आजादी के बाद इतिहास के पन्नों में सिमटे गोकुल सिंह दर्जी

आजादी के बाद इतिहास के पन्नों में सिमटे गोकुल सिंह दर्जी

एटा। शहर के निकटवर्ती गांव ककरावली के रहने वाले गोकुल सिंह दर्जी ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रेरणा लेकर अहिंसा के साथ जंगे आजादी में हिस्सा लिया। 1930 में जेल भी गए और जुर्माना भी भुगता लेकिन आजादी के बाद उनकी भूमिका इतिहास के पन्नों में ही सिमटकर रह गई। परिवार को आगे बढ़ने का जरिया नहीं मिल पाया। परिजन आज भी गांव में तंगहाली में जी रहे हैं।

विकासखंड शीतलपुर की ग्राम पंचायत ककरावली निवासी गोकुल सिंह ने 1930 में सविनय अविज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने एक माह के कारावास की सजा दी गई। उसके बाद भी उन्होंने आजादी की जंग में सहभागिता की तो उन्हें फिर एक माह की जेल हुई और साथ में 15 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।

जंग-ए-आजादी में उनके योगदान से देश को आजादी तो मिली, लेकिन उन्हें और उनके परिवार को सम्मान नहीं मिल पाया। इस वीर सपूत की सातवीं पीढ़ी गांव में खेती से गुजारा कर रही है। करीब ढाई बीघा जमीन पर खेती करने के साथ परिजन एक परचून की दुकान चला रहे हैं। सातवीं पीढ़ी के प्रेमचंद्र बताते हैं कि हमारे पूर्व गोकुल सिंह ने आजादी के लिए गांधी के साथ कई आंदोलन में हिस्सा लिया। आज तक गांव में उनके नाम से न कोई स्मारक बना और न ही परिवार को कोई नौकरी, रोजगार जैसी सहायता दी गई ।फ़ोटो गूगल से लिया गया है

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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