नाड़ी वैद्य दुर्लभ हो गए हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि आयुर्वेद के विद्यार्थी इस प्राचीन विद्या को अनुभवी वैद्यों से सीखें और इसका संरक्षण करें।

आओ, इस विलुप्त हो रही अमूल्य विद्या को फिर से जीवन दें।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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