किवाड़ की खुली सांकल किसी के लौटने की एक उम्मीद होती है

बचपन में हम देखते थे कि घर के पुरुषों के बाहर जाने पर घर की महिलाएं कभी किवाड़ तुरंत बन्द नहीं करती थी, सांकल खुली छोड़ देती थीं। कभी कभी पुरुष कुछ दूर जाकर लौट आते थे, ये कहते हुए कि कुछ भूल गया हूं और मुस्कुरा देते थे दोनों एक दूसरे को देखकर।

एक बार बच्चे ने अपनी मां से पूछ लिया कि मां पापा के जाने के बाद कुछ देर तक दरवाजा क्यों खुला रखती हो??

तब मां ने बच्चे को वो गूढ़ बात बताई जो हमारी सांस्कृतिक विरासत है। उन्होंने बच्चे को कहा कि किवाड़ की खुली सांकल किसी के लौटने की एक उम्मीद होती है। अगर कोई अपना हमसे दूर जा रहा है तो हमे उसके लौटने की उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। उसका इंतजार जीवन के आखिरी पल तक करना चाहिए।

आस और विश्वास से रिश्तों की दूरी मिट जाती है, इसीलिए मैं दिल की उम्मीद के साथ दरवाजे की सांकल भी खुली रखती हूं, जब भी वापस आए तो उसे खटकाने की जरूरत नहीं पड़े, वो खुद मन के घर में आ जाए।

जीवन में कुछ बातें हमेशा हमे सीख देती है, कि कोई रिश्तों से नाराज कितना भी हो, उसके लिए दिल के दरवाजे बन्द मत करो। जब कभी उसे आपकी याद आयेगी, उसे आपके पास आना हो तो वो हिचके नही, मस्ती में पूरे विश्वास से बिना कुंडी खटकाए दिल के अन्दर आ जाए।
साभार

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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