एनसीईआरटी पाठ्यक्रम में रामायण व महाभारत को शामिल करना सर्वथा उचित –ज्ञानेन्द्र रावत

देश में आजकल धर्म,धार्मिक ग्रंथ, संस्कृति,व्यक्ति की भावनाओं और उसकी निजता के अपमान की एक सोची-समझी साजिश के तहत कभी कोई किसी खास धर्म, खास संस्कृति, ग्रंथ और किसी की भावना या निजता पर कीचड़ उछाल कर किसी धर्म, संस्कृति का सबसे बडा़ रहनुमा बनने का कुत्सित प्रयास जारी है। इस मामले में देश में यदि कोई शीर्ष पर हैं तो वह हैं सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य। अभी फिलहाल उन्होंने एनसीआरटीई के पाठ्यक्रम में रामायण और महाभारत को शामिल किये जाने को चीर हरण की संज्ञा देकर सार्वजनिक क्षेत्र में चर्चा में रहने का प्रयास किया है जो नितांत अनुचित है और अविवेकपूर्ण है। यह कहना है वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत का।उनके अनुसार रामायण और महाभारत हमारे पौराणिक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, सांस्कृतिक धरोहर हैं। सनातन परंपरा और राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक हैं जिसके बारे में देश, समाज और युवा पीढी़ को जानने-समझने का पूरा अधिकार है। यदि इन्हें एनसीआरटीई के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाता है तो यह प्रयास स्तुतियोग्य है,प्रशंसनीय है। राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त ने कहा भी है कि जिसे देश, धरा, संस्कृति से प्रेम नहीं वह मृतक समान है। समझ नहीं आता स्वामी प्रसाद जैसे नेता समय समय पर इस तरह के बयान देकर न केवल खुद का व अपने दल का ही क्यों अहित करने पर तुले हैं। देश में किसी भी धर्म,ग्रंथ के अपमान, व्यक्ति की भावनाओं से खिलवाड़ और निजता से खिलवाड़ की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती।