
आमिर पठान के लिए दो मिनट का मौन!
(आलेख : सुभाष गाताडे)
लातूर सूबा महाराष्ट्र के मराठवाडा इलाके का शहर है, जो अपनी ऐतिहासिक इमारतों के लिए मशहूर है। इसकी जिन्दगी अब बदस्तूर सामान्य हो गयी होगी।
बमुश्किल दो सप्ताह पहले शहर के एक हिस्से में कुछ अधिक सरगर्मी थी, जिसकी फौरी वजह एक टेलिकाॅम कम्पनी के एक वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी द्वारा अचानक की गयी खुदकुशी थी। यह हिस्सा भी अपनी पुरानी रफ्तार में लौट आया होगा। गौरतलब है कि इस वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी ने कथित तौर पर रोड रेज की एक घटना के बाद – जिसमें उसे सांप्रदायिक गालियों का शिकार होना पड़ा था – दूसरे दिन खुदकुशी कर ली थी।
वैसे भारत की सड़कों पर आए दिन चलने वाले विवादों से वाकिफ लोग कह सकते हैं कि उस झगड़े में ऐसा कुछ अजूबा नहीं था। ऐसी घटनाएं तो आए दिन होती रहती हैं, अलबत्ता उसका समापन शोकांतिका में हुआ। हुआ यही था कि एक कार चालक जो कथित तौर पर पत्रकार था, उसकी गाड़ी एक टू व्हीलर वाले से टकरा गयी। आम तौर पर जैसे होता है, कार चालक उतरा और उसने उस मसले को वही ‘निपटाना’ चाहा और दुपहिया चालक को धमकाने की कोशिश की। सड़क पर बढ़ते इस विवाद में जब उसे पता चला कि दुपहिया चालक आमिर पठान नामक शख़्स है, तो वह कथित तौर पर अधिक आक्रामक हो गया और उसने उसे यह तक पूछ डाला कि क्या वह ‘‘पाकिस्तानी है या कश्मीरी है?’ कार चालक इतना दबंग था कि वह उस पूरे विवाद को रेकार्ड भी करता रहा और उसने दुपहिया चालक को यह कहते हुए भी धमकाया कि वह इस पूरे विवाद को इंटरनेट पर अपलोड कर देगा।¹ टेलिकाॅम कम्पनी का वह उच्च अधिकारी इस पूरे प्रसंग से इतना हताश हो चला कि डिप्रेशन में चला गया और इस बात के डर से कि उसे सड़क पर प्रताडित करने का विडियो आनलाइन हो जाएगा, उसने दूसरे दिन शाम को आत्महत्या कर ली।
जाहिरा तौर पर सड़कों पर होने वाली रोजमर्रा की तमाम घटनाओं की तरह, जहां लोगों की असभ्यता और दबंगई खुल कर सामने आती है , यह घटना भी भुला दी जाती। लेकिन सड़क पर सांप्रदायिक गाली-गलौज और प्रताडित करने के इस प्रसंग का एक किस्म से आमिर की पत्नी अप्रत्यक्ष गवाह बन गई। धाराशिव के प्राइवेट बैंक में कार्यरत आमिर की पत्नी समरीन ने इस घटना के दौरान ही उसे काॅल किया था, यह बताने के लिए कि वह अगले संविधान चौक पर खड़ी है और दोनों वहीं से साथ घर चलेंगेै। फोन पर इसी संभाषण के दौरान उसने एक अजनबी आवाज़ को सुना था, जो उसके पति को धमका रही थी और वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड करने की बात कह रही थी और उसका पति प्रताडित करने वाले से ऐसा न करने की गुजारिश कर रहा था।
आमिर पठान की मृत्यु हुए दो सप्ताह हो गए है।
इस पूरे प्रसंग में आखिरी बात यही सुनने को मिली थी कि समरीन ने पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज करायी है, जिसमें प्रताड़ित करनेवाले व्यक्ति का नाम और गाड़ी नम्बर लिखा है, मगर पुलिस ने एक तरह से बिना किसी व्यक्ति का नाम दर्ज किए रिपोर्ट दर्ज की है। पुलिस का यह भी कहना है कि घटना को लेकर कोई सुसाइड नोट भी नहीं मिला है कि फलां व्यक्ति के चलतेे मुझे आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा और घटना का कोई गवाह भी सामने नहीं आया है।
इस बात की भविष्यवाणी करने मे कोई मुश्किल नहीं होगी कि समरीन के सामने न्याय पाने का एक बेहद लम्बा और लगभग अकेला रास्ता पड़ा है, क्या उसे न्याय मिल सकेगा?
गौरतलब है कि आमिर पठान को सड़क पर सरे आम जिस प्रताडना से गुजरना पड़ा, भारत की सड़कों की आम परिघटना हो चली है, जहां अक्सर हम यह भी सुनते हैं कि ऐसे घटना की परिणति आपसी मारपीट, यहां तक कि कई बार हत्या तक पहुंचती है।
आमिर के साथ यह पहलू और जुड़ गया कि वह उस धार्मिक पहचान का था, जिसे भारत के बदलते माहौल में जहां हिन्दुत्व वर्चस्ववादी ताकतें सत्ता पर काबिज हुई हैं, यहां तक जनता के एक बड़े हिस्से में धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति उग्रता बढ़ी है। ढेर सारी रिपोर्टें प्रकाशित हुई हैं या पत्रकार अक्सर लिखते रहते हैं कि 21 वीं सदी के इस तीसरे दशक में धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लिए हिन्दोस्तान के अंदर एक सम्मान का जीवन जीना और समान नागरिक के तौर पर अपनी जिन्दगी बिताना अधिकाधिक मुश्किल हो चला है। विश्लेषकों ने इस बात को भी रेखांकित किया है कि सत्ता में उच्च पदस्थ लोग भी अपने वक्तव्यों और मौन से ऐसी कार्रवाईयों को हवा देते हैं। कुछ साल पहले सत्ता पर बैठे ऐसे ही व्यक्तियों द्वारा उन्हें ‘कपड़ों से पहचाने जाने वाले’, ‘चार-चार शादियां करने वाले’ के तौर पर लांछन लगाते सुना गया था।
आमिर के साथ जिस दिन यह हादसा हुआ, वह वही दौर था, जब पहलगाम में आतंकी हमला हो चुका था और देश भर से यह ख़बरें भी आ रही थी कि किस तरह भारत में कश्मीरियों और मुसलमानों पर हमले की घटनाओं में उछाल आया था। यहां तक कि तमाम स्थानों पर अध्ययनरत कश्मीरी छात्रों को अपने परिसरों से अचानक निकलने के लिए कहा गया, उन्हें मारा-पीटा गया या मकान मालिकों ने उनसे मकान खाली करवाये।
विभिन्न नागरिक अधिकार संगठनों ने ऐसी घटनाओं का बाकायदा दस्तावेजीकरण भी किया है और ऐसे मामलों की सूची तक पेश की है कि किस तरह देश भर में नफरती हमले हुए, लोगों को मारा-पीटा गया, कहीं-कही हत्याएं भी हुई।
इनमें सबसे विचलित करने वाली घटना वह थी, जब केरल के एक मुस्लिम व्यक्ति को मंगलुरू में भीड़ ने मार डाला, यह आरोप लगाते हुए कि वह ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद’ के नारे लगा रहा था, जबकि उसके रिश्तेदारों के मुताबिक वह व्यक्ति मानसिक अवसाद का शिकार था,² और ऐसी हरकत नहीं कर सकता था।
आगरा, उत्तर प्रदेश में एक बिरयानी विक्रेता को एक गो-आतंकी ने पहलगाम आतंकी हमले के बदले की बात कहते हुए सरे आम बाजार में मार डाला और घटना का बाकायदा विडियो जारी कर इस बात का उसने ऐलान भी किया।³
एसोसिएशन फाॅर प्रोटेक्शन आफ सिविल राइटस (एपीसीआर) ने अपनी रिपोर्ट में ऐसे ‘184 मामलों की सूची बनायी है, जहां देश भर में मुस्लिमों के खिलाफ नफरती हिंसा हुई है। उन्होंने 22 अप्रैल 2025 से 8 मई 2025 तक मीडिया में प्रकाशित ऐसी रिपोर्टों को अपना आधार बनाया है। उनके मुताबिक ऐसी घटनाओं में 84 घटनाएं नफरती वक्तव्यों की थी, 39 हमले की घटनाएं थी, 19 घटनाओं में अल्पसंख्यकों के मकानों या दुकानों को आग के हवाले किया गया और हत्या की तीन घटनाएं थीं।⁴
हम यह भी पाते हैं कि ‘पहलगाम की प्रतिक्रिया’ के नाम पर मुसलमानों पर ऐसे व्यक्तिगत, स्वतःस्फूर्त हमलों के अलावा, धर्मांध ताकतों ने — जो हिन्दुत्व वर्चस्ववादी संगठनों से ताल्लुक रखती हैं या उनके निर्देश पर काम करती है — देश भर ऐसे कारनामे किए, ताकि देश का सांप्रदायिक माहौल और बिगड़ जाए, आपसी दंगे शुरू हो, गनीमत यही थी कि आम लोग उनके बहकावे में नहीं आए।
मिसाल के तौर पर प्रोफेसर शमसुल इस्लाम ने अपने आलेख में कि किस तरह ‘हिन्दुत्व अतिवादी देशभर में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा भड़काने के लिए जगह-जगह पाकिस्तानी झंडे लगा रहे हैं, ऐसी घटनाओं के विवरण दिए थे।⁵ उनके आलेख में लुधियाना के मंदिर की उस घटना का भी जिक्र था कि किन्हीं विक्रम आनंद ने वहां के मंदिर के सामने पाकिस्तानी झंडे को लगाया था और वह घटना मंदिर के सीसीटीवी में भी कैद हुई थी।⁶ या किस तरह अजनबी लोगों ने झारखंड उच्च अदालत के परिसर के एक कक्ष में पाकिस्तानी झंडे और पाकिस्तानी सेना प्रमुख के पोस्टर चिपकाए थे।⁷
वैसे इस बात पर अन्य विश्लेषकों या टिप्पणीकारों ने गौर किया है कि हिन्दुत्व वर्चस्ववादी ताकतों द्वारा विकसित यह एक पुराना पैटर्न है। इसे उन्होंने बंटवारे की हिंसा के दौरान विकसित किया है, जिसके जरिए वह समाज का अधिक सांप्रदायिकीकरण और ध्रुवीकरण करने में सक्रिय रहते आए हैं।⁸
पश्चिम बंगाल के उत्तरी परगना जिले के अकबरपुर स्टेशन पर चंदन मालाकार (उम्र 30 वर्ष) और प्रोग्याजित मंडल (उम्र 45 वर्ष) वहां के स्टेशन के टायलेट में पाकिस्तान का झंडा लगाते हुए ही पकड़े गए। पुलिस द्वारा जांच में पता चला कि वह सनातनी एकता मंच नामक संगठन से ताल्लुक रखते हैं और अन्य कई स्थानों पर ऐसा ही करने की उनकी योजना थी, ताकि सूबे में सांप्रदायिक दंगे हों।
अगर हम ऋषिकेश (उत्तराखंड) की इस घटना को पढ़ें, तो यह बात अधिकतर लोगों को अविश्वसनीय लग सकती है। ऋषिकेश की सड़कों पर रात को अचानक पाकिस्तानी झंडे मिलने की ख़बर आयी और तत्काल सैकड़ों प्रदर्शनकारियों के जुटने का भी समाचार मिला और घटना सुनते ही पुलिस दल भी पहुंच गया। प्रदर्शनकारियों को वहां से समझा बुझाकर घर भेजने के बाद पुलिस अधिकारी ने खुद बताया कि दरअसल वह झंडे प्रदर्शनकारी खुद लेकर आए थे।⁹ संदीप नेगी नामक पुलिस अधिकारी ने इस बात का रहस्योद्घाटन किया कि झंडे कौन लाया था।¹⁰
आमिर पठान की मौत की ख़बर जल्द ही भुला दी जाएगी। ‘चिर बैरी पाकिस्तान’ के साथ युद्ध के अधबीच में ही समाप्त हो जाने और जिसके लिए राष्ट्रपति ट्रम्प की कथित मध्यस्थता की ख़बर से आहत प्रबुद्ध समाज के एक बड़े हिस्से के लिए लातूर की यह अदद मौत क्या मायने रखती है?
मुमकिन है कि नागरिक अधिकारों के समर्थक चंद लोग — जो आज भी संविधान की कसमें खाते हैं और उसके सिद्धांतों और मूल्यों के साथ एकनिष्ठ रहने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं, ताकि स्वाधीन भारत में सभी धर्मो और समुदायों के लोग बराबरी के साथ रह सकें — इस मौत को लेकर अभी भी शोकमग्न हो तथा भविष्य की पीढ़ियों के लिए उसका दस्तावेजीकरण कर दें, ताकि धाराशिव के प्राइवेट बैक में कार्यरत समरिन को न्याय पाने की लड़ाई मे नैतिक बल मिल सकें।
वैसे पूरे मुल्क में पसर रहे इस उन्माद में यह मसला अब विचारणीय हो चला है कि क्या इसमें कभी कोई कमी आएगी, ताकि किसी भी सामाजिक या धार्मिक अल्पसंख्यक के लिए इस बात की गारंटी हो कि वह भी इस गणतंत्र का बराबर का नागरिक है। फिलहाल इस समय तो इस बात की भविष्यवाणी मुश्किल जान पड़ती है!
यह कह सकते हैं कि समूचे समाज को एक अजीब किस्म की जड़ता और संज्ञाहीनता ने इस कदर जकड़ लिया है कि समूचा समाज सुन्न हो चला है।
लगभग आठ साल हो गए, जब हम लोगों ने देखा था कि महज पंद्रह साल के एक छोटे बच्चे जुनैद को रेलवे प्लेटफार्म पर पीट-पीट कर इसलिए मार दिया गया था कि वह किसी और खुदा की इबादत करता था।
कुछ समय पहले वह घटना भी सुर्खियां बनी थी, जब चलती रेलवे के अंदर रेलवे पुलिस के एक जवान चेतन ने सांप्रदायिक विद्वेष से प्रेरित होकर अल्पसंख्यक समुदाय के तीन लोगों — जिन्हें वह जानता तक नहीं था — और रेलवे पुलिस के एक अधिकारी की सरेआम हत्या कर दी थी। यह विडम्बना भी देखी गयी थी कि रेलवे में मौजूद यात्रियों में से किसी ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं की, बल्कि वे उस घटना को अपने मोबाइल फोन पर रिकॉर्ड करते रहे।
हाथरस की दलित बेटी के साथ जो हादसा हुआ और किस तरह आज भी उसके अत्याचारी निर्द्वंद घूमते दिखते हैं, यह बात पहले ही रौशनी में आ चुकी है।
बीस साल से अधिक समय हो गया, जब ओडिशा में कुष्ठ रोगियों की सेवा में लिप्त रहने वाले आस्टेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टीन्स और उसके दो बच्चों को दक्षिणपंथी अतिवादियों ने धर्मांतरण करने के नाम पर जिंदा जला कर उस समय मार दिया गया था, जब वह रात में जीप में ही सो रहे थे। और यह भी देखने में आया था कि उन दिनों इस मानवद्रोही घटना को औचित्य प्रदान करने के लिए सत्ता में बैठे लोगों ने धर्मातरण पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस करने की मांग की थी।¹¹
हमारे हुक्मरान अक्सर बताते रहते हैं कि यह एक नया भारत है, लेकिन क्या पूछा जा सकता है कि क्या इसी भारत का हमें इन्तज़ार था, जहां संविधान की कसमें खाकर पदों में बैठे लोग मुल्क के नागरिकों के एक हिस्से को घुसपैठिया बताएं¹², या दीमक के तौर पर उन्हें सम्बोधित करें।
क्या यह कहना मुनासिब होगा कि उम्मीदों भरा हमारा गणतंत्र धीरे-धीरे डर के गणतंत्र में तब्दील हो चला है?
हम चाहें ना चाहें इतिहास ने हमारे कंधे पर एक बड़ी जिम्मेदारी डाली है। आईंदा किसी आमिर पठान को अपनी जान नाहक ना गंवानी पड़े, इसलिए यही चुनौती हमारे सामने है कि हम हमारे गणतंत्र को नए सिरे से उम्मीदों के गणतंत्र में रूपांतरित करने के लिए प्रतिबद्ध हो।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
संदर्भ-सूची
- [https://maktoobmedia.com/india/muslim-man-assaulted-called-pakistani-dies-by-suicide-latur-police-say-accused-journalist-absconding/]
- (https://www.thenewsminute.com/karnataka/mangaluru-mob-lynching-activists-accuse-police-of-inaction-against-local-bjp-leader)
- [https://timesofindia.indiatimes.com/city/agra/up-gau-rakshak-who-shot-biryani-seller-over-pahalgam-revenge-held-cops-call-it-publicity-stunt/articleshow/120681415.cms]
- (https://maktoobmedia.com/india/civil-rights-group-documents-184-anti-muslim-hate-crimes-in-wake-of-pahalgam-attack/)
- [https://countercurrents.org/2025/05/hindutva-zealots-plant-pakistani-flags-in-many-parts-of-india-for-inciting-violence-against-muslims-investigate-links-with-rss/]
- Daily Bhaskar, May 1, 2025. https://www.bhaskar.com/local/punjab/ludhiana/news/ludhiana-hanuman-mandir-pakistan-flag-incident-vikram-anand-arrested-134937289.html]
- [The Indian Express, Delhi, May 5, 2025. https://indianexpress.com/article/india/pakistan-flag-army-chief-posters-stuck-on-floor-of-jharkhand-hc-premises-9983900/]
- [https://www.newsclick.in/all-india-plan-underway-foment-communal-conflicts]
- [https://www.moneycontrol.com/city/how-pakistani-flags-appeared-suddenly-on-rishikesh-roads-police-reveal-the-real-story-not-meant-to-provoke-article-13013261.html#:~:text=The%20discovery%20of%20Pakistani%20flags,the%20recent%20Pahalgam%20terror%20attack]
- https://www.etvbharat.com/en/!state/row-over-pak-flags-in-rishikesh-cops-say-locals-were-protesting-against-pahalgam-terror-attack-enn25050402709
- (https://www.thequint.com/explainers/why-india-shouldnt-forget-graham-staines-murder-gladys-staines-dara-singh-bajrang-dal-christianity-odisha-saibo)
- (https://thewire.in/communalism/fact-check-modi-muslims-more-children-communal-rhetoric)