बिजली संकट : यूपी, बिहार में अभूतपूर्व बिजली संकट, जानिए बिजली पैदा करने में कितना लगता है कोयला

देश में कोयले से चलने वाले 135 पावर प्लांट में से 60 से ज्यादा ऐसे हैं, जहां कोयले का स्टॉक खत्म होने वाला है, केवल 2-4 दिन का ही स्टॉक बचा है। अगर ऐसा हुआ तो देश के कई हिस्सों में अंधेरा छा जाएगा और इनमें राजधानी दिल्ली भी शामिल होगी। यूपी, बिहार में इसका असर दिखने लगा है।
भारत में बिजली संकट गहराने की कगार पर है। कोयले की कमी की वजह से पैदा हुए बिजली संकट को लेकर बिजली कंपनियों ने ग्राहकों को सूचित करना शुरू कर दिया है। दिल्ली में सेवाएं दे रही टाटा पावर (Tata Power) की इकाई ने अपने ग्राहकों को फोन पर संदेश भेजकर इसकी जानकारी दी है। कंपनी ने शनिवार दोपहर बाद से बिजली का विवेकपूर्ण उपयोग करने का आग्रह किया है।
देश में कोयले से चलने वाले 135 पावर प्लांट में से 60 से ज्यादा ऐसे हैं, जहां कोयले का स्टॉक खत्म होने वाला है, केवल 2-4 दिन का ही स्टॉक बचा है। अगर ऐसा हुआ तो देश के कई हिस्सों में अंधेरा छा जाएगा और इनमें राजधानी दिल्ली भी शामिल होगी। यूपी, बिहार में इसका असर दिखने लगा है। राजस्थान और पंजाब के कुछ हिस्सों में बिजली की कटौती होना शुरू हो गया है। कोयला संकट के बीच मन में जिज्ञासा उठना स्वाभाविक है कि एक बिजलीघर में हर घंटे प्रति मेगावाट बिजली पैदा करने के लिए कितने कोयले की जरूरत पड़ती है।
आइए जानते हैं इस रिपोर्ट में…
बिजली घर में हर घंटे प्रति मेगावाट बिजली के लिए कितना कोयला चाहिए
बिजली क्षेत्र के इंजीनियरों का कहना है कि बिजली घर में हर घंटे प्रति मेगावाट बिजली के लिए औसत किस्म के 0.75 टन कोयले की जरूरत पड़ती है। यदि कोयला बेहतरीन किस्म का हुआ तो 0.60 टन लगेगा और यदि कोयला इन्फीरियर ग्रेड का होगा तो 0.85 टन कोयले की जरूरत पड़ेगी। ऑस्ट्रेलिया का कोयला बेहतर किस्म का होता है। वहां से आने वाले 0.40 टन कोयले से ही एक घंटे कि लिए काम चल जाएगा।
बिजली बनाने में इस्तेमाल होता है सबसे खराब क्वालिटी का कोयला
यहां एक बात गौर करने वाली है। भारत के कोल पावर प्लांट (Coal Power Plant) में कोयले की जिस क्वालिटी से बिजली पैदा होती है, वह सबसे खराब क्वालिटी का होता है। इसकी वजह है कि प्लांट्स में बॉयलर को इन्फीरियर कोयले (Inferior Coal) के हिसाब से डिजाइन किया गया है। अगर उसमें बेहतरीन क्वालिटी के कोयले का इस्तेमाल किया गया तो ट्यूब में नुकसान हो जाएगा।
ऑस्ट्रेलिया के कोयले में बेहद ज्यादा हीट
ऑस्ट्रेलिया के कोयले में बहुत हीट होती है। वहां का सबसे खराब कोयला भी, भारत में उत्पादित सबसे अच्छे कोयले से अच्छा होता है। इसलिए जब ऑस्ट्रेलिया के कोयले का इस्तेमाल पावर प्लांट में किया जाता है तो उस कोयले में भारत का कोयला मिलाया जाता है। उदाहरण के लिए अगर भारत का कोयला छह हिस्सा है तो ऑस्ट्रेलिया का कोयला एक हिस्सा होगा यानी 6:1।
ऐसे भी समझ सकते हैं बिजली उत्पादन और कोयले का हिसाब किताब
प्लांट में बिजली उत्पादन और कोयले की खपत का हिसाब-किताब एक उदाहरण से समझ सकते हैं। एनटीपीसी के कहलगांव बिजली घर को ही ले लीजिए। वहां 2100 मेगावाट की इलेक्ट्रिसिटी प्रॉडक्शन कैपिसिटी है। तो वहां एक दिन में करीब 35000 टन कोयले की जरूरत पड़ेगी। मतलब कि करीब आठ मालगाड़ी कोयले की जरूरत होगी।
थर्मल पावर प्लांट की कैटेगरी में आते हैं कोल पावर प्लांट
कोयला आधारित संयंत्र, थर्मल पावर प्लांट (Thermal Power Plant) की कैटेगरी में आते हैं। भारत में इस्तेमाल होने वाली बिजली का 71 फीसदी थर्मल पावर प्लांट्स के जरिए पूरा होता है। थर्मल पावर प्लांट्स में कोयला संयंत्रों के अलावा गैस, डीजल और नेचुरल गैस बेस्ड प्लांट शामिल हैं। इसके अलावा देश की बिजली डिमांड का 62 फीसदी भारत के विशाल कोयला रिजर्व के जरिए पूरा होता है।
कुल कोयला डिमांड का 30% बाहर से इंपोर्ट
भारत अपनी कोयला डिमांड का 30 फीसदी देश के बाहर से पूरा करता है। देश में कुल कोयला डिमांड का 70 फीसदी भारत के कोयला रिजर्व या प्रॉडक्शन से पूरा होता है। देश में करीब 300 अरब टन कोयले का भंडार है। अपनी ऊर्जा जरूरत को पूरा करने के लिए भारत को इंडोनेशिया, आॅस्ट्रेलिया और अमेरिका से भी कोयले का आयात करना पड़ता है। भारत में कुल आयातित होने वाले कोयले का 70 फीसदी ऑस्ट्रेलिया से आता है। दक्षिण भारत के पावर प्लांट, झारखंड या छत्तीसगढ़ से कोयला मंगाने के बजाय आॅस्ट्रेलिया से कोयला मंगाते हैं। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोल इंपोर्टर है, जबकि इसके पास दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कोल रिजर्व है।