यूनियन कार्बाइड कचरे की निपटान के ख़तरे
बहुचर्चित भोपाल गैस त्रासदी को जन्म देने वाले यूनियन कार्बाइड के कचरे का निपटान पीथमपुर धार जिले में किए जाने का समाचार है। यह कचरा एक दैत्य की तरह आज भी भोपाल के मुख्य स्टेशन से नज़र आता है। विदित हो भोपाल शहर में 2 दिसम्बर 1984 की रात के दरम्यान एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है।
भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ। जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगों की जान गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए। भोपाल गैस काण्ड में मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) नामक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था। मरने वालों के अनुमान पर विभिन्न स्त्रोतों की अपनी-अपनी राय होने से इसमें भिन्नता मिलती है। फिर भी पहले अधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2259 थी। मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3787 लोगों की गैस से मरने वालों के रूप में पुष्टि की थी। अन्य अनुमान बताते हैं कि 8000 लोगों की मौत तो दो सप्ताहों के अंदर हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग तो रिसी हुई गैस से फैली संबंधित बीमारियों से मारे गये थे। 2006 में सरकार द्वारा दाखिल एक शपथ पत्र में माना गया था कि रिसाव से करीब 558,125 सीधे तौर पर प्रभावित हुए और आंशिक तौर पर प्रभावित होने वालों की संख्या लगभग 38,478 थी। 3900 तो बुरी तरह प्रभावित हुए एवं पूरी तरह अपंगता के शिकार हो गये।
इतनी भीषण जहरीली गैस उगलने वाले इसी कारखाने के ध्वंस अवशेष तो एक ढांचे के स्वरुप में मौजूद है। उसका सामान 3740 ₹ प्रति किलो के हिसाब से पीथमपुर 6 जनवरी से भेजना शुरू होगा। जिसे वहां जलाया जाएगा। पीथमपुर धार जिले में स्थित भोपाल से लगा औद्योगिक नगर है।इसकी तुलना दुनिया की प्रमुख औद्योगिक नगरी ड्रेटाइट से होती है। यहां 1500 से अधिक कंपनियां है जिनमें आटोमोबाइल और फार्मा कंपनियां सर्वाधिक हैं। आबादी 2011 की जनगणना के मुताबिक 1 लाख 62 हज़ार के करीब थी जो अब तकरीबन चार पांच लाख से अधिक होगी। यह इंदौर नगर से महज़ 26 किमी की दूरी पर है। कहने का आशय यह कि प्रदेश के दो बड़े नगर इसकी जद में हैं। इस दूषित कचरे की निपटान के लिए तत्कालीन सरकार ने विदेशों से संपर्क भी किया जिसे लेने कोई तैयार नहीं हुआ। अब दो बड़ै नगरों के बीच एक औद्योगिक नगरी पीथमपुर में निपटान की ख़बर चिंताजनक है। लोगों का मानना है इसको जलाने मिंक की तरह कहीं कोई गैस एक नई त्रासदी को जन्म ना दे दे। क्योंकि इस कार्बाइड ने आसपास जल स्त्रोतों का पानी अभी भी जहरीला है लोग सेवन नहीं करते।
भोपाल गैस कांड से यूनियन कार्बाइड कारखाने में पड़े 340 टन जहरीले कचरे को 40 साल में भी नष्ट नहीं किया जा सका। यह आसपास के चार किलोमीटर के दायरे में भूमिगत जल व मिट्टी को प्रदूषित कर चुका है। इसके कारण रहवासियों को गंभीर बीमारियां हो रही हैं। इस कचरे की वजह से आसपास की 42 कॉलोनियों के भूमिगत जल स्रोतों में हानिकारक रसायन का स्तर बढ़ा है। पहले ये रसायन 36 कॉलोनियों के भूमिगत जल स्रोतों तक ही सीमित थे। भारतीय विष विज्ञान संस्थान की रिपोर्ट में इसकी पुष्टि हुई है। विचारणीय बात ये है कि अब कचरे को प्रति किलो तीन हजार से अधिक मूल्य पर सरकार बेचकर अपनी आय में इज़ाफ़ा करने जा रही है। उस दूषित कचरे के जलने से क्या पीथमपुर और दो नगर सुरक्षित रह पाएंगे। इस सम्बन्ध में भारतीय विष संस्थान की अनुमति ली गई है क्या?यदि कोई हादसा होता है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?
ज्ञात हो कीटनाशक दवाइयां बनाने वाली बहुराष्ट्रीय अमेरिकन कंपनी यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड का 337 मेट्रिक टन कचरा जो निष्पादन के लिए बचा हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव की अध्यक्षता में गठित ओवरसाइड कमेटी ने 126 करोड रुपए की धनराशि यूनियन कार्बाइड के कचरे के निष्पादन के लिए मार्च 2023 में उपलब्ध करा दी गई। 337 टन जहरीले कचरे का निपटान धार के पीथमपुर स्थित ट्रीटमेंट स्टोरेज डिस्पोजल फैसिलिटी में होना है। बता दें कि इसके पहले भी इसके निष्पादन के लिए किया गया परिक्षण फेल हो चुका है। इसको लेकर 6 परिक्षण किए जा चुके हैं। जानकारों की माने तो इसमें अत्यधिक जहरीले रसायनों का उत्सर्जन हुआ है। अगर इन बातों का ध्यान नहीं रखा गया तो कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी भी हो सकती है।
पत्रकार सुसंस्कृति परिहार लेखक और स्तंभकार हैं।