समूचे बुंदेलखंड में गाजे-बाजे के साथ मनाया गया महामुलिया का पर्व

छतरपुर
समूचे बुंदेलखंड में गाजे-बाजे के साथ मनाया गया महामुलिया का पर्व

पित्र पक्ष में पूर्णमासी से लेकर अमावस्या तक नन्हे-मुन्ने बच्चों ने की खुशहाली की कामना

रीति रिवाजो के अनुसार परंपरागत रूप से मनाया जाने वाला त्यौहार, महामुलिया का आज अंतिम दिन रहा। इस पर्व की शुरुआत पितृपक्ष में पूर्णमासी से होती है और आज पित्र मोक्ष अमावस्या के दिन गाजे-बाजे सहित नन्हे मुन्ने बच्चे विसर्जन का कार्यक्रम रखते हैं इसमें विभिन्न प्रकार की झांकियों के माध्यम से बच्चों ने जगहो जगहों पर प्रस्तुति की, इस पर्व के मनाने की प्रथा बुंदेलखंड में अति प्राचीन है।
इस पर्व के अवसर पर शुरुआत से ही नन्हे-मुन्ने बच्चे लगातार 15 दिन गीत गुनगुनाते हुए कांटो की डाल पर फूल सजाते हैं और पास के तालाब एवं पोखरो में जाकर संध्या के वक्त विसर्जन करते हैं।
महत्वपूर्ण यह है कि नन्हे-मुन्ने बच्चों के द्वारा यह संदेश प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में लाभकारी है जो कि उनके प्रदर्शन से साफ जाहिर होता है की कांटों में फूल सजाकर खुशहाली की कामना करते हैं आशय यह है कि बुरे समय को भी अच्छा बनाने का एवं खुश रहने का संघर्ष इंसान को प्रत्येक क्षण करना चाहिए।
इस त्यौहार को लेकर मान्यता है कि महामुलिया एक देवी थी जिसको मनाने के लिए बच्चे इस त्योहार को मनाते हैं। पर्व पर खासा माहौल दूर अंचलों में दिखाई देता है, खास तौर पर शहरी इलाकों में हो सकता कुछ बच्चे इस त्यौहार की परंपरा से अनजान भी हो। क्योंकि शहरी इलाकों में जागरूकता एक बहुत बड़ी विडंबना बन चुकी है अतः यह प्राचीन परंपराएं पतन की ओर जा रही है।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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