लखनऊ के दायित्वाधीन पदाधिकारियों के निर्वाचन के विषय में हमारे विचार

*अवध बार एसोसिएशन उच्च न्यायालय लखनऊ के दायित्वाधीन पदाधिकारियों के निर्वाचन के विषय में हमारे विचार-*

यद्यपि कि संसार का प्रत्येक व्यक्ति न्यूनाधिक विशिष्ट विशिष्टताओं से युक्त है,तथापि यदि वह अधिवक्ता बन्धुओं के गरिमामयी एसोसिएशन का नेतृत्व करना चाहता है,तो हमारे व्यक्तिगत विचार से उसमें अधोलिखित गुणों व लक्षणों का होना उसके पद व दायित्व की गरिमा को अत्यधिक प्रभावपूर्ण बना देगें।

1.वह व्यक्ति सत्य,ज्ञान,धैर्य,उत्साह,आत्मविश्वास,बल,
बुद्धि,विवेक,साहस,पराक्रम,निर्भयता आदि सात्त्विक वृत्तियों को धारित करने वाला हो।

2.उसमें तर्कशीलता,वाकपटुता,स्पष्टवादिता,प्रत्युत्पन्नमति आदि गुणों का समावेश हो।

3.अधिवक्ता बन्धुओं की किसी समस्या के निवारण हेतु किसी विशिष्ट प्रज्ञावान व्यक्ति द्वारा कल्पित समस्त प्रकल्पों के विचारोपरांत सर्वश्रेष्ठ विकल्प चयनित कर उस समस्या के निवारण करने के सामर्थ्य से युक्त हो।

4.उसका आभामण्डल ऐसा तेजस्वी,ओजस्वी व कान्तिमय हो कि बुरे से बुरा आचरण करने वाला व्यक्ति भी उसके समक्ष आकर स्वेच्छया सदाचरण करने को विवश हो जाए।

5.जो बेंच को बार के समतुल्य अथवा बेंच का उद्भवकर्त्ता होने के कारण बार को स्वभावतः उससे श्रेष्ठ अनुभूत करता हो।

6.जो त्याग,तपस्या व बलिदान की ऐसी प्रतिमूर्ति हो,कि अधिवक्ता बन्धुओं के हितार्थ अपना सर्वस्व अर्पण का भाव स्वभावतः रखता हो।

7.जो समय समय पर अधिवक्ता बन्धुओं की प्रत्येक समस्या को स्वमेव अनुभूत करने व उसके निवारण को व्यग्र रहता हो।

8.हास-परिहास,गमन,शयन,भोजन आदि की मर्यादाएं उसके स्वभावतः स्वभाव में हों।

9.विधायिका,कार्यपालिका व न्यायपालिका के किसी सदस्य अथवा उसके प्रमुख के समक्ष अपने विषय व बात को ओजपूर्ण,प्रभावपूर्ण व विधिसम्मत ढंग से हर्ष शोक आदि विषादों से रहित होकर प्रस्तुत करने के सामर्थ्य से युक्त हो।

10.जिसमें मृदुभाषिता,नम्रता,सदाचारिता आदि गुण स्वभावतः ही विद्यमान हों।

11.जो समय समय पर अधिवक्ता हितार्थ कठोर निर्णय लेने के सामर्थ्य से युक्त हो।

12.जो अपने अग्रजों को प्रणाम करने व अनुजों को आशीर्वाद देने का भाव स्वभावतः रखता हो।

13.जो निर्वाचित होने के बाद स्वयं को पदासीन न समझकर दायित्वाधीन समझने के भाव से युक्त हो।

14.जो अधिकार प्राप्त होने के पश्चात फले हुए वृक्ष के सदृश्य झुकने में ही अपनी उच्चता का बोध करते हों।

15.जो विजयी होने के पश्चात अपने मतदाताओं के नहीं अपितु सम्पूर्ण बार व अधिवक्ता बन्धुओं के हितार्थ कार्य करने का स्वभाव रखते हों।

16.जो अपने अनुजों के जलपान,भोजन,यात्रा व्यय आदि को सदैव अपना दायित्व समझकर करता हो न कि निर्वाचन के समय ही ऐसा करते हो।

17.जो निर्वाचन में विजय या पराजय दोनों के बाद सभी अधिवक्ता बन्धुओं से एक सा व्यवहार करते हों।

18.जिन्हें सम्पूर्ण अधिवक्ता बन्धुओं की मात्र एक जाति “अधिवक्ता जाति” दिखती हो।

19.जिन्हें छोटे बड़े सभी अधिवक्ता बन्धुओं में समतुल्यता के दर्शन होते हों।

20.जिनकी भेष,भूषा अधिवक्ता भेष-भूषा व मानकों के अनुरूप होती हो।

21.जो वकालत के सिवाय धनार्जन के किसी अन्य कार्य में संलिप्त न हों।

अब यह भी विचारणीय है,कि उपरोक्त गुणों व लक्षणों से युक्त व्यक्ति शायद ही मिलें,ऐसी दशा में जो इन गुणों व लक्षणों में से अधिक गुणों व लक्षणों को धारित करने वाले प्रत्याशी हों उन्हें हमें अपने बार का नेतृत्व प्रदान करना चाहिए।

  उपरोक्त विचार मेरे स्वयं अपने हैं,जो निरन्तर 21 वर्षों से वकालत करते हुए आप सभी आदरणीय बन्धुओं से ग्रहण कर पाया हूँ, उन्हीं को आप सभी के मध्य चर्चित व विचारित कर रहा हूँ।

आप सभी का कोटिशः नमन,वन्दन व अभिनन्दन करता हूँ।

        
              *अम्बिका प्रसाद मिश्र*

                  प्रत्याशी-महामंत्री
             उच्च न्यायालय लखनऊ
एवं राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष भारतीय मीडिया फाउंडेशन अधिवक्ता फोरम

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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