नारायण मूर्ति के विचारों पर एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण

क्या ‘अधिक घंटे काम करने’ से भारतीय आईटी क्षेत्र की रचनात्मकता को बल मिलेगा? – नारायण मूर्ति के विचारों पर एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण

प्रस्तावना-

हाल ही में, इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने भारतीय युवाओं के लिए एक विवादास्पद बयान दिया कि यदि देश को प्रगति करनी है, तो उन्हें हर सप्ताह 70 घंटे काम करने के लिए तैयार रहना चाहिए। उनका मानना है कि इस अतिरिक्त मेहनत के जरिए भारत वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकता है। लेकिन यह विचार क्या वास्तव में लंबी अवधि के लिए टिकाऊ है? क्या यह वास्तव में नवाचार और रचनात्मकता को बढ़ावा देने में मदद करेगा, या केवल थकान और बर्नआउट का कारण बनेगा?

नारायण मूर्ति के बयान की पृष्ठभूमि-

नारायण मूर्ति का यह दृष्टिकोण शायद उनकी शुरुआती उद्यमिता के अनुभवों से प्रेरित है। इन्फोसिस की स्थापना के समय भारत में संसाधनों की कमी थी और इसे सफल बनाने के लिए बेहद कड़ी मेहनत की आवश्यकता थी।

हालाँकि, आज का आईटी परिदृश्य बहुत बदल चुका है। अब कंपनियों को केवल काम की मात्रा पर नहीं, बल्कि गुणवत्ता और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।

क्या इन्फोसिस वास्तव में एक “हैकवर्क कंपनी” है?

‘हैकवर्क कंपनी’ शब्द उन कंपनियों को दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता है जो मात्रात्मक उत्पादन (quantity) को प्राथमिकता देती हैं, जबकि गुणवत्ता और नवाचार (quality and innovation) को नजरअंदाज करती हैं।

क्या यह लेबल इन्फोसिस पर लागू होता है?

मेनियल कार्य पर निर्भरता: इन्फोसिस का बिजनेस मॉडल बड़े पैमाने पर आउटसोर्सिंग और आईटी सर्विसेज पर आधारित है, जिसमें अक्सर दोहराव वाले कार्य शामिल होते हैं।

नवाचार की कमी: आलोचकों का मानना है कि इन्फोसिस का ध्यान अब भी परियोजनाओं को समय पर पूरा करने और ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करने पर अधिक है, बजाय नए विचारों को अपनाने के।

अधिक घंटे काम करवाना इस बात का संकेत है कि कंपनी शायद प्रभावी प्रबंधन या दक्षता (efficiency) में सुधार की बजाय कर्मचारियों पर दबाव डालकर उत्पादन बढ़ाने की कोशिश कर रही है।

क्या लंबे घंटे रचनात्मकता बढ़ाते हैं?

1. मेनियल वर्क बनाम क्रिएटिव वर्क

मेनियल कार्य (जैसे डेटा एंट्री, कॉल सेंटर, या रिपिटिटिव टेस्टिंग) में घंटों का बढ़ना उत्पादन को बढ़ा सकता है, क्योंकि यह कार्य मानसिक सृजनशीलता पर कम और शारीरिक श्रम पर अधिक निर्भर हैं।

रचनात्मक कार्य (जैसे सॉफ्टवेयर डेवेलपमेंट, रिसर्च, डिज़ाइन) में, मस्तिष्क को आराम, नए दृष्टिकोण और प्रेरणा की जरूरत होती है। अगर कर्मचारियों को ज्यादा घंटे काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, तो रचनात्मकता बाधित हो सकती है और नवाचार की क्षमता घट सकती है।

2. ’70 घंटे प्रति सप्ताह’ का प्रभाव-

आज के तेज-तर्रार आईटी उद्योग में, गुणवत्ता अधिक मायने रखती है, न कि मात्र घंटों की संख्या। नारायण मूर्ति का यह सुझाव कि ज्यादा घंटे काम करने से उत्पादन बढ़ेगा, शायद अल्पकालिक लक्ष्यों के लिए काम कर सकता है, लेकिन दीर्घकालिक में यह कर्मचारियों की मनोवृत्ति और प्रेरणा को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।

मानसिक और शारीरिक थकावट: लंबे समय तक काम करने से बर्नआउट की समस्या बढ़ सकती है, जिससे कर्मचारी न केवल अपनी रचनात्मकता खो सकते हैं बल्कि उनकी उत्पादकता में भी गिरावट आ सकती है।

इन्फोसिस की वर्तमान रणनीति: रचनात्मकता बनाम अधिक घंटे काम-

हालांकि इन्फोसिस ने कुछ रचनात्मक पहल की हैं:

1. इन्फोसिस इनोवेशन फंड: नए स्टार्टअप्स और प्रौद्योगिकियों में निवेश।

2. डिजाइन थिंकिंग: कर्मचारियों को समस्या सुलझाने के नए तरीके सिखाना।

3. हैकाथॉन और आइडियाथॉन: नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए इवेंट्स आयोजित करना।

4. शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग: नई तकनीकों पर शोध के लिए भागीदारी करना।

इन पहलों के बावजूद, कंपनी का अधिक घंटे काम करने पर जोर इस ओर संकेत करता है कि उनकी प्राथमिकता शायद अब भी कम लागत और उच्च मात्रा पर है।

आलोचनाएं: क्या नारायण मूर्ति का दृष्टिकोण समय के साथ अप्रासंगिक हो चुका है?

रचनात्मकता की कमी: तकनीकी क्षेत्र में, खासकर जहां सॉफ्टवेयर डेवेलपमेंट और प्रोडक्ट डिज़ाइन का संबंध है, केवल घंटों की संख्या बढ़ाने से गुणवत्ता में सुधार नहीं होगा।

नवीनतम रुझान: आज की मॉडर्न कंपनियां, जैसे कि गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और ऐप्पल, अपने कर्मचारियों को लचीले कार्य घंटों और बेहतर कार्य-जीवन संतुलन के लिए प्रोत्साहित करती हैं।

प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त: अगर भारतीय आईटी कंपनियां अपने कर्मचारियों से ज्यादा घंटे काम की अपेक्षा रखेंगी, तो इससे कर्मचारी अन्य कंपनियों में नौकरी की तलाश कर सकते हैं जो बेहतर कार्य परिस्थितियों की पेशकश करती हैं।

समाधान: आगे की राह क्या होनी चाहिए?

1. लचीले कार्य घंटे: कंपनियों को चाहिए कि वे कर्मचारियों को लचीलापन दें ताकि वे अपनी रचनात्मक क्षमता का पूर्ण उपयोग कर सकें।

2. मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान: कर्मचारियों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना दीर्घकालिक सफलता के लिए आवश्यक है।

3. नवाचार पर ध्यान केंद्रित करें: केवल उत्पादन बढ़ाने की बजाय, कंपनियों को नवीन विचारों और तकनीकों में निवेश करना चाहिए।

4. प्रदर्शन के आधार पर प्रोत्साहन: लंबे घंटे काम करवाने के बजाय, कर्मचारियों को उनके नवाचार और योगदान के आधार पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष-

नारायण मूर्ति का यह विचार कि अधिक घंटे काम करने से उत्पादकता बढ़ेगी, शायद उस समय के लिए प्रासंगिक था जब इन्फोसिस एक नई कंपनी थी और संसाधनों की कमी थी। लेकिन आज के प्रौद्योगिकी और नवाचार आधारित युग में, यह दृष्टिकोण शायद अप्रासंगिक हो चुका है।

आपकी क्या राय है? क्या भारतीय आईटी उद्योग को अपने पुराने ढर्रे से बाहर आकर नए दृष्टिकोण अपनाने चाहिए?

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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