सफेद हाथी बने एटा मेडिकल कालेज इलाज के लिये जीवन रक्षक दवा मरहम पट्टी आदि के इंतजाम में नाकाम रहा…!

सफेद हाथी बने एटा मेडिकल कालेज इलाज के लिये जीवन रक्षक दवा मरहम पट्टी आदि के इंतजाम में नाकाम रहा…!

*लम्बी चौड़ी सर्जरी फेकल्टी के बावजूद नही हो रहे किसी तरह के ऑपरेश

*अटेंडेंस के खेल में काम करने बाले लोगो का शोषण
महीने में एक आध बार आने बालों पर कालेज प्रशासन की कृपा

एटा। जिले की सिरमौर उपलब्धि समझे जाने बाले मेडिकल कालेज की व्यवस्था इतनी बेहाल है कि इसके वाह्य स्वरूप को देख कर सफेद हाथी कहना उचित होगा। बिना मेडिकल कालेज के जब जिला महिला अस्पताल की व्यवस्थाएं कमोवेश सही चल रही थी दवा सर्जरी आदि की कोशिशें अस्पताली प्रशासन के द्वारा होती रहती थी। अब इससे इतर मेडिकल कालेज के अधीन सुप्रीम अथॉरिटी के होने के बावजूद इन इंतजामो का भारी टोटा है। मेडिकल कालेज बेस हॉस्पिटल्स को सीएमओ, एनआरएचएम, यूजर चार्जेज से होने बाली आय से इंतजाम करने पढ़ रहे हैं। विस्मय की बात है लंबे चौड़े मेडिसन विभाग एवं इसमे शामिल विशेषज्ञों के होते भी मेडिकल कालेज जीवन रक्षक दवाओं,मौसमी संक्रमण की दवाओं एवं विभिन्न तरह के इलाज के लिये दवाओं के इंतजाम नही कर सका है।
आधा दर्जन से अधिक फैकल्टी के होते हुये भी इस दिशा में कोई कोशिश नही की गई। नियमानुसार हर फैकल्टी के पास अपना अलग स्टोर सम्बंधित स्टोर का स्टाफ होना चाहिये पर जब दवा आदि ही नही है यह नियम की बात भी बेमानी है।अस्पताली दवा भंडारों से जुड़े सूत्रों ने कहा है मेडिकल कालेज के स्तर से अभी तक किसी तरह की दवाएं नही मिली है।
साफ जाहिर मेडिकल कालेज में सक्रिय भृष्ट सिंडिकेट अधिकांश मोटी खरीद फरोख्त में रुचि ले रहा है उपकरण, साज सज्जा आदि पर इनके बैंडर भले ही उच्च पैठ रखने बाले हों पर लाखों का कमीशन आसानी से उपलब्ध कराते हैं। खाने कमाने के चक्कर मे मेडिकल कालेज में जन स्वास्थ्य के इखलाखी फर्ज को ठेंगे पर मार दिया है। गौरतलब है मेडिकल कालेज शुभारंभ की घोषणा के साथ एटा सहित आसपास के जिलों के मरीजों ने मेडिकल कालेज का रुख किया तो चिकित्सा पर प्रबन्धों की पोल खुल गई जांच/दवा आदि के नाम पर मरीजो के तीमारदारों को मार्केट का रुख करना पड़ा।मेडिकल कालेज की बदइंतजामी की अनेको भयावह तस्वीर अखबारों में छाई रहीं। अब ढोल की पोल खुलने के बाद मरीजो की आवाजाही कम हो गई है। हैरत की बात तो यह है जिस मेडिकल कालेज को प्रथम वरीयता महामारी के माहौल में इफेक्टिव दवाओ की उपलब्धता सुनिश्चित करने में देने चाहिये वहां सबसे पहले साज सज्जा आदि मदो पर करोड़ो खर्च कर चुका है। उधर बड़े बड़े चिकित्सा फैकल्टी के आला अफसर सहित अनेको वरिष्ठ विशेषज्ञ मेडिकल कालेज में नही आ रहे और न सेवाएं दे रहे हैं। अब सवाल उठता है आखिर फैकल्टी की चिकित्सा यूनिट की अटेंडेंस आदि कहाँ दर्ज की जा रही है आखिर बिना काम किये उनके वेतन आदि की शिफारिसे कौन करता है। पता चला है स्थानीय एक क्लर्क के भरोसे छोड़ कर शोषण की परिपाटी शुरू हो गई है जो काम नही कर रहे उनको पूरा वेतन जो काम करते हुये विषम हालात में शासन द्वारा प्रदत्त अवकाश ले ले उनकी कटौती की जा रही है।
मेडिकल कालेज को तटस्थ होकर देख रहे अनेक प्रबुधो का मानना है —
‘मेडिकल कालेज के प्रबंध घिसे पिटी बाबू
कल्चर के हवाले हैं जो दशकों पुरानी भृष्ट परिपाटी से मेडिकल कालेज को धकेल रहे हैं मेडिकल कालेज की सुप्रीम अथॉरिटी को बाबू कल्चर से निकाल कर मोदी की नए मिजाज की संस्कृति को अंगीकार करना होगा तभी मेडिकल कालेज वास्तव में मेडिकल कालेज रह सकेगा। शुरुआती दौर में यह कोशिशें नही की गई तो भृष्ट संस्कृति अपने पांव जमा लेगी जिससे फिर जूझना मुश्किल हो सकता है।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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