
बाॅलीवुड में ड्रग्स कनेक्शन के बाद एमपी में अफीम की खेती पर सवाल
देश में क्या अफीम की खेती की आवश्यकता है? यह सवाल सुशांत सिंह राजपूत की संदेहास्पद हालातों में मौत और इसमें बाॅलीवुड के कथित ड्रग्स कनेक्शन के बाद फिर गहरा गया है। मध्य प्रदेश अफीम उत्पादन के मामले में भारत के अग्रणी राज्यों में शुमार है, इसके चलते यहां भी कई सवाल उठ रहे हैं।
मध्य प्रदेश के मंदसौर, नीमच और रतलाम जिले में अफीम की खेती होती है। मालवा अंचल के इन जिलों की जलवायु अफीम की खेती के लिए बेहद मुफीद है। अफीम की खेती का बाकायदा रकबा तय होता है। इसकी बुवाई से लेकर कटाई तक का कामकाज सरकारी तंत्र की देखरेख में होता है। मध्य प्रदेश की सीमा से लगे राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भी अफीम का उत्पादन होता है।
आंकड़ों को लेकर विवाद
अफ़ीम की खेती से जुड़े आंकड़ों को लेकर सदैव विवाद के हालात रहते हैं। किसान फसल के सही उत्पादन के आंकड़े को छिपाता है। सरकारी तंत्र भी सही आंकड़ों को देने से बचता है। इसकी वजह सरकारी और तस्करी वाले क्षेत्र में अफीम के दामों में जमीन-आसमान का अंतर होना है।
‘सत्य हिन्दी’ ने मध्य प्रदेश के उपरोक्त तीनों जिलों में इस सीजन की अफीम की फसल से जुड़े आंकड़ों की काफी खोजबीन की, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद सही आंकड़े नहीं मिल पाये। अफसरों का रवैया टालमटोल वाला रहा। राजस्व महकमा पूरे मसले को देखता है। ‘सत्य हिन्दी’ ने राजस्व मंत्री से भी संपर्क साधा, लेकिन आंकड़े बता पाने में उन्होंने भी असमर्थता जता दी।
बता दें, मध्य प्रदेश 1985 में पहली बार तब सुर्खियों में आया था, जब मंदसौर जिले के गरोठ में हेरोइन और स्मैक बनाने की एक बड़ी फैक्ट्री पकड़ी गई थी। अफीम के जरिये बनने वाले घातक नशे के कारोबार में एक डाॅक्टर को लिप्त पाया गया था। तब खूब बवाल मचा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी एक्शन में आये थे। बाद में केन्द्र की सरकार ने नशे के कारोबार पर लगाम लगाने के लिए सख्त कानून बनाया था।
मध्य प्रदेश में अफीम की खेती की पुरानी परिपाटी है। नीमच में केन्द्र सरकार की अल्हकोलाइट फैक्ट्री है। इस फैक्ट्री में अफीम के जरिये मार्फिन बनाई जाती है। जीवनरक्षक दवाओं में मार्फिन का उपयोग भी सिंथेटिक दवाओं के चलते कम हुआ है।
मध्य प्रदेश में अफीम की खेती से जुड़ी सरकारी खामियों और नशीले पदार्थों के कारोबार से जुड़े समूचे गोरखधंधे पर सतत खबरें देने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र सेठी ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘अफीम की खेती की अब आवश्यकता नहीं है।’ उन्होंने कहा, ‘नीमच की फैक्ट्री कई टन मार्फिन और बड़ी तादाद में कच्चे माल से पटी हुई है। वियाग्रा बनाने वाली एक दवा कंपनी कुछ साल पहले तक इस फैक्ट्री से मार्फिन खरीदा करती थी। आज फैक्ट्री के लुभावने ऑफर के बावजूद मार्फिन खरीदने वालों का टोटा है।’
सरकारी तंत्र की मिलीभगत?
सेठी बताते हैं, ‘गड़बड़ियों की शुरुआत रकबा तय करने से हो जाती है। फसल पैदावार के आंकड़ों को कम करके बताया जाता है। सरकारी तंत्र की मिलीभगत से ही पूरा गोरखधंधा चलता है।’ वे बताते हैं, ‘अफीम का दाम तस्कर बाजार में सवा से डेढ़ लाख रुपये प्रतिकिलो तक मिल जाता है। इसी वजह से पूरा खेल होते रहता है।’
वे यह भी दावा करते हैं, ‘नारकोटिक्स विभाग से लेकर पुलिस तक में अफीम के गोरखधंधे में लिप्त
कई कारिंदे ऐसे हैं जो आज अरबपति हैं। ऐसे तत्वों ने अकूत संपत्ति बनाई है। यह गोरखधंधा किसी से छिपा नहीं है, लिहाजा सबकुछ चल रहा है।’
खंडवा में होती है गांजे की खेती
मध्य प्रदेश का खंडवा जिला गांजे की खेती के लिए कुख्यात है। गांजे की खेती प्रतिबंधित है। बावजूद इसके चोरी-छिपे इस जिले में गांजा पैदा किया जा रहा है। सुशांत केस में भी नशीली दवाओं के जो तार मिले हैं, उसमें 65 ग्राम गांजा बरामद हुआ है।
साधुओं के पास गांजा
मध्य प्रदेश के एक पूर्व डीजीपी और सेवानिवृत्त आईपीएस अफ़सर ने नाम ना छापने की शर्त पर ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘मध्य प्रदेश में अफीम की खेती और इसकी आड़ में तस्करी की समस्या पुरानी है। किसान वोट भी इस समस्या का अहम कारण है। कोई भी सरकार मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालना नहीं चाहती है।’
पूर्व डीजीपी ने सुंशात केस और बॉलीवुड के कथित ड्रग्स कनेक्शन से जुड़ी खबरों पर कहा कि सिंहस्थ में साधु-संत बड़ी मात्रा में गांजा रखते हैं और कई बार पुलिस ने यह पकड़ा भी है। तमाम दावे-प्रतिदावों के बीच जानकार कहते हैं, अफीम की तस्करी और इससे बनने वाली नशीली दवाओं पर रोक का एकमात्र रास्ता, अफीम की खेती को बंद कर दिया जाना ही है।