
अनशन दूसरे दिन जारी, लगेगा शिलालेख
क्रांतिकारियों के अग्रदूत गेंदालाल दीक्षित को उचित सम्मान दिलाने को जन्मस्थान पर चल रहा है अनशन
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आगरा।सैन्य क्रांति के अग्रदूत गेंदालाल दीक्षित को उचित सम्मान दिलाने के लिए उनके मई गांव स्थित जन्मस्थान पर अनशन दूसरे दिन भी जारी रहा। दूसरे दिन कमांडर इन चीफ के खंडहर पड़े जन्म स्थान की जन सहयोग से साफ-सफाई के बाद शिलालेख लगाने की प्रक्रिया शुरू की गई। इस मौके पर गोवा क्रांति दिवस की 75वीं एवं गोवा मुक्ति के 60वर्ष पूरे होने पर मुक्ति संघर्ष नायकों को नमन किया गया।
दो दशक से भी अधिक समय तक भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के अगुआ रहे गेंदालाल दीक्षित की जीवनी चंबल परिवार के मुखिया शाह आलम ने लिखी। यही शाह आलम स्थानीय लोगों के साथ 2 दिन से अनशन पर बैठे हुए हैं। उनकी मांग है कि कमांडर-इन-चीफ गेंदालाल दीक्षित के जन्म स्थान आगरा के मई गांव तक पक्की सड़क का निर्माण कराया जाए। मई गांव में जमीदोज हो चुके उनके घर को राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाए। जंग-ए-आजादी के इस महानायक के बलिदान शताब्दी वर्ष पर भारतीय डाक टिकट जारी किया जाए। डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्विविद्यालय, आगरा में परास्नाक स्तर पर सर्वोच्च अंक पाने वाले विद्यार्थी को प्रति वर्ष पं. गेदालाल दीक्षित स्वर्ण पदक प्रदान किया जाए। उनके जन्म स्थान मई गांव, आगरा को पर्यटन मानचित्र से जोड़ा जाए। क्रांतिकारियों के गुरू के नाम से सुविख्यात महान क्रांतिकारी गेंदालाल दीक्षित का गौरवशाली इतिहास पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।
सोमवार को दूसरे दिन अनशन पर बैठे अनशन कारियों ने गेंदालाल दीक्षित के जन्म स्थान की साफ-सफाई की और वहां स्मारक के रूप में एक शिलालेख लगाए जाने की तैयारी की जा रही है। शाह आलम का कहना है कि क्रांतिकारियों के गुरु को उचित सम्मान दिलाए जाने के लिए उन्होंने यह अनशन शुरू किया है। यह अनशन एक शुरूआत है और अब जनता की जिम्मेदारी बनती है कि वह आगे आए। इस क्रांतिकारी को उचित सम्मान दिलाए जाने के लिए उनके जन्म स्थान पर स्मारक बनाने के लिए शासन और प्रशासन पर दबाव बनाए।
अनशन के दौरान गेंदालाल दीक्षित के वंशज विजेंद्र दीक्षित, रुद्राक्ष मैन डॉ. रिपुदमन सिंह, राम सिंह आजाद, पवन टाइगर, विजेंद्र पराशर, विमलेश यादव, रिंकल दीक्षित आदि ने अपने विचार व्यक्त किए।
गेंदालाल दीक्षित के बलिदान के सौ बरस हुए पूरे
*पं. गेंदालाल दीक्षित ने न सिर्फ सैकड़ों छात्रों और नवयुवकों को स्वतंत्रता की लड़ाई से जोड़ा बल्कि बीहड़ के दस्यु सरदारों में राष्ट्रीय भावना जगाकर उन्हें स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए जीवन सौंपने की शपथ दिलवाई थी। इतिहास में उनकी पहचान मैनपुरी षड्यंत्र केस के सूत्रधार, उस दौर के सबसे बड़े सशस्त्र संगठन शिवाजी समिति व मातृवेदी के संस्थापक-कमांडर के रूप में होती है। महान क्रांतिकारी पं. रामप्रसाद बिस्मिल को स्वतंत्रता आन्दोलन से जोड़ने व शस्त्र शिक्षा देने का श्रेय भी इन्हीं को है। उन्होंने अलग-अलग प्रान्तों में काम कर रहे क्रांतिक्रारी संगठनों को एकीकृत कर विप्लवी महानायक रास बिहारी बोस की सन् 1915 की क्रांति योजना का खाका खींचा था।
पं. गेंदालाल दीक्षित का जन्म 30 नवंबर 1890 को संयुक्त प्रांत के आगरा में बटेश्वर के पास मई गांव में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा गांव में ही हुई और आगे की पढ़ाई उन्होंने इटावा व आगरा में की। 1905 में बंग-भंग के विरोध में देशव्यापी आन्दोलन शुरू हुआ था। इसी के चलते वह कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर आगरा से औरैया चले आये और वहां डीएवी स्कूल में पढ़ाने लगे।
उन्होंने पंजाब, महाराष्ट्र, दिल्ली, राजपूताना और बंगाल के क्रांतिकारी संगठनों को एक सूत्र में पिरोया। रासबिहारी बोस ने 21 फरवरी 1915 जिस महान क्रांति की तैयारी की थी, उसके लिए दीक्षित ने उन्हें 5000 लड़ाके देने का वादा किया था। मातृवेदी के कमांडर स्वयं गेंदालाल दीक्षित थे। इसका अध्यक्ष दस्युराज पंचम सिंह को बनाया गया और संगठन की जिम्मेदारी लक्ष्मणानंद ब्रह्मचारी को दी गई। दल को चलाने के लिए 40 लोगों की केंद्रीय समिति बनी जिसमें 30 चंबल के बागी और 10 क्रांतिकारी शामिल थे। इन 10 क्रांतिकारियों में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और पत्रकार शिवचरण लाल शर्मा भी शामिल थे। दिल्ली के एक अस्पताल में 21 दिसंबर 1920 को मात्र 30 वर्ष की अवस्था में उनका देहांत हो गया।