
आजकल गोचर में संम्बतसर के राजा शनि महाराज मकर राशि में वक्री हैं और सचिव महोदय वृहस्पति स्वराशि मीन में वक्री हो रहे हैं । राजा और सचिव दोनों ही अपने स्थान पर अतिशय सक्रिय हैं ।
सूर्य देवता भी अपनी राशि सिंह में स्थित हैं ।
शुक्र कर्क में मंगल वृष राशि में विराजमान हैं ।
राहु महाशय मंगल की राशि में आसन जमाये हैं और केतु जी तुलाराशि में बैठकर ज़माने से अपनी नज़र मिला रहे हैं । और बुध अपनी स्वराशि कन्या में हैं ।
शनि महाराज अपनी राशि में वक्री होकर मीन ,कर्क और तुला राशि पर अपनी पूर्ण वक्र दृष्टि डाल रहें हैं और मिथुन तथा सिंह राशि से षडाष्टक बना रहे हैं । धनु ,मकर , कुम्भ शनि महाराज की साढ़े साती की छाया में हैं । यूं तो शनि स्वराशि मकर में वक्री हैं किंतु वे सूर्य के नवमांश और मंगल के नक्षत्र में स्थित होकर अप्रिय स्थिति में हैं और अप्रिय स्थिति में फंसे वक्रता का बल प्राप्त शनि यत्किंचित अशुभ प्रभाव में हैं ऐसा प्रतीत हो रहा है । शनि पर संम्बतसर के शुभ सचिव वृहस्पति की दृष्टि नहीं है उल्टे सम्वत्सर के राजा शनि की वक्र दृष्टि गुरु की शुभता में कमी ला रही है । इसके अतिरिक्त गुरु जी स्वयं इस समय शनि के मित्र शुक्र के नवमांश तथा शनि के ही नक्षत्र में स्थित हैं अतः शनि का गुरुजी संम्बतसर सचिव पर पर्याप्त प्रभाव, नियंत्रण है और गुरुजी का प्रभाव इस समय राजा शनि पर नहीं है ।
ऐसी स्थिति में विद्वानों का कथन है कि जिनकी मूल कुण्डली में शनि खराब हैं , अशुभ है ,वहां गोचर में
वक्री शनि की यह स्थिति खराब फल देकर नुकसान पहुंचा सकती है । यह विद्वानों का मत है ।
अतः कृपया सावधानी अपेक्षित है । तब तक विशेष संयम बरतें ।
कोई नवीन योजनाओं का शुभारम्भ अभी उपरोक्तानुसार मूल कुण्डली में खराब शनि वाले नहीं करें ।
शनि २३ अक्टूबर तक गोचर में वक्री हैं । इसके बाद मार्गी होकर अपने मूल स्वभाव में आयेंगे और उनकी अशुभता में पर्याप्त मात्रा में कमी आयेगी ।
तब तक हरि स्मरण , श्री हनुमत लाल में आस्था , श्री शिव आराधना , श्रीसूर्य उपासना सदाचरण और संयम बरतने की
कल्याणकारी सम्मति निवेदित है।
ओउम् नमः भगवते वासुदेवाय ।
आचार्य कविकिंकर