बिगुल बजा! मीडिया महासंग्राम का आह्वान – भारतीय मीडिया फाउंडेशन की ललकार।
निशा कांत शर्मा की खास रिपोर्ट।

नई दिल्ली:
संकट की काली छाया लघु एवं छोटे मझोले समाचार पत्रों पर गहराती जा रही है, और अब भारतीय मीडिया फाउंडेशन ने इस अन्याय के खिलाफ रणभेरी फूंक दी है! संगठन ने एक ऐतिहासिक और ऊर्जा से भरपूर आह्वान करते हुए सभी संपादकों और संचालकों को एक शक्तिशाली मंच पर एकजुट होकर अपने हक के लिए अंतिम सांस तक लड़ने का संकल्प लेने का आह्वान किया है।
“साथियों, अब निष्क्रिय रहने का समय समाप्त हो गया है!” भारतीय मीडिया फाउंडेशन के संस्थापक मंडल के सभापति एवं ओजस्वी राष्ट्रीय चेयरमैन संजय कुमार मौर्य ने गरजते हुए कहा, “हमारी बिखरी हुई शक्ति को अब एक वज्रमुष्टि में बदलना होगा! आइए, एक ऐसे मीडिया संगठन के रूप में उठ खड़े हों, जिसकी आवाज सत्ता के गलियारों तक गूंजे और हमारे साथ हो रहे इस घोर अन्याय का अंत करे!” उनके इस सिंहनाद ने छोटे और मझोले मीडिया संस्थानों के हृदय में क्रांति की ज्वाला प्रज्वलित कर दी है।
भारतीय मीडिया फाउंडेशन के कर्मठ राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित बालकृष्ण तिवारी ने भविष्य की भयावह तस्वीर दिखाते हुए चेतावनी दी, “यदि आज हम, सभी साहसी प्रशासक और निर्भीक संपादक, एक चट्टान की तरह एकजुट नहीं हुए, तो सरकार की यह समाचार पत्र विरोधी सुनामी निश्चित रूप से लोकतंत्र के इस मजबूत स्तंभ, मीडिया की आज़ादी और अधिकारों को जड़ से उखाड़ फेंकेगी! जागो! संगठित हो! और अपनी सामूहिक शक्ति का प्रदर्शन करो!”
संगठन के बेबाक राष्ट्रीय प्रवक्ता कृष्ण कांत जायसवाल ने सत्ता के अहंकार पर तीखा प्रहार करते हुए कहा, “यह देखना अत्यंत पीड़ादायक है कि सत्ता के मद में चूर कुछ स्वार्थी तत्व अपने काले कारनामों और भ्रष्टाचार के घिनौने साम्राज्य को छिपाने के लिए मीडिया के पंखों को कतरने पर तुले हुए हैं! वे उस अटूट सत्य को भूल गए हैं कि किसी भी जीवंत लोकतांत्रिक राष्ट्र में मीडिया और सरकार दो अलग-अलग, लेकिन समान रूप से महत्वपूर्ण किनारों की तरह होते हैं। यदि मीडिया की आवाज को दबाया जाएगा, तो यह लोकतंत्र की आत्मा की हत्या होगी!”
कृष्ण कांत जायसवाल ने देश के प्रत्येक जागरूक पत्रकार, साहसी सामाजिक कार्यकर्ता और जिम्मेदार नागरिक से लोकतंत्र को बचाने के लिए एक महासंग्राम में शामिल होने की मार्मिक अपील की। उन्होंने दृढ़ता से कहा, “जब तक लोकतंत्र के इस चौथे प्रहरी, मीडिया को संवैधानिक सुरक्षा कवच प्राप्त नहीं होता, तब तक न हमारा देश सुरक्षित रहेगा और न ही हमारा संविधान अक्षुण्ण रहेगा!” उनका यह उद्घोष मीडिया की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के अस्तित्व के बीच अटूट बंधन को दर्शाता है।
भारतीय मीडिया फाउंडेशन का यह प्रचंड आह्वान एक शक्तिशाली तूफान की तरह आया है, जो लघु एवं छोटे मझोले समाचार पत्र-पत्रिकाओं के लिए एक नई आशा की किरण लेकर आया है। यह उन्हें अपनी दबी हुई आवाज को बुलंद करने और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए एक अटूट शक्ति बनने की प्रेरणा देता है। अब यह देखना होगा कि कितने निष्ठावान संपादक और संचालक इस महायज्ञ में अपनी आहुति देते हैं और इस निर्णायक लड़ाई को जीतकर लोकतंत्र की नींव को और मजबूत करते हैं। यह केवल मीडिया की अस्मिता की लड़ाई नहीं है, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा का संकल्प है!