यहां रावण प्रतिमा की पूजा की जाती है

मध्यप्रदेश इंदौर से आगे जिला मंदसौर रावण की पत्नी मंदोदरी के नाम से पडा़ जिले का नाम जहाँ रावण की ससुराल है रावण की पत्नी मंदोदरी से जुड़ा मंदसौर का इतिहास। मप्र का मंदसौर जिला जिसे देश मे काला सोना के नाम से भी जाना जाता है। काला सोना यानि अफ़ीम। जिसकी मंदसौर में सबसे बड़ी मात्रा में खेती होती है। एक और पौराणिक कहानी भी मंदसौर से जुड़ी है जो रामायण के पात्र रावण की पत्नी मंदोदरी से जुड़ी है। जब रावण पृथ्वी पर अपना रक्ष संस्कृति स्थापित करने के उद्देश्य से श्रीलंका से निकला था। तब वह अपने रास्ते में आने वाले हर छोटे-बड़े राजाओं से युद्ध लड़ते हुए उन्हें जीतते आ रहा था। ऐसे ही रास्ते में उसे महेश्वर का राजा कार्तवीर्य अर्जुन सहस्त्रबाहु मिला। जिससे रावण ने युद्ध का आग्रह किया, उससे युद्ध में हारा भी। कार्तवीर्यार्जुन ही वह राजा था जिसने रावण को अपनी बगल में दवा लिया था। आज जहां पर महेश्वर में केयात नाव की रेस होती है उस सहस्त्रधारा पर सहस्त्रार्जुन द्वारा अपने सहस्त्रबाहुओं से नर्मदा जी की जल धारा को रोककर अपनी रानियों के साथ जलधारा में जल क्रीड़ा की जाती थी। सहस्त्रबाहु से हारने के बाद रावण ने उससे दोस्ती करली थी। रावण जब आगे की ओर बढ़ा तो मंदसौर के राजा द्वारा रावण की रक्ष संस्कृति को स्वीकार कर मंदोदरी से उसका विवाह किया। जैन समाज द्वारा भी बड़वानी के पास स्थित बावनगजा पर रावण की लंका की बात कही गई है। खण्डवा और खरगोन जिले को रावण के सेनापति खर, दूषण से जोड़ा जाता है। सितावन बागली और मानपुर के जंगलों में कल्पित है। जानापाव जमदग्नि ऋषि की तपस्थली होकर परशुराम जी की जन्मस्थली है। बड़वाह के पास नर्मदा किनारे आज का मर्दाना गांव कल का मोरध्वज राजा का देश रहा है। जिसकी कहानी सत्यनारायण भगवान की कथा में अपने पुत्र को आरे से चीरने की आती है। अहिल्या बाई उसे ही अपनी राजधानी बनाने आई थी। मग़र दक्षिणी तट होने से महेश्वर को राजधानी बनाया। मंदोदरी मंदसौर की ही रहने वाली थी जिससे रावण मंदसौर का जमाई कहलाता है। मन्दसौर में रावण प्रतिमा के सामने घूंघट में निकलती हैं महिलाएं। नामदेव समाज के लोग मंदोदरी को मंदसाैर की बेटी और रावण को जमाई मानते है। देशभर में जहां रावण को राक्षस मानकर दशहरे पर उसका वध कर उत्सव मनाया जाता है वहीं मंदसौर में रावण की सालभर पूजा जाता है। महिलाएं मंदसौर के खानपुरा में रावण की प्रतिमा के सामने से घूंघट निकालकर निकलती हैं।
रावण की प्रतिमा के पैर में एकातरा बुखार आने पर लच्छा, नाडा बांधा जाता है, इससे लोगों का बुखार ठीक हो जाता है। संतान प्राप्ति के लिए भी लाेग रावण की पूजा करते हैं। दशहरा पर्व पर सुबह रावण प्रतिमा की पूजा की जाती है और शाम को प्रतीकात्मक वध किया जाता है। दशहरे के दिन विजय के प्रतीक नीलकंठ के दर्शन करना शुभ माना जाता है, विशेष कर नीलकंठ को अपनी दाई ओर देखना। भारत की ऐतिहासिक और पौराणिक पृष्ठभूमि अद्भुत है, अवर्णनीय है।*

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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