कांवड़ मार्ग पर व्यवस्था बनाम ज़िद: चंद व्यापारियों की मनमानी बनी प्रशासन के लिए चुनौती”

सरसावा खबर…

“सरसावा नगर के मुख्य कांवड़ मार्ग पर कुछ व्यापारियों की ज़िद अब प्रशासनिक प्रयासों और मुख्यमंत्री के स्पष्ट निर्देशों के सामने चुनौती बनती जा रही है। जहां एक ओर शासन की मंशा व्यवस्था और सुरक्षा को प्राथमिकता देने की है, वहीं दूसरी ओर कुछ व्यापारी अब भी नियमों को ठेंगा दिखाते हुए सड़क पर अतिक्रमण कर बैठे हैं।”

सरसावा: श्रावण मास की पवित्र कांवड़ यात्रा अब अपने चरम पर पहुंचने वाली है। हरिद्वार से जल लेकर लौटने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ अब तेजी से बढ़ रही है। प्रशासन पूरी तैयारी में जुटा है, लेकिन सरसावा नगर का मुख्य मार्ग अब भी व्यवस्था की नहीं, व्यापारियों की मनमानी की तस्वीर बन गया है। दुकानों के आगे लगे दुकान के फ्लेक्स बोर्ड, सड़क पर खड़ी निजी गाड़ियां, और दुकानदारों द्वारा फैलाया गया सामान — ये सब कुछ न सिर्फ यातायात के लिए खतरा हैं, बल्कि शासन की साख को भी ठेस पहुंचाकर चुनौती दे रहे हैं।

कुछ व्यापारियों का सराहनीय सहयोग — पर कुछ की ज़िद ने बिगाड़ी सूरत

यह कहना गलत होगा कि सभी व्यापारी नियम तोड़ रहे हैं। कई दुकानदारों ने नगर पालिका और पुलिस की अपील पर अपने बोर्ड समेटे, सामान हटाया और गाड़ियां अंदर की। लेकिन कुछ चुनिंदा व्यापारियों ने न सिर्फ प्रशासनिक आदेशों की अनदेखी कर रहे है, बल्कि राजनीतिक ओर प्रशासनिक रसूख का हवाला देकर सड़क को ही दुकान का हिस्सा बनाए हुए है। यही कुछ लोग पूरे नगर की छवि और व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं।

रेहड़ी-पटरी वालों की स्थिति — मार्ग के और संकुचित होने की वजह..

फुटपाथ के किनारे अब फल-सब्जी की रेहड़ियां भी खड़ी हो चुकी हैं। उन्हें स्थान देना आवश्यक है, लेकिन यदि उनको व्यवस्थित न किया जाए, तो कांवड़ मार्ग का ट्रैफिक नियंत्रित करना लगभग असंभव हो जाएगा।

हर साल हटता था अतिक्रमण, इस बार क्यों चुप्पी?

पिछले वर्षों में पंचकों से पहले ही पुरानी चुंगी से थाना तिराहा तक पूरा मार्ग अतिक्रमण से मुक्त कर दिया जाता था। अतिक्रमण मुक्त होने के बाद नगर की तस्वीर एक बड़े अच्छे ही सुंदर रूप में दिखने लगती थी। लेकिन इस बार पंचक समाप्त होने के कगार पर हैं, लेकिन अब तक कार्रवाई केवल मौखिक अपीलों तक ही सीमित दिख रही है।

पुलिस–प्रशासन की भूमिका: प्रयास अधूरे, सहयोग जरूरी

नगर पालिका ने अतिक्रमण हटाने का प्रयास किया है, लेकिन बिना पुलिस के सहयोग के यह संभव नहीं। पुलिस को न सिर्फ अतिक्रमण हटाने में सक्रिय भागीदारी निभानी चाहिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना होगा कि दोबारा वही हालात न बनें। कुछ व्यापारियों का यह कहना कि वह राजनीतिक व प्रशासनिक तौर पर “ऊपर तक जानते हैं”, यह प्रशासनिक व्यवस्था पर सीधा सवाल बनता जा रहा है।

यह रिपोर्ट आरोप नहीं, आग्रह और सुलझाव है: व्यवस्था के लिए निर्णायक कदम के लिए

यह खबर किसी विभाग को कठघरे में खड़ा करने के लिए नहीं है, बल्कि एक सकारात्मक सुझाव है — कि सरसावा जैसे प्रमुख मार्ग पर अतिक्रमण हटाया जाना ज़रूरी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा “जीरो टॉलरेंस” की नीति लागू की गई है। उनका उद्देश्य श्रद्धालुओं की सुविधा, सुरक्षा और सम्मान है। ऐसे में अब ज़रूरत है कि जिला प्रशासन और पुलिस उस मंशा को धरातल पर उतारें।

प्रमुख सुझाव:

सड़क के दोनों किनारों पर सफेद लाइन चिन्हित कर ‘नो अतिक्रमण ज़ोन’ घोषित किया जाए।
रेहड़ी-पटरी वालों के लिए वैकल्पिक स्थान चिन्हित कर व्यवस्थापन किया जाए।
पुलिस और नगरपालिका की संयुक्त कार्रवाई प्रतिदिन चले — न सिर्फ अभियान के रूप में, बल्कि निगरानी व्यवस्था के साथ।
जो व्यापारी स्वयं सहयोग करें उन्हें चिन्हित कर प्रेरित किया जाए, और जो विरोध करें, उनके विरुद्ध स्पष्ट कार्रवाई हो।
दुकानों के बाहर वाहन पार्किंग पर अस्थायी प्रतिबंध लगाया जाए।

हालांकि व्यवस्था सरकार बनाती है, लेकिन उसका पालन समाज करता है। जब कुछ व्यापारी कानून से ऊपर बनने लगें, तो प्रशासन को यह दिखाना होगा कि व्यवस्था किसी के व्यक्तिगत लाभ से बड़ी होती है। सरसावा नगर की यह रिपोर्ट आलोचना नहीं, चेतावनी नहीं, एक सजग और समयबद्ध आग्रह है—कि कांवड़ यात्रा के चरम पर पहुंचने से पहले अगर यह कार्रवाई हो जाती है, तो सरकार की साख भी बचेगी और श्रद्धालुओं को राहत भी मिलेगी। लेकिन अब देखना होगा कि कई बार आग्रह, कई बार शिकायत तथा कई बार सुझाव देने के बाद भी जिस मामले पर कार्रवाई अभी तक शून्य है क्या उसे पर कोई सख्त कदम उठाता है या फिर स्थानीय से लेकर जिला प्रशासन द्वारा की गई तैयारी से ही लखनऊ में बैठे जिम्मेदार अधिकारी संतुष्ट है।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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