कोई तो जगह हो इस मुट्ठी भर सत्य की–

,कोई तो जगह हो इस मुट्ठी भर सत्य की–
एक्स से लेकर सोशल मीडिया तक एसा कोई हिस्सा शेष नहीं बचा जहां सभ्य समाज आकर अपना काम,या इंसान की इस मानसिक प्रगति का उपयोग और सामिल हो सके,इंटरनेट मीडिया– यू तो बहुत अच्छी प्रगति है जहां से आप घर बैठे कुछ भी उपलब्ध कर सकते हैं इंसानियत से लेकर,लेकिन अपनी सोच टेलेंट के अनुसार ही पोसिवल है, विडंबना–
जो भीड़ में सुमार यहां बेशुमार हो गया–
और मुट्ठी भर यहां सर्म में सिमट गया–
सर्म महसूस होने लगी है क्योंकि आज जैसे मानवता का पलायन तेज गति से होकर स्वार्थ ओर अपराध की बाढ़ में देखी जा सकती है, उसे कहकर बताने की आवश्यकता नहीं है,अगर बीस प्रतिशत कहा जाए तो भी आंकड़ा ज्यादा ही होगा–
अब मैन सवाल तो यह होना चाहिए कि यह कैसे इंसानों के लायक है और इसे खत्म किया जाए या सुधार किया जाना अति आवश्यक मुद्दा है जुवानी अल्टीमेटम जब फेल है तो कानून को इस पर समय रहते ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है वरना इस प्रगति को अपराध सफल अड्डा ही कह सकते हैं, प्रगति नहीं इसमें कोई सक नहीं कि इंटरनेट मीडिया दुनियां मुट्ठी में करने जैसी प्रगति है लेकिन जो प्रगति देखी जा रही है उससे बड़ी तेजी से मानवीय समाज की आत्मा निकल रही है कटु,सबसे ज्यादा युवा पीढ़ी जिसे हम भविष्य का दाता कहते हैं बो यहां से कमाई के लिए अपनी मां बहन बेटियों तक से मनोरंजन कर सकता हैं तो देश और जनहित की सुरक्षा—
पुरूषार्थ निवाले की जगह जिस्म और आबरू खाने, राजनीति जो माई बाप है की बो खुदके बाप की,रिश्तों का कत्ल,मानवता के भाव खत्म,मुर्दों का व्यापार होने लगा,बचपन खत्म हो गया,पास होकर दूरियों का एहसास,भाईचारे का कत्ल,प्रेम हो या प्यार स्तेमाल की वस्तु, कभी समाज एक परिवार जैसा हुआ करता था कि चोट किसी एक को लगती थी और कराहता समाज था,आज जिसके चोट लगी है बो तन्हा चीख रहा है और समाज बहरा होकर उस पर हंस रहा के और तेरे मेरे की सोच सहयोग और सहायता की बजाय आगे बढ़ जाता है–
अब सोचना ही नहीं इस पर ठोस एजेंडे बनाने की अति आवश्यकता है क्योंकि जब अपराध में परिवर्तन और बाढ़ हो सकती है तो कानून में क्यों नहीं,समाज की वापसी कैसे की जाए,और मुट्ठी भर सत्य को सुरक्षित कैसे रखा जाए जो बदलते परिवेश की सोच को सबसे बड़ा शत्रु लगता है, कभी एक ज्ञान और शिक्षा में स्तेमाल होने बाले संस्कार हुआ करते थे गुरु, माता पिता परिवार के अच्छे मानव के शिक्षा में,कभी झूंठ मत बोलना किसी चीज को मत चुराना बच्चा घर से ही भविष्य की शुरुआत करता है,और यह बात सही भी है,कि बिना पूंछे कोई चीज मत लेना,आज चौंकाने वाली सोच,भविष्य के बक्ता ज्ञान बांटने वाले ही कहते हैं कि इतना सत्य भी ठीक नहीं जो खुद का ही बुरा करदे,जान जोखिम में, जब प्रकृति बदलाव मय है तो इंसान क्यों नहीं,और नहीं भी बदला तो जुबाने उसको इतना बदल देती है कि बो आईने से ही सवाल कर बैठता है कि तेरी आंखों की रौशनी कम क्यों हो गई, यह बीस प्रतिशत का आंकड़ा भी दम तोड़ दे उससे पहले यह निश्चित होना जरूरी है कि बड़ी प्रोग्रेस पर कैसे और कितने लोग सामिल होने चाहिए,फिलहाल तो यह कमाई से लेकर मानव पतन का स्थान बन चुका है जैसे जैसे रात गहराती है वैसे वैसे आदमी अपने अपने लक्ष्यों की प्राप्ति अपनी अपनी सोच के अनुसार तैयार प्राप्त करने लगता किसे गिराना और किसे से उगाना है,हर स्त्री रात को सोशल मीडिया पर अपराध की ट्रेनिंग और गंदगी देखने नहीं आती है,अपने हुनर के अनुसार रात की खामोशी में दिन के शोर शराबे से मुक्त होकर अपना काम भी करती है, और ग्रीन लाइट के शौकीन अपनी अपनी सोच के अनुसार नामकरण,लेकिन कलमकार के लिए अपना अलग समय होता है जहां बो और उसकी सोच के शिवाय परिंदों का भी डिस्टर्ब पसंद नहीं–

कितना निचोड़ना पड़ता है खुदको–
तब चंद शब्द निकलते हैं–
और आम के शौकीन-
इसे गुठली समझते हैं–

लेखिका-पत्रकार-दीप्ति चौहान।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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