
आज के दौर में लोग सामाजिक संपर्क के लिए मुख्य रूप से शादी समारोहों और अंतिम संस्कार जैसे अवसरों पर ही मिलते हैं। विवाह समारोहों में कई बार रिश्तेदार और परिचित दूर से ही शामिल होते हैं, लेकिन अंतिम संस्कार और उनके बाद के संस्कार जैसे मृत्यु भोज अनिवार्य रूप से सभी के लिए सामाजिक दबाव के साथ जुड़े होते हैं। इन अवसरों पर लोग परिवार और समाज के अन्य सदस्यों से मिलने का एकमात्र मौका पाते हैं। इस वजह से मृत्यु भोज सामाजिक समरसता और रिश्तों के मजबूत होने का एक जरिया भी बन जाता है।
हालांकि मृत्यु भोज एक महत्वपूर्ण सामाजिक अवसर है, लेकिन इसके खिलाफ भी कई तर्क हैं। इसमें सबसे बड़ा तर्क आर्थिक बोझ है, क्योंकि बड़े पैमाने पर भोज आयोजित करने से गरीब परिवारों पर अतिरिक्त खर्च आता है। साथ ही यह दिखावे और संसाधनों के दुरुपयोग का भी कारण बनता है। पर्यावरणीय प्रभाव भी ध्यान में रखना आवश्यक है, क्योंकि भोज के लिए बड़े पैमाने पर भोजन और संसाधनों की जरूरत होती है।
मृत्यु भोज का धार्मिक दृष्टिकोण इसे एक आत्मा की शांति के साधन और मृतक के परिवार का कर्तव्य मानता है। यह परंपरा रिश्तों को जोड़ने, सहानुभूति दिखाने और समाज में एकता बनाए रखने के लिए भी अहम है। हालांकि, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शादी और मृत्यु जैसे सामाजिक अवसरों पर मिलने की प्रक्रिया में फर्क है। जहां शादी समारोहों में अनिवार्यता कम होती है, वहीं अंतिम संस्कार और मृत्यु भोज सामाजिक दबाव के कारण अधिक अनिवार्य बनते हैं। इसलिए इस परंपरा को बजट और आवश्यकता के अनुसार संतुलित तरीके से आयोजित करना जरूरी है।