
जब संतानें अपने इतिहास के प्रति उदासीन रहती हो तो उनके पुरखों के पुण्य और गौरव गाथाएं समय की मार से क्षीण होते होते एक दिन विलुप्त ही हो जाती हैं।
कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि जिन महापुरुषों की गाथाएं बच्चे बच्चे की जुबान पर होनी चाहिए हममें से अधिकतर उनका नाम तक नहीं जानते।
किसे दोष दें अपने पुरखों को सत्ताधीशों को अथवा उनकी किसी विवशता को जो भी हो पर आज हम सब उस महान योद्धा की वीरता को भुला देने के गुनहगार हैं।
बात इतिहास के उस महान योद्धा की है जो अपने जीवन के सभी युद्धों में अविजित रहा। सनातन के उत्थान और अटक से कटक तक देश को भगवामय कर देने वाला वह महान योद्धा ऐसा था जिसे सनातन सत्ता का स्वर्णिम काल कहा जा सकता है।
जी हां मैं बात कर रहा हूं पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट की जिन्हें हम थोरले बाजीराव अथवा बाजीराव प्रथम के नाम से भी जानते हैं।
इनके पिता पेशवा विश्वनाथ भट्ट छत्रपति शाहू जी महाराज के मुख्य सेनापति थे उनके देहावसान के उपरांत बाजीराव को 20वर्ष की आयु में पेशवा बना दिया गया मराठा साम्राज्य के चौथे राजा छत्रपति शाहू जी महाराज के प्रधानमंत्री पेशवा बाजीराव अपने 20वर्षों के अभियान में कुल 43युद्ध किए और सभी में विजय प्राप्त किया यह अदभुत था।
इतने बड़े महानायक के प्रति सामाजिक और सरकारी उपेक्षा और उदासीनता अत्यंत पीड़ादायक बात है।
फिल्मी कलाकारों और निर्माताओं के माध्यम से इस ऐतिहासिक महानायक का जो चरित्र पेश किया गया वह एक योद्धा का एक प्रधानमंत्री एक सेनापति का कम बल्कि एक आशिक का चरित्र अधिक था , मस्तानी का बाजीराव के जीवन में आना एक महत्वपूर्ण घटना था जो अंतत: उनके लिए दुर्भाग्यपूर्ण ही रहा पर उनके जीवन चरित्र का जो सबसे महत्वपूर्ण बिंदु था वह था अजेय योद्धा का जो सिनेमा वालों के लिए शायद लाभ कारी नहीं था।
पहले धर्म निरपेक्ष और अब राष्ट्रवादी सरकारों के वर्षों के शासन के बावजूद ऐसी उपेक्षा का क्या कारण हो सकता है? जिन धरोहरों को संभाल कर संजोकर रखा जाना चाहिए था उनकी घोर उपेक्षा अवमानना हुई है।
गलती किसी एक व्यक्ति या समाज की नहीं इसके लिए पूरा हिन्दू समाज जिम्मेदार है, हमने अपने नायकों के प्रति न तो कृतज्ञता भाव ही रखा न इनके लिए कभी आवाज उठाए नतीजा भी वैसा ही मिला जहां हमने लुटेरे आतताइयों के अवशेषों को भी संभालकर रखा वहीं अपने महानायकों को भुला दिए।
आइए आज अपने इस महानायक के पुण्य तिथि पर हम सभी अपना श्रद्धा सुमन अर्पित करें और और इस अविजित योद्धा के लिए अपनी आवाज बुलन्द करें।
अब से “जो जीता वही सिकंदर” को छोड़कर #जो_जीता_वही_बाजीराव
कहने की आदत डालें।