अमावस्या और पूर्णिमा इन दोनों तिथियों में दान-पुण्य व व्रत आदि करने का विधान है : पं. हृदय रंजन शर्मा

अमावस्या और पूर्णिमा इन दोनों तिथियों में दान-पुण्य व व्रत आदि करने का विधान है : पं. हृदय रंजन शर्मा
पं. हृदय रंजन शर्मा के अनुसार अमावस्या और पूर्णिमा ये दोनों पर्व तिथियां हैं।अमावस्या और पूर्णिमा इन दोनों तिथियों में पृथ्वी,चन्द्र और सूर्य तीनों समसूत्र (एक ही लाइन) में होते हैं।अमावस्या में चन्द्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में होता है।चन्द्रमा का जो अंश पृथ्वी की ओर होता है,उसमें सूर्य किरण का स्पर्श न होने से उस दिन चन्द्रमा दिखता नहीं है।जब चन्द्रमा क्षीण होकर दिखता नहीं,तब उस तिथि को ‘अमा’ कहते हैं।अमावस्या का महत्व इसलिए है कि सूर्य की सहस्त्र किरणों में प्रमुख अमा नाम की किरण इस दिन चन्द्रमा में निवास करती है।चन्द्रमा मन का स्वामी है।यह मनोबल बढ़ाने और पितरों का अनुग्रह प्राप्त कराने में सबसे ज्यादा सहायक होता है।अमावस्या और पूर्णिमा इन दोनों तिथियों में चन्द्रमा का विशेष प्रभाव पृथ्वी पर होता है जिससे पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के शरीर व मन दोनों ही अस्वस्थ और चंचल हो सकते हैं।इससे बचने के लिए अमावस्या और पूर्णिमा इन दोनों तिथियों में दान-पुण्य व व्रत आदि करने का विधान है।अमावस्या यदि सोमवार,भौमवार या गुरुवार व शनिवार को हो तो ऐसे योग में दान-पुण्य,ब्राह्मण-भोजन और व्रत से सूर्यग्रहण के समान फल प्राप्त होता है।

About The Author

निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

Learn More →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अपडेट खबर के लिए इनेबल करें OK No thanks