देवउठी एकादशी के दिनप्रातः शंख घंटी मजीरे बजाते संकीर्तन

देवउठी एकादशी के दिनप्रातः शंख घंटी मजीरे बजाते संकीर्तन करते नीचे बताए गए मंत्र को गाते हुए भगवान को उठाएं पंचामृत स्नान करवाकर सुन्दर पीली पोसाख पहना कर विराज मान करे उसके बाद आरती करें भोग लगाएं ब्राह्मण को दान करें।*
विशेष – १२ नवम्बर, मंगलवार को एकादशी का व्रत (उपवास) रखे।
* भगवान विष्णु को इस मंत्र से उठाना चाहिए*
उतिष्ठ-उतिष्ठ गोविन्द, उतिष्ठ गरुड़ध्वज ।
उतिष्ठ कमलकांत, त्रैलोक्यं मंगलम कुरु ॥

भीष्मपञ्चक व्रत
अग्निपुराण अध्याय – २०५
अग्निदेव कहते है – अब मैं सब कुछ देनेवाले व्रतराज ‘भीष्मपञ्चक’ विषय में कहता हूँ। कार्तिक के शुक्ल पक्ष की एकादशी को यह व्रत ग्रहण करें। पाँच दिनों तक तीनों समय स्नान करके पाँच तिल और यवों के द्वारा देवता तथा पितरों का तर्पण करे। फिर मौन रहकर भगवान् श्रीहरि का पूजन करे। देवाधिदेव श्रीविष्णु को पंचगव्य और पंचामृत से स्नान करावे और उनके श्री अंगों में चंदन आदि सुंगधित द्रव्यों का आलेपन करके उनके सम्मुख घृतयुक्त गुग्गुल जलावे ॥१-३॥
*प्रात:काल और रात्रि के समय भगवान् श्रीविष्णु को दीपदान करे और उत्तम भोज्य-पदार्थ का नैवेद्ध समर्पित करे। व्रती पुरुष *‘ॐ नमो भगवते* *वासुदेवाय’ इस द्वादशाक्षर मन्त्र का एक सौ आठ बार (१०८) जप करे। तदनंतर घृतसिक्त तिल और जौ का अंत में ‘स्वाहा’ से संयुक्त *‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’* – इस द्वादशाक्षर मन्त्र से हवन करे। पहले दिन भगवान् के चरणों का कमल के पुष्पों से, दुसरे दिन घुटनों और सक्थिभाग (दोनों ऊराओं) का बिल्वपत्रों से, तीसरे दिन नाभिका भृंगराज से, चौथे दिन बाणपुष्प, बिल्बपत्र और जपापुष्पों द्वारा एवं पाँचवे दिन मालती पुष्पों से सर्वांग का पूजन करे। व्रत करनेवाले को भूमि पर शयन करना चाहिये।
एकादशी को गोमय, द्वादशी को गोमूत्र, त्रयोदशी को दधि, चतुर्दशी को दुग्ध और अंतिम दिन पंचगव्य आहार करे। पूर्णमासी को ‘नक्तव्रत’ करना चाहिये। इस प्रकार व्रत करनेवाला भोग और मोक्ष – दोनों का प्राप्त कर लेता है।
भीष्म पितामह इसी व्रत का अनुष्ठान करके भगवान् श्रीहरि को प्राप्त हुए थे, इसीसे यह ‘भीष्मपञ्चक’ के नाम से प्रसिद्ध है।
ब्रह्माजी ने भी इस व्रत का अनुष्ठान करके श्रीहरि का पूजन किया था। इसलिये यह व्रत पाँच उपवास आदि से युक्त है ॥४-९॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘भीष्मपञ्चक-व्रत का कथन’ नामक दो सौ पाँचवाँ अध्याय आचार्य रामेश्वर शास्त्री ज्योतिष संस्थान [9794996460)  समस्या आप की समाधान हमारा जाने अपने भाग्य को बदले दुर्भाग्य को राधे र

About The Author

निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

Learn More →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अपडेट खबर के लिए इनेबल करें OK No thanks