आर्ष गुरुकुल यज्ञतीर्थ , एटा उत्तरप्रदेश, रिपोर्ट योगेश मुदगल

एटा।संस्थापक – स्वामी ब्रह्मानन्द जी दण्डी *एटा नगर के समीप यह गुरुकुल विद्यमान है , जिसकी स्थापना २६ एप्रिल , सन् १९४८ के दिन स्वामी ब्रह्मानन्दजी दण्डी महाराज द्वारा की गयी थी । गुरुकुल की स्थापना से पूर्व स्वामीजी ने यजुर्वेद ब्रह्म पारायण महायज्ञ का प्रायोजन किया था , जिसमें आर्य जगत् के अनेक मूर्धन्य विद्वान् सम्मिलित हुए थे । पण्डित ब्रह्मदत्त जिज्ञासु इस महायज्ञ में ब्रह्मा के रूप में विराजमान थे । यज्ञ की पूर्णाहुति के पश्चात् स्वामी ब्रह्मा नन्द ने पण्डित ब्रह्मदत्त जिज्ञासु से विचार - विमर्श कर वहाँ एक ऐसे गुरुकुल को स्थापित करने का निश्चय किया , जिसमें महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रतिपादित पाठविधि के अनुसार शिक्षा की व्यवस्था हो । जिन उद्देश्यों को सम्मुख रख कर गुरुकुल एटा की स्थापना की गई , वे निम्न लिखित थे* –
( १ ) महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा सत्यार्थप्रकाश में निर्दिष्ट आर्ष पाठ विधिकी क्रियान्वित करना तथा उसके अनुसार अध्ययन अध्यापन की व्यवस्था ।
( २ ) वर्णाश्रम व्यवस्थानुसार ब्रह्मचर्यपूर्वक अध्ययन द्वारा वेदों के विद्वान् तैयार कर वैदिक साहित्य का अनुसन्धान ।
( ३ ) वैदिक धर्म तथा प्राचीन भारतीय संस्कृति का प्रचार । स्वामी ब्रह्मानन्द द्वारा यह गुरुकुल स्थापित हुआ था , पर इसका संचालन प्रारम्भ से ही पण्डित ज्योतिस्वरूप के हाथों में रहा , जो तीस वर्ष के लगभग इस संस्था के आचार्य पद पर रहकर इसकी उन्नति में निरन्तर तत्पर रहे। आर्यसमाज के अनेक विद्वानों तथा सम्भ्रान्त व्यक्तियों का सहयोग इस गुरुकुल को प्राप्त रहा है । पण्डित ब्रह्मदत्त जिज्ञासु सदृश विद्वान् और महात्मा आनन्द स्वामी सदृश आर्य नेता इसके कुलपति रह चुके हैं , और वर्तमान समय में यह पद पण्डित युधिष्ठिर मीमांसक के हाथों में है । आर्ष गुरुकुल ट्रस्ट ‘ नाम से एक रजिस्टर्ड ट्रस्ट है , जिस द्वारा इस गुरुकुल का संचालन किया जाता है । इसी ट्रस्ट में इस संस्था की सब सम्पत्ति का स्वामित्व निहित है । देश के अनेक धनीमानी व प्रतिष्ठित व्यक्ति इस के सदस्य हैं । गुरुकुल के पास कुल भूमि ४४ एकड़ ( २०० बीघे के लगभग ) है , जिसमें ३० बीघे में आम तथा अमरूद का बाग है । १०० बीगे के लगभग भूमि में यज्ञशाला , विद्यालय छात्रावास , भोजन भण्डार , गौशाला , क्रीड़ा क्षेत्र तथा औषधालय हैं । शेष भूमि खेती के काम में लायी जाती है , जिसके लिए ट्रैक्टर सदृश आधुनिक उपकरणों का भी प्रयोग किया जाता है। गुरुकुल एटा की यज्ञशाला विशेष रूप से आकर्षक है । इसमें १०० हवन कुण्ड हैं , और इसका भवन १०८ खम्भों पर खड़ा है । भावार्थ सहित वेद इसमें संगमरमर पर उत्कीर्ण कराये जा रहे हैं । महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा शाहपुरा राज्य ( राजस्थान ) में स्थापित जो अग्नि महर्षि की दीक्षा की शताब्दी के अवसर पर मथुरा लायी गई थी , वही मथुरा से ला कर गुरुकुल एटा की यज्ञशाला में स्थापित की गई , और वहाँ उसे निरन्तर प्रज्ज्वलित रखा जा रहा है । विद्यालय , छात्रावास , भोजन भण्डार आदि के अतिरिक्त अध्यापक वर्ग के निवासगृह तथा वानप्रस्थी व संन्यासी जनों के लिए सात कुटियाँ भी गुरुकुल में विद्यमान हैं । इन सबके कारण गुरुकुल के परिसर ने भव्य व रमणीक रूप प्राप्त कर लिया है । गुरुकुल की अपनी गौशाला भी है , जिससे ब्रह्मचारियों की दूध की आवश्यकता बहुत कुछ पूरी हो जाती है । गुरुकुल के पुस्तकालय में ५,००० के लगभग पुस्तकें हैं , जिनमें वेद , वेदांग , संस्कृत साहित्य , दर्शन तथा अन्य आर्ष ग्रन्थ बड़ी संख्या में हैं । गुरुकुल एटा की स्थापना महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रतिपादित पाठविधि अनुसार शिक्षा देने के लिए की गई थी । अतः स्वाभाविक रूप से उसके पाठ्यक्रम में आर्ष ग्रन्थों की प्रधानता है । संस्कृत व्याकरण की पढ़ाई के लिए अष्टाध्यायी और महा भाष्य को प्रयुक्त किया जाता है , और संस्कृत साहित्य में हितोपदेश , पंचतन्त्र , वाल्मीकि रामायण , महाभारत तथा काव्यालंकार पढ़ाये जाते हैं । उपनिषदों तथा आस्तिक दर्शनों को पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया है , और यजुर्वेद के आठ अध्यायों को भी सूत्रग्रन्थ तथा स्मृतियां भी वहाँ के पाठ्यग्रन्थों के अन्तर्गत हैं । पर प्राचीन आर्ष साहित्य की प्रमुखता होते हुए भी गणित , भूगोल , इतिहास आदिपं आधुनिक विषयों तथा हिन्दी भाषा की सर्वचा उपेक्षा नहीं की गई है , और उन्हें भी पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया है । आर्ष गुरुकुल की शिक्षा इस प्रकार की है कि उस द्वारा ब्रह्मचारी संस्कृत भाषा और वेदशास्त्रों के गम्भीर विद्वान् बन सकते हैं , और वैदिक धर्म , भारतीय संस्कृति तथा महर्षि दयानन्द सरस्वती के प्रति आस्थावान् होकर आर्यसमाज के मिशन को पूरा करने में सहायक हो सकते हैं । गुरुकुल शिक्षा प्रणाली का जो आधारभूत तत्त्व आश्रम पद्धति के रूप में है और जिसके अनुसार बालक छात्रावास में ब्रह्मचर्यपूर्वक रहते हुए सदाचार और तपस्या का अनुशासित जीवन व्यतीत करते हैं , आर्ष गुरुकुल एटा में उसे पूर्ण रूप से अपनाने का प्रयास में किया जाता है । गुरुकुल में बालकों के प्रवेश की आयु ९ वर्ष है । प्रवेश के समय बालक की योग्यता पाँचवीं कक्षा के समकक्ष होनी आवश्यक है । स्वास्थ्य और योग्यता की परीक्षा लेकर ही बालकों को गुरुकुल में प्रविष्ट किया जाता है , और छह मास तक उनका प्रवेश स्थायी नहीं माना जाता । इस अवधि में यह परखा जाता है , कि बालक गुरुकुल की शिक्षा का अधिकारी है या नहीं पात्रता के प्रमाणित हो जाने पर ही उसे स्थायी रूप से में प्रविष्ट किया जाता है । गुरुकुल की शिक्षा निःशुल्क है , पर भोजन का व्यय ब्रह्मचारियों को देना होता है । भोजन पदार्थों के मूल्यों के अनुसार इस शुल्क में कमी या वृद्धि की जा सकती है । सन् १९७८-७९ में भोजन का शुल्क ४० रुपये मासिक था । प्रवेश के समय ब्रह्मचारियों से ५० रुपये प्रवेश शुल्क तथा ६० रुपये तख्त के लिए लिये जाने की भी व्यवस्था है । आर्ष गुरुकुल , एटा में आश्रम पद्धति के मूल तत्त्वों को क्रियान्वित करने पर समुचित ध्यान दिया गया है । वहाँ ब्रह्मचारियों को छात्रावास में ही निरन्तर निवास करते हुए गुरुजनों के सजग निर्देशन व नियन्त्रण में विद्याध्ययन के लिए सतत प्रयत्नशील रहना होता है । सबका रहन - सहन तथा खान - पान एक समान है । धनी या निर्धन , सवर्ण या हरिजन , इसका कोई भेद गुरुकुल में नहीं किया जाता । वहाँ निवास करते हुए विद्यार्थियों में जाति और कुल आदि की उच्च व हीन स्थिति की अनुभूति शेष ही नहीं रह जाती । ब्रह्मचारियों के चरित्र निर्माण तथा शारीरिक , मानसिक व आध्यात्मिक उन्नति पर इस गुरुकुल में विशेष ध्यान दिया जाता है , और समाज सेवा की क्रियात्मक शिक्षा उन्हें देने के लिए भी गुरुकुल प्रयत्न करता है । इसी प्रयोजन से उन्हें समीप के ग्रामों तथा नगरों में आयोजित धर्मप्रचार तथा समाज सेवा के कार्यों में भाग लेने के लिए ले जाया जाता है , जिससे उन्हें सार्वजनिक जीवन में योगदान की प्रेरणा प्राप्त होती है । आर्ष ग्रन्थों के अध्ययन के साथ - साथ ब्रह्मचारियों को चारों वेदों का सस्वर पाठ , सामगान तथा सभी प्रकार के जटा , धन , शिखादि पाठों का सम्यक् ज्ञान कराया जाता । इस गुरुकुल के ब्रह्मचारियों को सस्वर वेदपाठ का जो अभ्यास है , वह इस संस्था की एक अनुपम विशेषता है । आर्य जगत् में ही नहीं , अपितु विद्वत्मण्डल में सर्वत्र इसकी भूरि भूरि प्रशंसा की जाती है । सस्वर वेदपाठ की जो परम्परा प्राय : सर्वथा नष्ट हो गई थी , उसका पुनरुद्धार कर इस संस्था ने प्रशंसनीय कार्य किया है । ब्रह्मचारियों की वक्तृत्व शक्ति को विकसित करने , सार्वजनिक सभाओं में व्याख्यान दे सकने की क्षमता उत्पन्न करने और वैदिक कर्मकाण्ड का ज्ञान कराने के लिए भी इस गुरुकुल में प्रयत्न किया जाता है , जिसके परिणामस्वरूप इसके अनेक स्नातकों ने प्रचारक तथा पुरोहित के रूप में अच्छी ख्याति अर्जित की है । केवल भारत में ही नहीं , अपितु विदेशों में भी इस गुरुकुल के अनेक स्नातक प्रचारक तथा अध्यापक के रूप में गये हैं , जिनमें पण्डित भारतेन्दु विमल तथा पण्डित ओमप्रकाश के नाम उल्लेखनीय हैं । श्री भारतेन्दु मोरीशस , मोम्बासा , केनिया आदि में वैदिक धर्म तथा हिन्दी भाषा का प्रचार करते रहे हैं , और श्री ओमप्रकाश लण्दन में अध्यापक हैं । कई स्नातक भारतीय सेना के धर्माचार्य के पद पर भी सेवारत हैं । श्री सत्यपाल , श्री वीरेन्द्र और श्री अवनीन्द्र आदि अनेक स्नातक सरकारी यूनिवर्सिटियों से डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त कर विविध विश्वविद्यालयों में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष पद को सुशोभित कर रहे हैं । शिक्षा तथा विद्वत्ता के क्षेत्र में वे जो इस उच्च स्थिति को प्राप्त कर सके , उसका प्रधान कारण संस्कृत तथा वेद - वेदांगों की वह योग्यता ही थी , जो कि उन्होंने इस आर्ष गुरुकुल में नियमपूर्वक अध्ययन कर प्राप्त की थी । पण्डित आर्येन्द्र कुमार , श्री सूर्यदेव तथा श्री अशोक कुमार सदृश अनेक स्नातक विभिन्न गुरुकुलों के आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हैं । इसी संस्था में शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने ' आचार्य ' परीक्षा उत्तीर्ण की थी । गुरुकुल एटा के विद्यार्थी विविध विद्यापीठों व विश्वविद्यालयों की संस्कृत परीक्षाओं में बैठते हैं , और उनमें उच्च स्थान प्राप्त करते हैं । झज्झर में श्रीमद्दयानन्द आर्ष विद्यापीठ के स्थापित हो जाने के कारण अब इस गुरुकुल के विद्यार्थी व्याकरणा चार्य और वेदाचार्य सदृश परीक्षाएँ वहीं से उत्तीर्ण करने लगे हैं । जो ब्रह्मचारी आर्ष गुरुकुल एटा में विद्याध्ययन कर स्नातक हो चुके हैं , उनकी संख्या दो सौ से अधिक है , और विद्यार्थियों की संख्या वहाँ प्रायः सौ के लगभग रहती है ।
नोट – उपरोक्त इतिहास संबंधित जानकारी वर्ष 1985 तक यानी पुस्तक लिखने तक की है। नीचे फोटो में गुरुकुल की प्राचीन यज्ञशाला है।