एटा-कासगंज का गणित बिगड़ सकता है

एटा-कासगंज का गणित बिगड़ सकता है

कहते है कि राजनीति किसी के बाप की जागीर नहीं रहीं है और यहीं राजनीति किसी के घर की नौकरी भी नहीं करती है। कुछ -कुछ ऐसा ही इस समय विधानसभा एटा और कासगंज की जनता 10 मार्च को करने जा रही है। क्योंकि एटा-कासगंज इस लिए बोल रहें है इन्ही सातों विधानसभा की जनता तीन लोकसभा के सदस्यों को चुन कर दिल्ली की सरकार मे भागीदारी कराती है। अब इन्ही सात विधानसभाओं मे से दो विधानसभायें अगर निकाल दी जाये तो एक लोकसभा का निर्माण करती है जिस पर इस समय बीजेपी के सांसद राजवीर सिंह राजू भैया है वही बाक़ी दो विधानसभाओ जलेसर के सांसद एस.पी.सिंह बघेल (आगरा )और अलीगंज विधानसभा पर (फर्रुखाबाद) मुकेश राजपूत सांसद है।

अब गणित यह है कि सातों विधानसभाओ की बात करें तो 2012 मे से एक अमापुर को छोड़ दिया जाये तो बाक़ी छः पर समाजवादी पार्टी के विधायक थे। और समाजवादी पार्टी सत्ता के पांच बर्ष भोग कर गई।2012 में विधानसभा चुनाव में बहुत कम अंतर के वोट पाकर भी विधायक चुनें गये थे। वही 2017 में बीजेपी की सरकार नें 41% वोट पाकर सत्ता का भोग किया है और विधानसभा 2022 के चुनाव में जनता के सामने है।

हराना और जीतना राजनीति में मौसमी विवाह है। कभी तुम मेरी शादी में तो कल तुम्हारी शादी में हम नागिन डांस करेंगे। लेकिन डांस तो होगा ही। कुछ-कुछ ऐसा ही राजनीति के खेल में देखने को मिलता है।इन सातों विधानसभाओ पर राजनीति की चर्चा करने का मौका मिला बो आप तक पहुंचाने का प्रयास कर रहें है। शायद यह भी हो सकता है कि कुछ ही अंतर पर आकलन गलत होगा,परंतु एक दम नहीं….!!!

एटा की चार विधानसभाओ में से दो विधानसभा बीजेपी को मिल सकती है। लेकिन बहुत कम अंतर पर हार जीत होंगी। कम अंतर का कारण होगा कि वोटर ने अपनी चुप्पी को तोड़ा नहीं और वोट किया। लेकिन खरीदारी जम कर की गई है।यह भी एक बड़ी वजह रहेगी है। कि वोट इधर से उधर चलता दिखाई तो दिया है लेकिन संभावनाएं कम ही लग रहीं है।वही बाक़ी विधानसभाओ में एक सीट गंभीर रूप से बीजेपी की फ़सी हुई है जिसे निकालना वोटर के विश्वास पर निर्भर है। वही इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने सधे हुए शब्दों में काम किया है। बीजेपी के वोट में बसपा ने सैधमारी की है।यहीं वजह है कि कम अंतराल पर जीत और हार का सेहरा बंध सकता है….!!!

इधर कासगंज कि दो सीटे समाजवादी के फाले में जा सकती है जो कि गंभीर परिणाम की नियति होंगी।कासगंज के अमापुर सीट पर बीजेपी के ही स्थानीय/ वर्तमान विधायक की भीतरघात से हार सकते है। देखना यह होगा कि बीजेपी के बाबू जी कल्याण सिंह जी की इस सीट पर लोधी बाहुल्य क्या परिणाम देता है। उधर गंगा के किनारे लगी सीट पर समीकरण बदले-बदले नजर आ रहें है।पिछली बार के 3700 वोटो की भरपाई समाजवादी पार्टी कर पाती है कि नहीं 10 मार्च को देखना दिलचस्प होगा।

कासगंज सदर की सीट पर एक बार फिर से बीजेपी अपने रंग में आ रही है। कहना साफ नहीं है क्योंकि समाजवादी पार्टी से पुराने चावल पुनः चुनावी कढ़ाई में उतरने से बीजेपी की राह मुश्किल होती प्रतीत दिखाई दें रही है।

जहाँ तक सातों विधानसभाओ का लगभग अंकलन करें तो 2-5 का गणित बैठ रहा है। जिसमें बसपा अपने कद को वोट % में बढ़ा तो रही है।लेकिन जीतने के % से बहुत पीछे खड़ी है। ऐसा इसलिये भी माना जा सकता है क्योंकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने पैतरे से इन सात विधानसभाओं के चुनावों में सभी पार्टियों को चौका तो दिया ही है साथ ही समाजवादी पार्टी के सत्ता तक पहुंचने के सपनो को डस भी लिया है।बसपा ने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को पटखनी देने की पूरी कोशिश की है।

बड़ी फ़िल्म हैँ उत्तर प्रदेश का चुनाव

समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी एक तरफ बीजेपी के प्रत्याशी से लड़ रहें है तो बसपा के प्रत्याशी दूसरें छोर से बीजेपी को प्रदेश की हर विधानसभा पर संकट मोचन का काम कर रही है। सपा के प्रत्याशी दो-दो विचारधाराओं से लड़ रहें है। एक अम्बेडकर वादी सोच तो दूसरी राष्ट्रवाद विचारधारा से…. ऐसे में पूरे उत्तर प्रदेश में समाज़वाद खोनें की कगार पर तो नहीं है।

अखिलेश यादव नें पूर्वांचल और पच्छिम की सीटों पर बीजेपी को पसीने छुड़ा तो दिये है परंतु सत्ता के गोलचक्कर में कितने फिट बैठते है। यहीं गणित अखिलेश यादव को कम आंकता हैं। जयंत चौधरी,ओमप्रकाश राजभर, कृष्णा पटेल, केशव मौर्य, जैसे छोटे-छोटे दलों से मिलकर उत्तर प्रदेश की सत्ता पर उसी सपने को लेकर चले है जिसे कभी 712 ई. में मों.बिन काशिम भारत आया था।लेकिन बीजेपी नें भी सपा से एक कदम आगे रखते हुए अपनी पुराने सहयोगी पार्टियों को अधिक सीटे देकर सपा से कम सपना नहीं देखा है।हक़ और हकुक की लड़ाई जब-जब सत्ता के पटल पर गुंजायमान हुई है।बेहरूपिओ नें सत्ता पर बैठ कर जनता को सिर्फ बड़े-बड़े सपने दिखाए है।इस मामले में सपा और बीजेपी इस बार के विधानसभा चुनावों में सबसे आगे रहीं है। पीछे-पीछे दिल्ली वाले केजरीवाल!!!!!!

बीजेपी
234
सपा
150
बसपा
15
अन्य

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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