श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन कथा वाचक ने सुनाए ध्रुव चरित्र रोचक प्रसंग

ग्राम जमुनिया में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में व्यास आचार्य देवेंद्र उपाध्याय (योगी जी महाराज) ने कहा कि भक्त ध्रुव ने माता सुरुचि के अपमानजनक बचन को सुनकर बाल्यावस्था में आत्मग्लानि हुई, जिसके बाद श्री नारद जी के उपदेश सुनकर भगवान नाम आश्रय लेकर ध्रुव पद को प्राप्त किए ! कथा का आगाज गुरु वंदना के साथ किया गया।
इसके उपरांत उन्होंने भगवान श्री कृष्ण की पावन लीलाओं का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि बच्चों को धर्म का ज्ञान बचपन में दिया जाता है, वह जीवन भर उसका ही स्मरण करता है। ऐसे में बच्चों को धर्म व आध्यात्म का ज्ञान दिया जाना चाहिए। माता-पिता की सेवा व प्रेम के साथ समाज में रहने की प्रेरणा ही धर्म का मूल है। अच्छे संस्कारों के कारण ही ध्रुव जी को पांच वर्ष की आयु में भगवान का दर्शन प्राप्त हुआ। इसके साथ ही उन्हें 36 हजार वर्ष तक राज्य भोगने का वरदान प्राप्त हुआ था। ऐसी कई मिसालें हैं, जिससे सीख लेने की जरूरत है। इस मौके पर संकीर्तन मंडली के सदस्यों ने प्रभु महिमा का गुणगान किया। उन्होंने कई मनमोहक भजन प्रस्तुत किए, जिन पर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो गए इस अवसर पर मुख्य यजमान प्रकाश चंद्र मिश्रा,धर्मपत्नी श्रीमती उत्तरा मिश्रा, देवी शंकर मिश्रा, श्री प्यारेलाल द्विवेदी, तेज मणि तिवारी, रमाशंकर द्विवेदी, जैनेंद्र द्विवेदी, बाल्मिक द्विवेदी, रजनीश शुक्ला, सरपंच बृजवासी यादव आदि श्रोता गण उपस्थित रहे,