
देवबंद: जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने उत्तराखंड में लागू की गई समान नागरिक संहिता को संविधान में मौजूद धार्मिक स्वतंत्रता के विरुद्ध बताते हुए कहा कि यह मुसलमानों को किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है।
मौलाना मदनी ने कहा कि संबंधित पक्षों, विशेष रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यकों की आपत्तियों को नजरअंदाज कर इस कानून का क्रियान्वयन न्याय विरोधी है।
भारत के विधि आयोग द्वारा मंगाए गए जनता के सुझावों से यह तथ्य सामने आ गया था कि देश के अधिकांश लोग इस तरह के कोड को स्वीकार नहीं करते।
इसलिए विधि आयोग ने सरकार को सलाह दी थी कि समान नागरिक संहिता न तो वांछनीय थी और न ही इसकी कोई आवश्यकता है।
इसके बावजूद सार्वजनिक सुझावों और विधि आयोग की सिफारिशों की उपेक्षा करते हुए सरकार ने एक तानाशाह की तरह इस कानून को जनता पर थोपकर लोकतंत्र की हत्या की है।
मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि हमने सरकारों के सामने इस सच्चाई को बार-बार पुरजोर ढंग से प्रस्तुत किया है देश और संविधान के निर्माताओं ने पर्सनल लॉ की रक्षा करने का वादा किया था।
अगर सरकार इस वादे से मुकरती है तो हम इसके विरुद्ध कानून और संविधान के दायरे में रह कर संघर्ष करेंगे।
उन्होंने कहा कि हमारा देश अनेकता में एकता का एक महान उदाहरण है।
इसको नजरअंदाज कर जो भी कानून बनाया जाएगा, उसका सीधा असर देश की एकता और अखंडता पर पड़ेगा।
यह अपने आप में समान नागरिक संहिता के विरोध का सबसे बड़ा कारण है।
मौलाना मदनी ने कहा कि हम इस बात पर दृढ़ हैं कि मुसलमान इस्लामी शरिया पर पूरी तरह डटे रहेंगे और इस रास्ते में आने वाले किसी भी कानून की परवाह नहीं करेंगे।👈🏻