
मानवता सभ्यता के साथ ही शब्दों का जन्म हुआ होगा, हम यही से शुरू करते है क्योंकि कहानी को अधिक गड़ेंगे तो काफ़ी समय चाहिए इसलिए यही से शुरू करते है…. सभ्यता के साथ ही शब्द आये होंगे और जीव जगत में जिसे जो समझ में आया वही अक्षर बनते गए होंगे और वही मानवता सभ्यता की समझ बने होंगे, वर्तमान में महाराष्ट्र राज्य में एक जंग छिड़ी हुई है कि महाराष्ट्र में रहना है तो मराठी बोलनी होंगी…. चलो मान लेते है कि महाराष्ट्र में रहना है तो मराठी बोल लेंगे- सीख लेंगे लेकिन महाराष्ट्र के खलीफाओ से एक सवाल है कि क्या अंग्रेजी भाषा से कोई अवैध रिश्ता है जो घर में भी रहेगी और दिमाग़ में भी रहेगी इस भाषा का विरोध क्यों नहीं करते है…. जिस भाषा ने 250 साल इस देश पर शासन किया हो उस भाषा के लिए इस देश के किसी कोने में विरोध नहीं होता है…. भारत में अक्सर देखने को मिलता है कि प्रत्येक राज्य में भाषा क्षेत्र के हिसाब से आये दिन विरोध होता है…. वर्ष 2006 में MNS प्रमुख राज ठाकरे ने उत्तर राज्य के लोगो का विरोध किया था जिसे जमकर हवा दी गई तमाम उत्तर राज्य के कामगार लोगो के साथ मारपीट व अभद्रता की गई, लेकिन वो दौर रुका और देश फिर चल पड़ा…..
अभी हाल में यही हो रहा है उद्धव ठाकरे व राज ठाकरे इस समय हिंदी भाषा के विरोध में आ चुके है. यह ऐसे ही नहीं हो रहा है… दोनों भाई महाराष्ट्र में जानते है कि हिंदी भाषा वाले ही तो है जो सत्ता को इधर -उधर करने के आंकड़ों में रहते है। दोनों भाइयो को यह भी समझना होगा कि बाला साहब ठाकरे शुद्ध बिहारी थे, बिहार से बम्बई आये थे चित्रकारी करने और महर्षि बन कर महाराष्ट्र के मराठीयो को अपना चेला बना लिया.. मराठी मछली पकड़ने वाले समझ ही नहीं पाए कि बाला साहेब ने मराठी जनता को पिछले 50 साल से इस बात के लिए एक जुट किये थे कि हम सब हिन्दू है…. लेकिन अगर यह दोनों भाई बाला साहब के नारे का प्रयोग करेंगे तो फिर विफल हो जायेगे क्योंकि हिन्दू होने का नारा तो बीजेपी का है… इसलिए दोनों भाइयो ने महाराष्ट्र में मराठी भाषा बोलने के लिए जोर देना शुरू कर दिया है जिससे एक ही समुदाय के दो फाड़ हो सके…. यही घटिया राजनीति है….
महाराष्ट्र के लोगो को यह समझना चाहिए कि भाषा एक दूसरे को समझने के लिए बन गई थी न कि युद्ध के लिए…. यही कारण है कि भाषा विवाद बढ़ रहा है. आम जनता को पीटा जा रहा है… बत्तमीजी की जा रही है।
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को यह समझना चाहिए कि अगर सरकार हिंदी भाषा को तीसरी भाषा बना भी रही थी तो यह अच्छी पहल थी जिसे स्वीकार करनी चाहिए थी. क्योंकि पुरे भारत में भ्रमण के लिए यह भाषा सहायक है फिर क्यों नहीं…!!लेकिन नेता है. राजनीति करनी है तो कैसे राजनीति करनी है यही घटिया सोच है..
फिलहाल महाराष्ट्र के मराठीयो को बॉलीबुड पर अटैक करना चाहिए क्योंकि वही है जो हिंदी भाषा को बढ़ावा दें रहें है और डायलॉग हिंदी में बोलते है.जिसे पूरा देश देखता- सुनता है… अगर महाराष्ट्र के लोग बॉलीबुड के लोगो को महाराष्ट्र से खदेड दें तो सब कुछ ठीक हो जायेगा….. सभी दाल रोटी की भाषा समझ जायेगे और हम भारत के लोग कहने लगेंगे….
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