सरकार द्वारा पत्रकारों के सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाना जरूरी

सरकार द्वारा पत्रकारों के सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाना जरूरी।

देश का चौथा स्तम्भ कहे जाने वाले पत्रकार इस समय बदमाशों के गोलियों के शिकार ऐसे हो रहे है जैसे की कोई बच्चों का खेल है। बदमाश पलक झपकते ही अपना काम करके निकल लेते है और पुलिस हाथ मलती रहती है। हालांकि पुलिस प्रयास करके बदमाशों या हत्यारों तक पहुंच जाती है लेकिन बदमाशों का यह बेखौफ अंदाज तो उत्तर प्रदेश के पुलिस के डर की स्थिति को बताने में काफी है। अभी कुछ दिन पहले एक उन्नाव के पत्रकार को बदमाशों ने गोली मारकर मौत की नींद सुला दी थी उसके बाद अब गाजियाबाद के पत्रकार के साथ वैसी ही वारदात हुई। आखिर इस तरह पत्रकारों की हत्या से क्या अंदाज लगाया जाये कि उत्तर प्रदेश में पत्रकारों की क्या स्थिति है। सोमवार को गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी को बदमाशों ने गोली मारी और मंगलवार को विक्रम जोशी की मौत हो गई। हालांकि विक्रम जोशी के निधन के बाद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने परिजन को दस लाख की आर्थिक मदद, पत्नी को सरकारी नौकरी तथा बच्चों की नि:शुल्क शिक्षा का वादा किया है। लेकिन पत्रकारों के हत्या के बाद केवल मदद से ही सब कुछ सही हो जायेगा। आज एक पत्रकार की हत्या हुई है अगले दिन फिर किसी दूसरे की हत्या होगी। आखिर सुशासन का वादा करने वाली योगी सरकार का डर बदमाशों को क्यों नही है? आये दिन इस तरह की वारदातों को अंजाम देने में क्यों सफल हो जाते है बदमाश? उत्तर प्रदेश की पुलिस आखिर किस वजह से उनपर नकेल कसने में फिसड्डी साबित हो रही है? ऐसे ही न जाने कितने सवाल छूट रहे है।
पत्रकार अपने जान को जोखिम में डालकर समाज के बदमाशों, भ्रष्टारियों, अपराधियों और गलत कार्य करने वालों के काले कारनामों को उजागर करता है। और समाज को जागरूक करता है। लेकिन पत्रकार को मिलती है। केवल जिल्लत, बेइज्जत और कभी कभी मौत। बदमाशों के हौसले में पंख तब लगता है जब किसी पत्रकार को रास्ते से हटाने के लिए कोई बडा अपराधी या गलत कार्य करने वाले का हाथ होता है। नही कहना चाहिए कि कुछ पत्रकारों की वजह से भी कुछ पत्रकारों की जान जोखिम में पड जाती है। इसके पीछे वजह यह है कि कुछ तथाकथित पत्रकार अपराधी से मिलकर अपनी दुकान चलाता है और यह बात जब किसी ईमानदार पत्रकार को पता चलती है तो वह उसका भंडाफोड करना चाहता है। बस इसी का फायदा उठाकर अपराधी पत्रकार पर हमला कर देता है या हत्या करवा देता है।
सरकार को चाहिए कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए भी कोई ठोस कदम उठाये जिससे पत्रकार स्वतंत्र रूप से समाज के गलत लोग और अपराधियों के खिलाफ अपनी कलम चला सके और उसे बेनकाब कर सके। आज लोग भले पत्रकारिता करते है लेकिन कही न कही दबाब भी देखने को मिलता है। इसकी वजह यह है पत्रकारों में भी कुछ ‘गद्दार’ है जो पत्रकारों के भेष में दलाल या अपराधी है। समाज में तो ऐसे भी पत्रकार है जो केवल पुलिस से बचने के लिए पत्रकारिता करते है। जबकि उन्हें समाचार लिखने भी नही आता है। जब तक सरकार पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर कडा कानून और प्रावधान नही बनायेगी तो अपराधी ऐसे ही पत्रकारों को अपना शिकार बनाते रहेंगे। वैसे उत्तर प्रदेश सरकार का फैसला काफी सराहनीय है कि पत्रकार विक्रम जोशी के मदद के लिए हाथ बढाया। सरकार को पत्रकारों को आश्वस्त करना चाहिए कि उनकी सुरक्षा पर भी ध्यान दिया जायेगा। और पत्रकारों के शिकायत पर पुलिस लापरवाही न करके त्वरित ढंग से उनके शिकायत को संज्ञान में लेकर कार्यवाही करे। कुछ ऐसे मामले देखने को मिलते है कि पुलिस भी लापरवाही करती है और बाद में कोई घटना हो जाती है। पत्रकार को सरकार कोई मानदेय या वेतन नही दे रही लेकिन कम से कम सुरक्षा तो प्रदान करें। उनके परिवार का ध्यान देते हुए कुछ ऐसे फैसले ले जिससे पत्रकारों को निष्पक्ष पत्रकारिता करने में बल मिले। पत्रकारों की हत्या कही न कही स्थानीय पुलिस की लापरवाही या बदमाशों या गलत लोगों की बेखौफ अंदाज ही है। और इन दोनो मामले में सरकार ही है जिम्मेदार कि किस वजह से बदमाशों को पुलिस का खौफ नही है। गाजियाबाद के पत्रकार की हत्या के बाद देश के कई नेताओं ने भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेकनी प्रारम्भ कर दी है। मै उन नेताओं से पूछना चाहता हूं कि उत्तर प्रदेश में उनकी भी कभी सरकार थी पत्रकारों के हितों के लिए कोई बढिया प्राविधान क्यों नही बनाया क्या उनके समय में पत्रकारों को सुरक्षा की जरूरत नही थी। जिस तरह विक्रम जोशी के हत्या के बाद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मदद की बात कही है। क्या कभी और दलों के लोग अपने शासन काल में इस तरह की मदद के लिए आगे आये?
सरकार को पत्रकारों के हितों और सुरक्षा को ध्यान में रखकर कुछ ऐसे नियम व कानून बनाये जिससे पत्रकारों के परिवार को कुछ सहयोग मिल सके और पत्रकार अपने कार्यकाल में स्वतंत्र पत्रकारिता कर सके। रही बात पत्रकारों पर हमले की तो इसके लिए स्थानीय पुलिस को काफी सतर्कता बरतनी होगी। जिससे पत्रकारों के सुरक्षा में कोई भी सेंध लगाने की हिम्मत नही करेगा। और इसके बाद गलत कार्य करने वाले और बदमाश भी पत्रकारों के ऊपर हमला करने के पहले कई बार सोचेंगे। यदि ऐसे पत्रकारों पर हमला होता रहा तो भविष्य में लोग पत्रकारिता करने से भी कतराने लगेंगे। और चौथे स्तम्भ के रूप में स्थापित पत्रकारिता का स्तम्भ कमजोर हो सकता है। इसीलिए पत्रकारों के सुरक्षा के लिए सरकार को ठोस कदम उठाना जरूरी है।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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