
भाजपा के लिए चुनौती है जाटों की लामबंदी – रिपोर्ट शुभम शर्मा
अलीगढ़ – पश्चिमी यूपी की सियासत जातीय गणित बनाम ध्रुवीकरण की धुरी पर केंद्रित होती जा रही है। इसी नब्ज को भांपते हुए प्रमुख राजनीतिक दलों ने पश्चिमी यूपी में टिकट वितरण से लेकर वर्चुअल संवाद तक में जातीय गणित पर ही फोकस रखा है। पश्चिम में जाट मतदाता सबसे ज्यादा मुखर हैं। यह कहा जाता है, ‘पश्चिम में जिसके जाट, उसके ठाठ।’ जाट मतदाता चुनावी माहौल बनाने में यहां अहम भूमिका निभाता रहा है। इस बार ध्रुवीकरण की राह में अड़चन बने जाट मतदाताओं को भाजपा और सपा-रालोद ने अपने पाले में करने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है। भाजपा ने 17, सपा-रालोद गठबंधन ने 16 जाटों को मैदान में उतारा, कांग्रेस ने 6 और बसपा ने 4 को दिया टिकट। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, आगरा और अलीगढ़ मंडल के 26 जिलों में से कई में जाट मतदाताओं की संख्या 17 फीसदी तक है। जाट मतदाताओं का असर तो करीब 100 सीटों पर है, लेकिन 30-40 सीटें ऐसी हैं, जहां जाट मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। यूं तो जाट हर चुनाव के पहले लामबंद होते रहे हैं, पर अबकी बार किसान आंदोलन के असर की वजह से उनकी लामबंदी और पुख्ता है। किसान आंदोलन से सियासत तक पश्चिम के जाटों की बड़ी भूमिका रही है। गाजीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन के वक्त राकेश टिकैत के आंसू निकले तो नजदीकी मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, अलीगढ़ और आगरा मंडल के किसानों ने ही रातों-रात कूच कर आंदोलन को ताकत दी थी। इनमें बड़ी संख्या जाटों की ही थी।